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131.
अनुस्सावन/अनुसावन
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अनुस्साहित वरिष्ठ भिक्षु - उपज्झायस्स, देव, सीसं छेतब्बं, अनुस्सावकस्स के कर्मकाण्डीय वचनों का पाठ कराया जाता है; - जिव्हा उद्धरितब्बा, .... महाव. 93.
माने वर्त. कृ., सप्त. वि., ए. व., अनुश्रवण कराया जा अनुस्सावन/अनुसावन नपुं., अनु + vसु के प्रेर. से व्यु., रहा - यो पन भिक्खु यावततियं अनुस्सावियमाने सरमानो क्रि. ना. [अनुश्रावण], क. विनय के कम्मवाचा अथवा अत्ति सन्तिं आपत्तिं नाविकरेय्य, सम्पजानमुसावादस्स होति, महाव. (प्रस्ताव) का पाठ, उद्घोषणा - हन्द, मयं, आवुसो, सब्बेव एकानुस्सावने करोमा ति, महाव. 118; द्वे एकानुस्सावनेति अनुस्सावेति अनु + vसु के प्रेर. का वर्त., प्र. पु., ए. व. वे एकतो अनुस्सावने, एकेन एकस्स अजेन इतरस्साति [अनुश्रावयति], शा. अ. अनुश्रवण कराता है, विनय के एवं द्वीहि वा आचरियेहि एकेन वा एकक्खणे कम्मवाचं कर्मकाण्डीय वचनों की उद्घोषणा कराता है, ला. अ. .... महाव. अट्ठ. 298; तीहि आचरियेहेव, एकतो अनुसावनं व्यक्ति को उपसम्पदा दिलाने हेतु भिक्षुसङ्घ के समक्ष प्रस्तुत विन. वि. 2545; ख. संघ में विभाजन उत्पन्न कराने के करता है, सभी को सुना कर अत्ति (प्रस्ताव) अथवा कम्मावाचा अभिप्राय से पुनः पुनः की गयी घोषणा या प्रचार - कम्मेन, का पाठ करता है - अत्तिचतुत्थे चे, भिक्खवे, कम्मे द्वीहि उद्देसेन वोहरन्तो, अनुस्सावनेन, सलाकग्गाहेन, परि. 371; अत्तीहि कम्मं करोति, न च कम्मवाचं अनुस्सावेतिअनुस्सावनेनाति ननु तुम्हे जानाथ मह उच्चाकुला अधम्मकम्म, महाव. 413; सुमनो तिस्सथेरस्स अनुस्सावेसि पब्बजितभावं बहुस्सुतभावञ्च, ..., किं अहं अपायतो न साधुकं विन. वि. 2549; - वेय्य विधि., प्र. पु., ए. व., भायामी ति आदिना नयेन कण्णमूले वचीभेद कत्वा अनुश्रवण कराए, सुनाए - सो साधु सामी ति ... ठत्वा अनुस्सावनेन, अ. नि. अट्ठ. 1.340; परि. अट्ठ. 225; - तिक्खत्तुं सद्दमनुस्सावेय्य यावता गामे गामिका, ..., मि. प. विपन्न त्रि., तत्पु. स. [अनुश्रावणविपन्न], विनय के 148; 233; - वेत्वा पू. का. कृ., अनुश्रवण कराकर, कम्मावाचा के पाठ से रहित - अत्तिविपन्नम्पि कम्मं करोन्ति सुनाकर, घोषितकर - एकतो अनुसावेत्वा, कतम्पि च न अनुस्सावनसम्पन्न, अनुस्सावनविपन्नम्पि कम्मं करोन्ति कुप्पति, विन. वि. 2547; - वेसि अद्य., प्र. पु., ए. व., अत्तिसम्पन्न, महाव. 412; विलो. अनुस्सावनसम्पन्न; - उसने उद्घोषित किया, पाठ किया, सुनाया - अथ खो, सम्पदा स्त्री., तत्पु. स. [अनुश्रावणसम्पत], विनय के आनन्द, अन्तरहितो यक्खो सद्दमनुस्सावेसि, दी. नि. अट्ठ. कर्मकाण्ड के वचनों वाली सम्पत्ति - सत्थुसासनेनाति 2.151; - वेसु ब. व., उन्होंने सुनाया - एकम्हि वस्से अत्तिसम्पदाय अनुस्सावनसम्पदाय, परि. 322; महाव. अट्ठ. निक्खन्ते देवता सद्दमनुस्सावेसुं. दी. नि. 2.37. 402; - सम्पन्न त्रि., तत्पु. स. [अनुश्रावणसम्पन्न], अनुस्साह पु., उस्साह का निषे. [अनुत्साह]. उत्साह का विनयकर्मकाण्डीय वचनों के पाठ से युक्त - अत्तिविपन्नम्पि अभाव, अक्षमता, वीर्यहीनता - अथ खो आयस्मा ... कम्मं करोन्ति अनुस्सावनसम्पन्न, ..., महाव. 412; विलो. पापियमाने भिक्खुसङ्के सिक्खं समादियमाने अनस्साह अनुस्सावनविपन्न.
पवेदेसि, म. नि. 2.109; ... पितरं वन्दित्वा गारवेनेव अनुस्सावना स्त्री., अनुस्सावन से व्यु., उपरिवत् - .... अरञवासे अनुस्साहं पवेदेन्तो .... जा. अट्ठ. 4.198; -
अत्तिया अनुस्सावनं न जानाति, ..., परि. 346; यथा मया लक्खण त्रि., ब. स. [अनुत्साहलक्षण], वह, जिसका अत्ति च अनुस्सावना च पञ्जत्ता, महाव. 461; अत्तिया लक्षण अथवा विशिष्ट प्रकृति अनुत्साह है - तत्थ थिनं अनुस्सावनन्ति इमिस्सा अत्तिया एका अनुस्सावना, परि. अनुस्साहलक्खणं, वीरियविनोदनरसं संसीदनपच्चुपट्टानं, अट्ठ. 221.
विसुद्धि. 2.96; अभि. अव. 26; - संहननता स्त्री., तत्पु. अनुस्सावित त्रि., अनु + सु के प्रेर. का भू. क. कृ. स., प्रयास की कमी के कारण उत्पन्न संकुचन अथवा हास [अनुश्रावित], उद्घोषित, वह, जिसमें (अथवा जिसका) - अनुस्साहसंहननता असत्तिविघातो चाति अत्थो, विसुद्धि. विनय के कर्मकाण्डीय वचनों का पाठ किया गया है - 2.96; अभि. अव. 26. एवमेवं एवरूपाय परिसाय यावततियं अनुस्सावितं होति, अनुस्साहित त्रि., उस्साहित का निषे. [अनुत्साहित], वह, महाव. 131.
जो उत्साहित नहीं है, ढीला-ढाला, शिथिल प्रयास करने अनुस्सावियति अनु + सु के प्रेर. का कर्म. वा., वर्त, वाला, उत्साहहीन - परस्स भण्डं वा हरति सभावतिक्खेनेव प्र. पु., ए. व. [अनुश्राव्यते], अनुश्रवण अथवा विनय अनुस्साहितेन चित्तेन, अभि. अव. 7.
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