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अन्तजातक
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अन्तमन्त
सुसङ्गहितन्तजन त्रि.. ब. स., दान आदि द्वारा अपने जनों ... मद्दन्तो विय अन्तन्तेन चरित्वा परेपातरासमेव आगन्त्वा को ठीक से रखने वाला - सुसङ्गहितन्तजनोति, तात, यस्स अत्तनो सम्पादितं भत्तं भूञ्जितुं समत्थो, जा. अट्ठ. 1.74; हि रओ अत्तनो अन्तोजनो अत्तनो वलञ्जनकपरिजनो च ... भगवन्तं उपसङ्कमित्वा अन्तन्तेनेव चरन्तो सब्बरत्ति दानादीहि असङ्गहितो होति, जा. अट्ठ. 5.113.
नानप्पकार..., उदा. अट्ठ. 53. अन्तजातक नपुं., एक जातक का नाम, जा. अट्ठ. ___ अन्तपटल नपुं., तत्पु, स. [आन्त्रपटल]. आंत का फैलाव 2.364-65.
या विस्तारण - उदरं नाम उभतो निप्पीळियमानस्स अन्तति अति का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अन्तति], बांधता है अल्लसाटकस्स मज्झे सजातफोटकसदिसं अन्तपटलं, - अति बन्धने, अन्तति, अन्तं, सद्द. 2.360.
..., खु. पा. अट्ठ. 44. अन्ततो अ., क्रि. वि. [अन्ततः], अन्त से लेकर, आखिरी अन्तपूर त्रि., तत्पु. स. [आन्त्रपूर्ण], आंत या अंतड़ी से भरा छोर से- ... अन्ततो पन मज्झतो वा पट्ठाय आदि पापेत्वा हुआ - अन्तपूरो उदरपूरो, यकनपेळस्स वत्थिनो, सु. नि. अवुत्तत्ता इतो अ नत्थेनेत्थ पटिलोमता न युज्जति, उदा. 197; तत्थ अन्तस्स पूरो अन्तपूरो, सु. नि. अट्ठ. 1.209; जा. अट्ठ. 38.
अट्ठ. 1.150. अन्तद्वय नपुं., द्वि. स. [अन्तद्वय], दो अन्त, दार्शनिक वादों अन्तप्पत्त त्रि., तत्पु. स. [अन्तप्राप्त], अन्त को पा चुका, या अवधारणाओं के दो छोर - लोकुत्तरकुसलसम्मादिट्ठियेव छोरों तक पहुंच चुका, फल को प्राप्त कर चुका, जीवन के हि अन्तद्वयमनुपगम्म उजुभावेन गतत्ता, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अन्त या मृत्यु को प्राप्त कर चुका - सो पारंगतो पारप्पत्तो 1(1).204; तेसं यदग्गेन ततो अन्तद्वयतो संसारसुद्धि न अन्तप्पतो कोटिगतो कोटिप्पत्तो परियन्तगतो .... महानि. होति. उदा. अट्ठ. 287; - यूपनिस्सय पु. [अन्तद्वयोपनिश्रय], 15; अन्तप्पत्तोति तमेवं कोकन्तं फलेन पत्तो, महानि. अट्ठ. दो प्रकार के अन्तों का आश्रय या उनपर दृढ़ विश्वास - 65. एवं अन्तद्वयूपनिस्सयेन तण्हाअविज्जानं दिहिवड्वकता अन्तबिल नपुं., तत्पु. स. [आन्त्रबिल], आंत की नली, वेदितब्बा, उदा. अट्ठ. 287; - निपतित त्रि., तत्पु. स. भोजन जाने वाली नली, आहारनलिका - एवमेव यं किञ्चि [अन्तद्वयनिपतित], दो प्रकार के अन्तों के जाल में फंसा आमासये पतितं ... आपज्जित्वा अन्तबिलेन ओगळित्वा हुआ - यथा हि तेसं समणब्राह्मणानं ... नत्थी ति ओमहित्वा ... हुत्वा तिट्ठति, खु. पा. अट्ठ. 45. अन्तद्वयनिपतितानंतण्हादिहिवसेन सम्परितसितविष्फन्दितमत्तं अन्तभार पु., कुछ संस्करणों में अन्नभार का अप., अन्न का उदा. अट्ठ. 172; - वन्तु त्रि.. [अन्तद्वयवत्], दो विभिन्न भार - सेय्यथिदं अन्नभारो वरधरो सकुलुदायी च परिब्बाजको विभक्ति-प्रत्ययों के अन्त से युक्त - यस्मा पन मयं ... परिब्बाजका, अ. नि. 1(2).204; पाठा. अन्तभार. पाळिनयानुसारेन अन्तद्वयवतो आपसहस्स पुल्लिङ्गतं अन्तभूत त्रि., [अन्तर्भूत], अन्त में आया हुआ, अन्तिम - नपुंसकलिङ्गत्तञ्च विदधाम, सद्द. 1.116; - वज्जन नपुं.. णम्हि पच्चये परे रञ्ज इच्चेतस्स धातुस्स अन्तभूतस्स तत्पु. स. [अन्तद्वयवर्जन], दो प्रकार के अन्तों का परित्याग जकारस्स जो आदेसो होति वा भावकरणेसु, क. व्या. 592. या परिवर्जन - एत्तावता हि ... तेविज्जतादीनं उपनिस्सयो, अन्तभोग पु., तत्पु. स. [आन्त्रभोग], आंत की कुण्डली या अन्तद्वयवज्जनमज्झिमपटिपत्तिसेवनानि, ..., विसुद्धि. 1.5; घुमावदार आंत - अन्तगुणन्ति अन्तभोगट्ठानेसु बन्धनं विभ. - विवज्जनानय पु., तत्पु. स. [अन्तद्वयविवर्जननय], दो अट्ठ. 229; ... एकवीसतिया ठानेसु अन्तभोगानं अन्तरा ठितं. प्रकार के अन्तों के परित्याग का प्रकार, पद्धति या तरीका विभ. अट्ठ. 229; ओकासतो कुदालफरसुकम्मादीनि ... - तत्थत्तनयो पत्तिनयो देसनानयो अन्तद्वयविवज्जनानयो यन्तफलकानि अन्तभोगे एकतो अग्गळन्ते ... एकवीसतिया अचिन्तेय्यनयो अधिप्पायनयो ति, सद्द. 2.396.
अन्तभोगानं अन्तरा ठितन्ति, खु. पा. अट्ठ. 43; पाठा. अन्तन्त त्रि., छोटा से छोटा - एथ अहं तुम्हे ... निस्साय अन्तभाग. अन्तन्ते गामे पहरन्तो दामरिकभावं जानापेत्वा ..., अ. नि. अन्तमन्त त्रि., बहुत दूर-दूर वाले, बहुत दूर-दूर के, सुदूरवर्ती अट्ठ. 2.72; पाठा, अन्तमन्ते.
- सेय्यथापि नाम गोकाणा परियन्तचारिणी अन्तमन्तानेव अन्तन्तेन अ., क्रि. वि. [अन्तन्तेन], एक किनारे या छोर से। सेवति, दी. नि. अट्ठ. 3.27; अन्तमन्तानेवाति कोचि मं पहं लेकर दूसरे किनारे या छोर तक, चारों ओर - सो हि एक पुच्छेय्याति पञआभीतो अन्तमन्तानेव पन्तसेनासनानि सेवति,
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