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अन्तविरहित
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अन्तिम
अन्तविरहित त्रि., तत्पु. स. [अन्तविरहित], वह, जिसका कोई ओर-छोर न हो, अनन्त, अप्रमाण, असीम - ...... अन्तविरहिते संसारे भवादीस सत्ते जवापेतीति अविज्जा, उदा. अट्ठ. 34. अन्तसञी त्रि., ब. स. [अन्तसंज्ञिन], वह, जो धर्मों को अन्त वाला अथवा परिसीमित मानता हो - यथासमाहिते चित्ते अन्तसञी लोकस्मिं विहरति, दी. नि. 1.19; अबढेत्वा तं लोको ति गहेत्वा पटिभागनिमित्तं चक्कवाळपरियन्तं अन्तसञी लोकस्मिं विहरति. दी. नि. अट्ठ. 1.98. अन्तसर पु., कर्म. स. [अन्त्यस्वर]. पद के अन्त में आया हुआ स्वरवर्ण - आकारन्तानं धातूनं अन्तसरस्स आय
आदेसो होति..., क. व्या. 594. अन्तातीत त्रि., अच्चन्त के लिये प्रयुक्त पर्यायभूत वचन [अन्तातीत], वह, जिसने अन्त का अतिक्रमण कर लिया है, अविनाशी - अच्चन्तन्ति अन्तातीतं अविनासधम्म, जा. अट्ठ. 5.453. अन्तानन्त त्रि, द्व. स. [अन्तानन्त], क. अन्तवाला एवं अन्त से रहित, ख. अन्त एवं अनन्त होने की अवस्था - यं आगम्म यं आरभ एके समणब्राह्मणा अन्तानन्तिका अन्तानन्तं लोकस्स पञपेन्ति, दी. नि. 1.19; - वाद पु., तत्पु. स. [अन्तानन्तवाद], लोक एवं आत्मा के अन्तवान् एवं अन्तरहित होने के तथ्य को प्रतिपादित करने वाला बुद्धकालीन सिद्धान्त - अन्तानन्तिकाति अन्तानन्तवादा, दी. नि. अट्ठ. 1.98; -न्तिक त्रि., अन्तानन्त से व्यु. [अन्तानन्तिक], वह, जो लोक एवं आत्मा आदि धर्मों की अन्तवत्ता एवं अनन्तता का प्रतिपादन करता है, अन्तानन्तवादी बुद्धकालीन धर्माचार्य - यं आगम्म यं आरब्म एके समणब्राह्मणा अन्तानन्तिका अन्तानन्तं लोकस्स पञपेन्ति, अन्तानन्तिकाति अन्तानन्तवादा, दी. नि. अट्ठ. 1.98. अन्तावसान नपुं.. तत्पु. स. [अन्तावसान], आंतो का छोर या किनारा, अंतड़ियों के शिरे - पक्कासयो नाम हेट्ठा नाभिपिट्टिकण्टकमूलानं अन्तरे अन्तावसाने उब्बेधेन अट्ठङ्गुलमत्तो वंसनळकब्अन्तरसदिसो पदेसो, खु. पा. अट्ठ.
अन्तिक त्रि., अन्त से व्यु.. [अन्तिक], समीपवर्ती, निकटवर्ती, पास वाला - अन्तिकस्स नेदो, क. व्या. 266. अन्तिकभाव पु., कर्म. स. [अन्तिकभाव], सामीप्य, निकटता - उदकस्स अन्तिकभावेन ओदकन्तिकं खु. पा. अट्ठ. 174. अन्तिके अ., अन्तिक से व्यु., सप्त. वि., प्रतिरू. निपा., प्रायः ष./सप्त वि. में अन्त होने वाले पद के साथ प्रयुक्त [अन्तिके], समीप में, निकट में, पास में - एहि गच्छाम पितु ममन्तिके, एसोव ते एतमत्थं पवक्खतीति, जा. अट्ठ. 7.156; जीवञ्च नंगहेत्वान, आनयेहि ममन्तिके ति, जा. अट्ठ. 4.247; तस्मिं रुक्खे निब्बत्तदेवताय, सन्तिके पुत्तधीतुयसधनादीसु यं यं इच्छति, तं ते पत्थेन्तं, जा. अट्ठ. 1.252; पाठा. सन्तिके; एवं सदेवका लोका, ओसरन्तु तवन्तिके बु. वं. 2.1863; तुल. अन्तिकं, सन्तिके. अन्तिम' त्रि., अन्त से व्यु. [अन्तिम], क. अन्त में आया हुआ, ख. सबसे निचला, ग. सबसे अधिक निकटवर्ती - अनित्थन्तो परियन्तो पन्तो च पच्छिमान्तिमा, अभि. प. 7143; सरीरञ्च अन्तिमं धारेति, पत्तो च सम्बोधिमनुत्तरं सिवं सु. नि. 482; अच्छिन्दि भवसल्लानि, अन्तिमोयं समुस्सयो, ध. प. 351; अन्तिमे वत्तमानम्हि, सो निवासो भविस्सति, दी. नि. 2.212; अन्तिमे वत्तमानम्हीति अन्तिमे भवे वत्तमाने, दी. नि. अट्ठ. 2.298; उभिन्न भावितत्तानं सरीरन्तिमधारिनन्ति. सं. नि. 1(1).74; धारेति अन्तिमं देहं जेत्वा मारं सवाहिनिन्ति, इतिवु. 37; - गन्धन त्रि., कुल में सबसे निकृष्ट या अधम - तं कुल्लवत्तं अनुवत्तमानो, माहं कुले अन्तिमगन्धनो अहं जा. अट्ठ. 4.31; माहं कुले अन्तिम गन्धनो अहुन्ति अहं अत्तनो कुले सब्ब पच्छिमको चेव कुलपलापो च मा अहुन्ति सल्लक्खेत्वा .... जा. अट्ठ. 4.31; - जीविक त्रि., ब. स. [अन्तिमजीविक], जीविका उपार्जन के निकृष्ट साधनों के सहारे जीने वाला - सा एवमाह ... पाटलिपुत्ते गणिका रूपूपजीविनी अन्तिमजीविका, मि. प. 127; - देहधर त्रि०, अन्तिम देह या शरीर को धारण करने वाला - अहमस्मि, भिक्खवे, बाह्मणो याचयोगो सदा पयतपाणि अन्तिमदेहधरो अनुत्तरो भिसक्को सल्लकत्तो, इतिवु. 73; - देहधारी त्रि., उपरिवत् - खीणासवो अन्तिमदेहधारी, तथागतो अरहति पूरळासं सु. नि. 475; यो होति भिक्खु अरह कतावी, खीणासवो अन्तिमदेहधारी, स. नि. 1(1).16; सो वुत्थवासो परिपुण्णमानसो, खीणासवो अन्तिमदेहधारी, जा. अट्ठ. 1.183; - पच्छिमगतिक त्रि., ब. स. [अन्तिमपश्चिमगतिक], सबसे निकृष्ट या अधम अवस्था वाला, निकृष्टतम स्थिति
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अन्ति/अन्तिम अ., अन्त से व्यु.. क्रि. वि. [अन्ते], समीप में, निकट में, पास में, उपस्थिति में - सुधाविवादेन तवन्तिमागता, तं मं सुधाय वरपञ भाजय, जा. अट्ठ. 5.394; तवन्तिमागताति तव सन्तिकं आगता, जा. अट्ठ. 5.395.
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