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अन्धकार
तमभूत यापि ता. अन्धकारा अन्धकारतिमिसा म. नि. 3.162; अन्धकाराति तमभूता, म. नि. अट्ठ० (उप. प.) 3. 130; यो अन्धकारे तमसि पभङ्करो, स० नि० 1 ( 1 ). 61; अन्धकारेति चक्खुविज्ञाणुप्पत्ति निवारणेन अन्धभावकरणे, स० नि० अ०
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1.97.
अन्धकार' पु०, श्रीलङ्का के एक प्राचीन ग्राम का नाम अन्धकारे अन्तुरेति बालवं द्वारनायक यू यं. 46.13. अन्धकारगब्म पु०, अन्धकार से भरा हुआ प्रकोष्ठ या कमरा इतरेपि चत्तारो पण्डिता अन्धकारगब्भं पविट्ठा विय न किञ्चि पस्सिंसु, जा. अट्ठ. 6.179-80. अन्धकारतमोनुदत्रि. गहरे अन्धकार को मिटा देने वाला बुद्धो अयं अनुष्यत्तो, अन्धकारतमोनुदो अप. 1.46; चक्षु सब्बस्स लोकरस, अन्धकारे तमोनुदो, थेरगा. 1051. अन्धकार तिमिसा स्त्री. कर्म. स. [अन्धकारतमिस्रा ], काली अंधियारी रात, गहरा अज्ञान तेन समयेन होति अन्धकारो अन्धकारतिमिसा दी. नि. 3.62-63 अन्धकारतिमिसाति चक्खुविञाणुष्पत्तिनिवारणेन अन्धभावकरणं बहलतमं दी. नि. अड. 3.44 अन्धकारतिमिसायं, तुझे उपरिपब्बते जा. अट्ट. 3.383; तत्थ अन्धकारतिमिसायन्ति अन्धभावकारके तमे, जा. अट्ठ. 3.384; अप. अन्धकारतिमिस्सा. अन्धकारपरेत त्रि. व. स. [अन्धकारपरेत]. अंधेरे में डूबा हुआ, अन्धकार से अभिभूत अन्धकारपरेतोति चतुरङ्गसमन्नागतेन अन्धकारेन किञ्चि अत्तत्थं वा परत्थं वा कातुं असक्कुणेय्यभावेन अभिभूतो विसुद्धि महाटी. 2.444. अन्धकारपीळित त्रि., तत्पु० स० [अन्धकारपीड़ित ], अंधेरे से पीड़ित निक्खममानो... निक्खमति अन्धकारपीळितो वा - आलोकत्थाय स. नि. अड. 2.252.
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अन्धकारवग्ग पु. पाचि के अर्न्तगत भिक्खुनी विभङ्ग के पाचित्तियकण्ड के दूसरे वग्ग का शीर्षक, पाचि, 366-380. अन्धकारसमाकुल त्रि. तत्पु. स. अज्ञान के अन्धकार से
भ्रमग्रस्त समुद्धरसिमं लोकं, अन्धकारसमाकुलं, अप. 1.85. अन्धकाराभिनिवेस त्रि. ब. स. अन्धेपन या अज्ञान की ओर प्रवृत्त, अज्ञान के प्रति लगाव रखने वाला आदानाधिष्पाया अन्धकाराभिनिवेशा अदरसनपरियोसाना ति अ. नि. 2 ( 2 ) 76, अन्धकारत्थाय एतेसं चित्तं अभिनिवसतीति अन्धकाराभिनिवेसा, अ. नि. अड्ड. 3.122.
अन्धीकत त्रि.. अन्ध + कर का भू. क. कृ. [अन्धीकृत ]. शा. अ. अन्धा कर दिया गया व्यक्ति, वह, जो पहले अन्धा नहीं था, बाद में अन्धा बना दिया गया है, ला. अ.
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अन्न
मोहग्रस्त, अविद्याग्रस्त अन्धा कताति अन्धीकता, उदा. अड्ड 298 तेन खो पन समयेन... अज्झोपन्ना अन्धीकता सम्मत्तकजाता कामेसु विहरन्ति, उदा. 158; अन्धीक कामा नाम अनन्यम्पि अन्धं करोन्ति, उदा. अड्ड. 297 मूतहा सम्मूळ्हा सम्पमूल्हा अविज्जाय अन्धीकता आयुता पटिकुज्जिता, महानि, 19 अविज्जाय अन्धीकताति अद्वसु ठानेसु अञ्ञाणाय अविज्जाय अन्धीकता, महानि. अट्ठ. 75. अन्धेति / अन्धयति अन्ध (दृष्टि का उपसंहरण) का वर्त.. प्र. पु. ए. व. [ अन्धयति] 1. अंधा होता है 2. अंधा कर देता है या अंधा बनाता है अन्धो ति अन्धेती अन्धो, सद. 2.548 यिंसु अद्य प्र. पु. ब. व. अन्धोति अन्धयति चकवूनि अन्धविसु, सद. 2.548.
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अन्घनारक पु०, व्य. सं., श्रीलङ्का के एक गांव का नाम - कतकं च तुलाधारं अन्धनारकं एव च म. वं. 46.12. अन्न नपुं. असे व्यु [ अन्न ], वह जो खाया जाए. भोजन, भात ओदनों वा कुरं भत्तं भिक्खा चान्नं अभि. प. 465 1103 सालीनमन्नं परिभुज्जमानो, सो... सु. नि. 243 244 अन्नमेवाभिनन्दन्ति, उभये देवमानुसा सं. नि. 1 (1) 36: वत्थानि गन्धमाला च अन्नानि मधुराणि च म. वं. 29.21; अन्नानमयो पानानं खादनीयानं अधोपि वत्थान सु. नि. 930; ततो च पातो उपयुत्थुपोसथो अन्नेन पानेन च भिक्खुरा सु. नि. 405 अन्नेनाति यागुभत्तादिना सु. नि. अ. 2.98 कथा स्त्री, तत्पु, स. [अन्नकथा]. भोजन से सम्बन्धित कथन या खाने पीने के बारे में बातचीत राजकथं चोरकथं... अन्नकथं पानकथं ... इत्विकथं ... इतिभवाभवकथं इति वा इति दी. नि. 1.7:किच्च नपुं तत्पु, स. [ अन्नकृत्य ] भोजन ग्रहण करने की क्रिया कतन्नकिच्चो सरणेसु ते उभो दा. व. 1.59 - न्नग्ग नपुं., कर्म. स. [ अन्नाग्र], उत्तम भोजन, मनपसन्द भोजन अप्पका ते सत्ता ये अन्नग्गरसग्गानं लाभिनो अ. नि. 1 ( 1 ) .50; - न्नद्विक त्रि. [ अन्नार्थिन् ], अन्न की इच्छा रखने वाला, भोजन की तलाश करने वाला यंनूनाहं इमासं पोक्खरणीनं तीरे एवरूपं दानं पट्टपेय्यं अन्नं अन्नद्विकस्स, पानं पानद्विकस्स... दी. नि. 2.134; द पु.. [ अन्नद]. अन्न या भोजन देने वाला दो प्र. वि. ए. च. अन्नदो बलदो होति. स. नि. 1 ( 1 ) .36; भुत्वा पन दुब्बलोपि हुत्वा बलसम्पन्नो होति तस्मा अन्नदो बलदोति आह, स. नि. अट्ठ. 1.74; दा प्र. वि. ब.व. अन्नदा बलदा चेता, सु. नि. 299; तस्मा अन्नदा बलदा वण्णदा
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