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अनूप/अनोप
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अनेकंस सभी प्रकार की आसक्तियों से मुक्त, लगाव से रहित -- मायञ्च मोहञ्च पहाय धोनो, स केन गच्छेय्य अनूपयो सो, सु. नि. 792; तत्थ उपयोति तण्हादिट्टिनिस्सितो ... अनूपयं केन कथं वदेय्याति तण्हादिद्विपहानेन अनूपयं खीणासवं केन रागेन ... दुट्ठोति वा वदेय्य, सु. नि. अट्ठ. 2.217; सब्बं लोकं अभिआय, ... विसंयुत्तो, सब्बलोके अनूपयो, अ. नि. 1(2).28. अनूपलित्त त्रि., उप + लिप के भू. क. कृ., उपलित्त का निषे. [अनुपलिप्त], द्रष्ट. अनुपलित्त के अन्त. (ऊपर). अनूपवदन/अनूपवाद/अनूपवादक द्रष्ट. अनुपवाद के
अन्त. (ऊपर). अनूपादि त्रि., सस्सती के अर्थ को स्पष्ट करने हेतु प्रयुक्त, बराबर विद्यमान रहने वाला, आदि और अन्त से रहित, शाश्वत - तीस्वनूपाद्ययो चन्द-सूरादो सस्सतीरितो, अभि. प. 189. अनूलका स्त्री., व्य. सं., द्रष्ट. अनुला के अन्त., (ऊपर). अनूसय पु., द्रष्ट. अनुसय के अन्त. - चरितं अधिमुत्तिञ्च
आसञ्च अनूसयं, दी. वं. 1.42. अनूसर त्रि., ऊसर का निषे. [अनूषर], नमक या रेहकणों से रहित, वह भूमि, जो बञ्जर न हो - इध, भिक्खवे, खेत्तं अनुन्नामानिन्नामि च होति, ..., अनूसरञ्च होति, ..., अ. नि. 3(1).70. अनूहत त्रि०, उ + Vहन के भू. क. कृ. का निषे. [अनुदधृत अथवा अनुद्धत], अनुत्पाटित, वह, जिसे उच्छिन्न नहीं कर दिया गया है अथवा हटाया न गया हो - एवम्पि तहानुसये अनूहते, निब्बत्तती दुक्खमिदं पुनप्पुन, ध. प. 338; एवमेव छद्वारिकाय तण्हाय अनुसये अरहत्तमग्गाणेन अनूहते ... पुनप्पुनं निब्बत्ततियेवाति अत्थो, ध. प. अट्ठ. 2.306-7; नपि पस्सं निपातेस्सं. तहासल्ले अनुहते, थेरगा. 223. अनेक त्रि., एक का निषे. [अनेक], एक की संख्या से
अधिक संख्या वाला, कई एक, बहुत सारे, असंख्य - कचि पन एत्थ ... चिन्तयित्वान अनेककोटिसत धनन्ति एत्थ ..., सद्द. 3.631; एवमस्सिमे अनेके पापका अकुसला धम्मा सम्भवन्ति मिच्छादिट्टिपच्चया, म. नि. 2.72; अस्माभिजप्पन्ति जना अनेकाति, स. नि. 1(1).169; यदा कदा'नेक रूप में भी प्रयुक्त. अनेकंस पु., एकंस का निषे., अनिश्चितता, सन्देह - ब्राह्मणो नाम संसयमनेकसं विमतिपथं वीतिवत्तो.... मि. प. 212; - ग्गाह पु., एकंसग्गाह का निषे., किसी एक
[अनूनाधिकवचन], न कम और न अधिक विस्तार वाला वचन, सन्तुलित वचन, परिपूर्ण वचन - परिपुण्णन्ति अनूनाधिकवचनं, दी. नि. 1.145; म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).105. अनूप/अनोप त्रि., अनु + आप से व्यु. [अनूप], जलीय क्षेत्र, जल की बहुलता वाला स्थान या प्रदेश, नदी का तटवर्ती क्षेत्र, दलदली क्षेत्र - अनूपो सलिलप्पायो कच्छं पुमनपुंसके अभि. प. 187; मन्दवडिकाले थले खेत्ते विपज्जति, निन्ने थोकं सम्पज्जति, अनूपखेत्ते सम्पज्जतेव, जा. अट्ठ. 4.342; - खेत्त नपुं., कर्म. स. [अनूपक्षेत्र], जल की बहुलता वाला क्षेत्र या स्थान, दलदली क्षेत्र, कछार - थले च निन्ने च वपन्ति बीजं, अनूपखेत्ते फलमासमाना, जा. अट्ठ. 4.342; अनूपखेत्ते नदिञ्च तळाकञ्च निस्साय कतं ओघेन वुय्हति, तदे; तस्सा चानुपखेत्तम्हि, सयम्भू वसते तदा, अप. 1.194; - तित्थ नपुं.. कर्म. स. [अनूपतीर्थ]. नदी के जल की बहुलता वाला तट, दलदली किनारा - अनूपतित्थे जायन्ति, पदुमुप्पलका बहू अप. 1.380; - भूमि स्त्री., कर्म. स. [अनूपभूमि], पानी की बहुलता वाली भूमि - हरितानूपाति उदकनिद्धमनस्स उभोसु पस्सेसु हरिततिणसञ्छन्ना अनूपभूमियो, जा. अट्ठ. 4.321. अनूपघात पु., उपघात का निषे., [अनुपघात], उपघात या हिंसा का अभाव, अद्वेष, अनुत्पीड़न, क्षति या हानि का अभाव, अप्रहार - अनूपवादो अनूपघातो, ध. प. 185%; अनूपधातोति अनूपघातनञ्चेव अनूपघातापनञ्च, ध. प. अट्ठ. 2.136-137; अनूपवादो अनूपघातो, पातिमोक्खे च संवरो, उदा. 117; इति मरहञ्च अविहेसा भविस्सति परस्स च पुग्गलस्स अनूपघातो, म. नि. 3.27. अनूपघातन नपुं, उपघातन का निषे. [अनुपघातन], उपरिवत् - अनूपघातनञ्चेव अनूपघातापनञ्च, ध. प. अट्ठ. 2.136-137. अनूपम'/अनुपम त्रि., ब. स. [अनुपम]. बेजोड़, वह, जिसकी किसी से उपमा न दी जा सके, श्रेष्ठ, उत्तम -
पूजा पूजं सब्बोपहारेहि करोन्तो च अनूपम, महाव. 37.72. अनूपम पु., व्य. सं., थेरगा. की दो गीतियों के रचयिता एक स्थविर कवि का नाम, थेरगा. 213-14; थेरगा. अट्ठ. 1.364-65. अनूपय त्रि., उप + इ से व्यु. उपय (ऊपय) का निषे. [अनुपय, उप + Vइण + अच् = उपय का निषे.], शा. अ. वह, जो किसी के पास पहुंचने वाला नहीं हैं, ला. अ.
- इध, भिक्खये
मानन्नामि च होति
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