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अनोरमन्त
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अनोवादक
अनोरमन्त, अनोरमित्वा द्रष्ट. ओरमति के अन्त... अनोवट त्रि०, ओवट का निषे॰ [अनावृत], शा. अ. बन्द अनोरोपक त्रि., ओरोपक का निषे. [अनवरोपक], नीचे न नहीं किया हुआ, खुला खुला, ला. अ. अवर्जित, अप्रतिषिद्ध रख देने वाला, न उतार फेंकने वाला - अनिक्खित्तधुरोति - अनोवटो भिक्खूनं भिक्खुनीसु वचनपथो, पाचि. 76; वीरियधुरस्स अनोरोपको, महानि. अट्ठ. 329.
चूळव. 419; अ. नि. 3(1).106; अनोवटोति अपिहितो अवारितो अनोरोपितधुर त्रि., ब. स. [अनवरोपितधुर], वह, जिसने अप्पटिक्खित्तो, पाचि. अट्ठ. 58. बोझे या भार को नहीं उतार फेंका हो, वीर्यवान, अध्यवसायी अनोवट्ट/अनोवट्ठ त्रि., अव + Vवस्स के भू. क. कृ. का - अनिक्खित्तधुरो कुसलेसु धम्मेसूति कुसलेसु धम्मेसु । निषे. [अनववृष्ट], वह क्षेत्र या प्रदेश, जहां पर वर्षा नहीं
अनोरोपितधुरो अनोसक्कितवीरियो, अ. नि. अट्ठ. 3.2. हुई है, बिना वर्षा वाला समय या स्थल - अनोवढेन उदक, अनोरोहितधुर त्रि., ब. स., उपरिवत् - अनिक्खित्तधुरोति महिया उब्भिज्जि तावदे, बु. वं. 300; जा. अट्ठ. 1.24;
अनोरोहितधुरो अनोसक्कितवीरियो, उदा. अट्ठ. 190. अनोवढेनाति अनोवटे, भुम्मत्थे करणवचनं, बु. वं. अट्ठ. अनोलग्ग त्रि., अव + Vलग के भू. क. कृ. का निषे. 116. [अनवलग्न], अलिप्त, अप्रभावित, राग, तृष्णा आदि में मन अनो वदितु काम त्रि., ओवदितुकाम का निषे. को लिप्त न करने वाला - अकम्पितो अनोलग्गो, [अनववदितुकाम], अववाद की शिक्षा देने की इच्छा न एवमेवमदासह, चरिया. 372.
रखने वाला - ते पुत्तेन मिगमाया उग्गहिताति वत्वा इदानि अनोलीन त्रि., ओलीन का निषे. [अनवलीन], वह, जो पितं अनोवदितुकामोव हुत्वा, इमं गाथमाह, जा. अट्ठ. 1.162. संकुचित चित्त वाला न हो, उदारचित्त, निम्न मनोवृत्ति न अनोवदियमान त्रि., अव + Vवद के कर्म. वा. के वर्त. कृ., रखने वाला - अकम्पितो अनोलीनो, ददेय्य दानमुत्तम, आत्मने का निषे., वह, जिसे अववाद की शिक्षा प्राप्त नहीं चरिया. 372; अनोलीनो विहरति, उपसन्तो सदा सतो ति, हो रही है, अववाद-शिक्षा न पा रहा भिक्षु - तेन खो पन मि. प. 363; - मानस त्रि., ब. स. [अनवलीनमानस], वह, समयेन सद्धिविहारिका अनुपज्झायका अनाचरियका जिसका मन संकुचित या संकीर्ण नहीं है, उदार मन वाला अनोवदियमाना, महाव. 50. - असज्जित्वा अबज्झित्वा अनोलीनमानसो हुत्वा गिरि.... अनोवस्स त्रि., ओवस्स का निषे. [अनववर्ष, निरावर्ष], वर्षा जा. अट्ठ. 7.347; - विरिय त्रि., ब. स. [अनवलीनवीर्य], के जल से अप्रभावित रहने वाला, बराबर सूखा बना रहने सुदृढ़ पराक्रम वाला, उद्योगी, अशिथिल - एवं त्वम्पि ... वाला, वर्षा-रहित - घटिकारस्स कुम्भकारस्स आवेसनं दळहवीरियो अनोलीनवीरियो समानो बुद्धो .... जा. अट्ठ. अनोवस्सं आकासच्छदनं अहोसि, मि. प. 210; देवम्हि 1.29; - वुत्तिक त्रि., ब. स. [अनवलीनवृत्तिक], अशिथिल वस्समानम्हि, अनोवस्सं भवं अका, जा. अट्ट. 5.308; सचे अथवा दृढ़ जीवनवृत्ति वाला, उद्योगी एवं अशिथिल मनोवृत्ति आरअकेनापि, अनोवस्से च नो सति, विन. वि. 1066; - वाला - ... अनोलीनवृत्तिको च होति असाथलिको, म. नि.. क त्रि., अनोवस्स से व्यु. [अनववर्षक], उपरिवत् - यो 1.264; अप्पमत्तोति ... अद्वितकारी अनोलीनवुत्तिको देसो अनोवस्सको होति, चूळव. 354; तेन हि घटिकारस्स अनिक्खित्तच्छन्दो अनिक्खित्तधुरो कुसलेसु धम्मेसु, महानि. कुम्भकारस्स आवेसनं अनोवस्सक अहोसि... वचनं पच्छा, 42; - दुत्तिता स्त्री॰, भाव. [अनवलीनवृत्तिता], कर्तव्य मि. प. 210; तिणपण्णच्छदनं अनोवस्सक मण्डलमाळोति पालन के लिये शिथिलता - अनोलीनवृत्तिताति अलीनजीविता, वदन्ति, उदा. अट्ठ. 163; पाचि. 373. अलीनपवत्तिता वा, ध. स. अट्ठ. 426; ... अनोलीनवृत्तिता अनोवस्सिक त्रिं., [अनववर्षिक], वर्षा से सर्वथा अप्रभावित अनिक्खित्तछन्दता अनिक्खित्तधुरता आसेवना भावना स्थान - परित्तञ्च अनोवस्सिक, महा च मेघो उग्गतो, बहुलीकम्म, ध. स. 1379.
महाव. 239. अनोलेकेन्त त्रि., अव + Vलोक के वर्त. कृ. का निषे.. अनोवादक त्रि., ओवादक का निषे. [अनववादक], क. वह
अवलोकन करता हुआ, द्रष्ट. ओलोकेति के अन्त.. व्यक्ति, जिसका कोई मार्गदर्शक न हो या जिसे करने योग्य अनोळारिकसभावता स्त्री.. भाव. ओळारिकसभावता का एवं न करने योग्य की शिक्षा न मिली हो - अनोवादका निषे., वह, जो स्थूल नहीं है, सूक्ष्मता - दारुणा न होन्तीति मनुस्सा फरुसा अहेसु, जा. अट्ठ. 3.266; ख. परामर्श या अनोळारिकसभावताय सुखुमाति वुत्ता, उदा. अट्ठ. 192. मार्गदर्शन को ग्रहण न करने वाला, अप्रशिक्षित - तस्स
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