________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनोवादकर
323
अनोहितसोत
अनोवादकस्स मा चिन्तयि, जा. अट्ठ. 1.162; न करोति अनोसक्कितमानस त्रि., ओसक्कितमानस का निषे., ब. सासनन्ति अनसिटुं न करोति, दुब्बचो अनोवादको होति, स., मन की शिथिलता से रहित, प्रबल उत्साहभाव से मुक्त जा. अट्ठ. 1.235; -- त्त नपुं, अनोवादक का भाव. - तेनाह अनोसक्कितमानसो'ति, पहानत्थायाति [अनववादकत्व], उचित मार्गदर्शन का अभाव - मिगालोपो समुच्छिन्नत्थाय, अ. नि. अट्ठ. टी. 3.2; - ता स्त्री.,
अनोवादकत्ता पितु वचनं अकत्वा .... जा. अट्ठ. 3.223. भाव., प्रबल उत्साहशीलता - आरद्धवीरियोति अनोवादकर त्रि., ओवादकर का निषे. [अनववादकर], दी। पग्गहितवीरियो अनोसक्कितमानसो, अ. नि. अट्ठ. 3.2; धुरं गयी शिक्षा अथवा मार्गदर्शन के अनुसार आचरण न करने न निक्खिपति, ... अनोसक्कितमानसतं आवहति, महानि. वाला, उच्छृखल - .... दुब्बचो वा अनोवादकरो, अट्ठ. 332. येनकामंगमो वा आचरियं अनापुच्छाव यत्थिच्छति, विसुद्धि. अनोसक्कितवीरिय त्रि., ओसक्कितवीरिय का निषे., ब. 1.112; अनोवादकरे दिजेति तस्मिं भिगालोपे ... गन्त्वा स., प्रबल वीर्य या पराक्रम वाला, उद्योगी, उत्साही - विनासं पापुणिंसु, जा. अट्ठ. 3.224.
अनिक्खित्तधुरोति अनोरोहितधुरो अनोसक्कितवीरियो, उदा. अनोवादी त्रि., ओवादी का निषे. [अनववादी], वह, जिसे अट्ठ. 190; अनिक्खित्तधुरो कुसलेसु धम्मसूति ... परामर्श देने अथवा आज्ञा देने की आवश्यकता नहीं है, अनोरोपितधुरो अनोसक्कितवीरियो, अ. नि. अट्ठ. 3.2. करने अथवा न करने की अववाददेशना न देने वाला - अनोसक्कियमान त्रि., अव + सक्क के कर्म. वा. में वर्त. तत्थाहं अनोवादी अनुपवादी घासच्छादनपरमो विहरामि, म. कृ. [अनपसृप्यमान], वह, जो किसी के द्वारा विचलित या नि. 2.360; अनोवादी अनुपवादीति ताता, कसथ, वपथ, अनुत्साहित नहीं किया जा रहा है - मानस त्रि., ब. स. वणिप्पथं, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.28.
[अनपसृप्यमानमानस], वह, जिसका मन किसी के भी द्वारा अनोवुट्ठ/अनोवट्ठ त्रि., ओवुट्ठ का निषे., द्रष्ट. विचलित या उत्साहहीन नहीं बनाया जा सकता है - अनोवट्ट/अनोवुट्ठ के अन्तः, ऊपर.
अनिवत्तमानसन्ति अनोसक्कियमानमानसं, बु. वं. अट्ठ. 287. अनोसक्कन नपुं., ओसक्कन का निषे., अव + सक्क से अनोसारित त्रि., ओसारित का निषे., वह भिक्षु, जिसे सङ्घ में व्यु. [अनपसर्पण, अनपष्वक्षण], शा. अ. पीछे की ओर पुनः प्रवेश की अनुमति नहीं मिली है, सङ्घ से बहिष्कृत एवं कदम न खींचना, वापस न भागना, ला. अ. पराजित न पुनर्वास की अनुमति को अप्राप्त भिक्षु - अकटानुधम्मो नाम होना, हिचकिचाहट न करना - एवं अनोसक्कनं समग्गभावेन उक्खित्तो अनोसारितो, पाचि. 183. अमेज्जचित्तानं, वीरियञ्च परिसपरक्कमो च थिरो अहोसि, अनोसित त्रि., अव + सि के भू, क. कृ. का निषे. जा. अट्ठ. 3.6; - ता स्त्री., ओसक्कनता का निषे [अनवश्रित], क. वह, जो किसी का आश्रय या शरणस्थल [अनपसर्पणत्व], पीछे की ओर कदम न खींचना, पराजित नहीं है, ख. अड्डा या आश्रय न बना लेने वाला, अपने प्रसार न होना -- अप्पटिवानिता च पधानस्मिन्ति अरहत्तं अपत्वा का क्षेत्र न बनाने वाला - इच्छं भवनमत्तनो, नाबसासिं पधानस्मिं अनिवत्तनता अनोसक्कनता, ध. स. अट्ठ. 100; - अनोसितं, सु. नि. 220; नादसासिं अनोसितन्ति किञ्चि ठानं भाव पु., उपरिवत् - ... छन्न बोज्झङ्गानं जरादीहि अनज्झावुत्थं नादक्खिं सु. नि. अट्ठ. 2.258. अनोसक्कनअनतिवत्तनभावसाधको..., विभ. अट्ठ. 296. अनोसीदन नपुं.. अव+/सद से व्यु. (अवसीदन) का निषे. अनोसक्कना स्त्री., ओसक्कना का निषे. [अनपसर्पण], [अनवसीदन], शा. अ. नहीं डूबना, ला. अ. निरुत्साह उपरिवत - तत्थ अप्पटिवानिताति अप्पटिक्कमना या विषाद से ग्रस्त न होना; - पच्चुपट्ठान नपुं.. ब. स. अनोसक्कना, अ. नि. अट्ठ. 2.5.
[अनवसीदनप्रत्युपस्थान], उत्साह या वीर्य के भाव से अनोसक्कमान त्रि., अव + सक्क के आत्मने, वर्त. कृ., प्रकाशित होने वाला - तं पग्गहलक्खणं, उपत्थम्भनरसं.
ओसक्कमान का निषे. [अनपसर्पणत्], अपसरण अथवा । अनोसीदनपच्चुपट्टानं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).90-91. पीछे की ओर पलायन न करता हुआ, पराजित न होता अनोहितसोत त्रि., ब. स., ओहितसोत का निषे. हुआ, विचलित न होता हुआ - दासिया वुत्तगाथाय । [अनवहितश्रोत], कान लगाकर ध्यान से न सुनने वाला, सब्बसमागतानन्ति सब्बेसं ... अविकम्पमाना अनोसक्कमाना, किसी बात को ध्यान से न सुनने वाला - अनोहितसोतो, जा. अट्ठ. 4.277.
भिक्खवे, अनुपनिसो होति. अ. नि. 1(1).228.
For Private and Personal Use Only