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अनेलमूग/अनेळमूग
अनोग्गत वाचाय समन्नागतो विस्सट्ठाय अनेलगलाय अत्थस्स विवेके यत्थ दूरम, ध. प. 87; ओका अनोकमागम्याति ओक विआपनिया ..., दी. नि. 1.99; अनेलगलायाति वुच्चति आलयो, ध. प. अट्ठ. 1.338; - सारी त्रि.. बेघर या एलगळेनविरहिताय, दी. नि. अट्ट, 1.2273; अनेलगळायाति गृहत्याग कर विचरण करने वाला - तस्मा तथागतो एला वृच्चति दोसो, तं न पग्घरतीति अनेलगळा, ताय अनोकसारी ति वुच्चति, एवं खो, गहपति, अनोकसारी होति, निदोसायाति अत्थो, उदा. अट्ठ. 255; अनेलगलायाति यथा स. नि. 2(1).10; अनोकसारी होतीति एवं कम्मविआणेन दन्धमनुस्सा मुखेन खेळ गळन्तेन वाचं भासन्ति, न एवरूपाय, ओकं असरन्तेन अनोकसारी नाम होति. स. नि. अट्ठ. अथ खो निद्दोसाय विसदवाचाय, स. नि. अट्ठ. 2.210. 2.228; अनोकसारिमप्पिच्छ, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं, सु. नि. अनेलमूग/अनेळमूग त्रि., एळमूग का निषे. [अनेडमूक], 633.
शा. अ. वह, जो बधिर एवं मूक न हो, ला. अ. बुद्धिमान, अनोकास क. पु., ओकास का निषे० [अनवकाश], स्थान पण्डित, निपुण - तहक्खयं पत्थयमप्पमत्तो, अनेळमूगो अथवा क्षेत्र का अभाव, अनुपयुक्त स्थान या विषय, अविषय, सुतवा सतीमा, सु. नि. 70; अप्पका ते सत्ता ... अजळा अगोचर - अनोकासं कारेत्वा, मो. व्या. 3.12; इधेकच्चो अनेळमूगा पटिबला सुभासितदुभासितस्स अत्थमआसु. अ. भिक्खु कुलानि उपगन्त्वा अनोकासे ठितो ठानं भजति, मि. नि. 1(1).48; येसं एळा मुखतो न गळति, ते अनेळमूगा नाम प. 215; ख. त्रि.. पर्याप्त स्थान से रहित, स्थान न पाने अनेळमुखा निदोसमुखाति अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 1.366. वाला - द्वारानि अनोकासानि अहेसुंध. प. अट्ठ. 2.252; अनेसना स्त्री., एसना का निषे. [अनेषणा, अणेसणा], शा. ततो एकच्चे द्वारेसु ओकासं अलभमाना पाकार भिन्दित्वा अ. (भोजन को) अनुचित साधनों द्वारा पाने की कामना, पलाता, खु. पा. अट्ठ. 132; - कत त्रि., ब. स. ला. अ. चीवर, पिण्डपात आदि को प्राप्त करने हेतु [अनवकाशकृत]. वह, जिसे अनुमति या अनुमोदन प्राप्त अपनाए गये अनुचित उपाय, अनुचित कामना, अप्रतिरूप नहीं हुआ है, सङ्घ द्वारा अननुमोदित - कथहि नाम, इच्छा - ..., न च चीवरहेतु अनेसनं अप्पतिरूपं आपज्जति, भिक्खवे, भिक्खुनियो अनोकासकतं भिक्खं पहं पुच्छिस्सन्ति, दी. नि. 3.179; अनेसनन्ति, दूतेय्यपहिनगमनानुयोगप्पभेद पाचि. 477; अनोकासकतन्ति असुकस्मिं नाम ठाने पुच्छामीति नानप्पकारं अनेसनं, दी. नि. अट्ठ. 3.178; दायकस्स हि । एवं अकतओकासं, पाचि. अट्ठ. 219; - कतसिक्खापद निमन्तनं एकवीसतिया अनेसनासु अञ्जतराय ... नाम नपुं., कर्म. स., वि. पि. पाचि. के एक खण्ड का शीर्षक, होति, जा. अट्ठ. 4.336; आचारसीलसम्पन्नेति एकवीसतिया पाचि. 477; - त्त नपुं., अनोकास का भाव. [अनवकाशत्त्व], अनेसनाहि जीविककप्पनं अनाचारो नाम, जा. अट्ठ. 3.365; प्रयोग का क्षेत्र न होना, प्रयोग-हेतु उपयुक्त स्थान न होना यो पन इमस्मि सासने पब्बजित्वा एकवीसतिअनेसनं पहाय - ईदिसे ठाने परभूतानं यो अनादीनं वचनानं अनोकासत्ता, चतुपारिसुद्धिसीले पतिद्वाय बुद्धवचनं .... म. नि. अट्ठ. ... सद्द. 1.140; - भूत त्रि., [अनवकाशभूत], प्रयोग हेतु (मू.प.) 1(2).136.
उचित स्थान न बनने वाला, अनुपयुक्त स्थान बना हुआ, अनेसमान त्रि., Vईस के वर्त. कृ., आत्मने. का निषे., स्वयं वह, जो किसी धर्म के लिये उपयुक्त स्थल नहीं है - अपना स्वामी न होता हुआ, अपने पर नियन्त्रण न करने अनोकोति अभिसङ्कारविज्ञआणादीनं अनोकासभूता, सु. नि. वाला, अनीश्वर - यं पित्वा चित्तस्मिं अनेसमानो, आहिण्डती अट्ठ. 2.265. गोरिव भक्खसादी, जा. अट्ठ. 5.15; अनेसमानोति अनिस्सरो, अनोक्कन्त त्रि., अव + ।कमु के भू. क. कृ. का निषे. जा. अट्ठ. 5.17.
[अनवक्रान्त], द्रष्ट. अनवक्कन्त के अन्त. - धम्मा अनोक त्रि., ओक का निषे.. ब. स. [अनौक], क. शा. अ. एकन्तकुसला कुसलायातिका अरिया लोकुत्तरा अनवक्कन्ता बेघर, गृहविहीन, ला. अ. सांसारिक आसक्तियों एवं इच्छाओं पापिमता, म. नि. 3.157. से पूरी तरह से मुक्त - सो तेहि फुट्ठो बहुधा अनोको, वीरियं अनोग्गत त्रि., अव + गम के भू. क. कृ. (अवगत) का परक्कम्मदळ्हं करेय्य, सु. नि. 972; अनोकोति निषे. [अनवगत], सूर्य के समान नहीं डूबा हुआ, सूर्य की अभिसवारविज्ञआणादीनं अनोकासभूतो, सु. नि. अट्ठ. तरह अस्त न हो चुका - अनोग्गतस्मिं सूरियस्मिं, ततो 2.265; ख. पु./नपुं., गृहविहीनता, बेघर होने की स्थिति, चित्तं विमुच्चि मे, थेरगा. 477; अनोग्गतस्मिं सूरियस्मिन्ति प्रव्रजित अवस्था, अनागारिक स्थिति-ओका अनोकमागम्मा सूरिये अनथङ्गतेयेव, थेरगा. अट्ठ. 2.116.
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