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अनुसिस्स अनुसिस्स पु., व्य. सं., सरभङ्ग के प्रमुख शिष्यों में से एक तापस-शिष्य का नाम - तस्सोवादे ठत्वा ... सालिस्सरो ... पब्बतो काळदेविलो किसवच्छो अनसिस्सो नारदोति सत्त जेहन्तेवासिनो अहेसु. जा. अट्ट. 5.128; अनुसिस्सो च
आनन्दो, किसवच्छे च कोलितो, जा. अट्ठ. 5.145. अनुसीसं अ., क्रि. वि., सिर के ऊपर, सिर पर - अनुपादं
वा अनुसीस वा ठितस्स सब्बं असुभं समं न पआयति, विसुद्धि. 1.175. अनुसुय्यक/अनुसूयक त्रि., उसूयक का निषे. [अनसूयक]. ईर्ष्या न करने वाला, ईर्ष्या-भाव से मुक्त - वुड्ढापचायी अनुसूयको सिया, कालचस्स गरूनं दस्सनाय, सु. नि. 327; अनुसूयको अहं देव, अमज्जपायको अहं, जा. अट्ठ. 2.61; लाभा नो, आवुसोति अनुसूयको किरेस कालामो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).75; पोराणकत्थेरा हि अनुसूयका होन्ति, ..., दी. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).241; उट्ठानवीरिये पोसे, रमाह अनुसूयके, जा. अट्ठ. 5.107. अनुसुय्यति/अनुसूयति अनु + सु के कर्म. वा. का वर्त, प्र. पु.. ए. व. [अनुश्रूयते]. सुना जाता है, परम्परा में कहा जाता है - एवमक्खायति एवमनुसूयति, जा. अट्ठ. 5.411; - यते उपरिवत्, आत्मने. - तं यथानुसूयते - अस्थि योनकानं.... मि. प. 2; - य्यरे ब. व., आत्मने. - विपनट्ठा ब्रह्मरुओ, अन्धाव अनुसुय्यरे, अप. 1.152; अन्धाव चक्षुविरहिताव अनुसुय्यरे विचरन्तीति सम्बन्धो, अप. अट्ठ. 126. अनुसेट्ठी पु.. [अनुश्रेष्ठिन्], साधारण व्यापारी, छोटा सेठ -
सो एकदिवसं राजूपट्टानं गच्छन्तो अनसेलुि आदाय गमिस्सामी ति तस्स गेहं अगमासि, तस्मिं खणे अनुसेट्टि ..., जा. अट्ठ. 5.381. अनुसेति अनु + vसी का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अनुशेते], क. व्यक्ति के सन्दर्भ में प्रयुक्त होने पर, आसक्त हो जाता है, किसी के प्रति लगावयुक्त हो जाता है, किसी के विषय में मन में संकल्प विकल्प करता है - यञ्च ...
चेतेति यञ्च पकप्पेति यञ्च अनुसेति, आरम्मणमेतं होति विआणस्स ठितिया, स. नि. 1(2).58; यं खो, भिक्खु अनुसेति, तेन सङ्घ गच्छति, यं नानुसेति, न तेन सङ्घ गच्छती ति, स. नि. 2(1).33; ख. वस्तुओं या आलम्बनों के सन्दर्भ में - निष्क्रिय अथवा प्रसुप्त अवस्था में चित्त में अनुशय के रूप में पड़ा रहता है, निरन्तर प्रकट होता है - राग तेन पजहति, न तत्थ रागानुसयो अनुसेति, म. नि.
अनुसोतं 1.385; न तत्थ पटिघानुसयो अनुसेतीति तत्थ एवरूपे दोमनस्से पटिघानुसयो नानुसेति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).263; - न्ति वर्त, प्र. पु., ब. व., भीतर सोये हुए या निष्क्रिय रूप में पड़े रहते हैं - यथा च पन कामेहि विसंयुत्तं विहरन्तं तं ब्राह्मणं अकथंकथिं छिन्नकुक्कुच्च भवाभवे वीततण्हं सञआ नानुसेन्ति ..., म. नि. 1.155. अनुसेवित त्रि., अनु + सेव का भू. क. कृ. [अनुसेवित]. अर्जित, व्यवहृत, किया हुआ, व्यवहार में लाया गया - पुब्बानुसेवितं कम्म, पुजवापुञमेव वा, अभि. अव. 77. अनुसोचति अनु + Vसोच का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अनुशोचति], शोक करता है, पछताता है, खेद अनुभव करता है, विलाप करता है - निरासत्ति अनागते, अतीत नानुसोचति, सु. नि. 857; - सि म. पु., ए. व. - सक्का आनयितुं कण्ह, यं पेतमनुसोचसीति, जा. अट्ठ. 4.77; - चामि उ. पु., ए. व. - अतीतं नानुसोचामि नप्पजप्पामिनागतं जा. अट्ठ. 6.31;-न्ति प्र. पु.. ब. व. - अतीतं नानुसोचन्ति, नप्पजप्पन्ति नागतं. स. नि. 1(1).6; - चन्त त्रि., वर्त. कृ. - महती ... अत्तानं अनसोचन्तो रोदामी ति आह जा. अट्ठ. 1.65; - चेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - तं तं चे अनुसोचेय्य, यं यं तस्स न विज्जति, जा. अट्ठ. 3.81; - अननुसोचिय त्रि., सं. कृ. का निषे. [अननुशोच्य]. नहीं सोचने योग्य, नहीं पछताने योग्य - वीतं अननुसोचियन्ति, जा. अट्ठ. 3.81. अनुसोचन नपुं.. अनु + सोच से व्यु., क्रि. ना. [अनुशोचन]. पश्चात्ताप, पछतावा, शोकविलाप, बाद में सोचना-विचारना - एकित्थिन्ति यं एवरूपो भवं एक इत्थिं अनसोचेय्य, इद अनुसोचनं न पञ्जवतं इव, .... जा. अट्ठ. 5.362; एवंसम्पदमेवेतन्ति यो पेतं मतं अनसोचति, तस्सेतं अनुसोचनं एवंसम्पदं एवरूपं ..., पे. व. अट्ठ. 55; अनागतप्पजप्पाय, अतीतस्सानुसोचना, स. नि. 1(1).6; स. उ. प. के रूप में कताकतानु. के अन्त. द्रष्ट; - पच्चुपट्ठान त्रि., तत्पु. स. [अनुशोचनप्रत्युपस्थान], बीती बात को सोचने-विचारने या पछतावा करने से उत्पन्न या उदित - अन्तोनिज्झानलक्खणो सोको, चेतसो निज्झानरसो, अनसोचनपच्चपट्टानो, उदा.
अनुसोतं अ., क्रि. वि. [अनुस्रोतस], धारा के बहने की दिशा में, अनुकूल रूप में, पानी के नीचे की ओर होने वाले प्रवाह की दिशा में - सो तत्थ अनुसोतम्पि तुरहति, ..., अनुसोतपटिसोतम्पि बुरहति, म. नि. 3.224; ...., अनुसोतं गच्छतु ति वत्वा नदीसोते पक्खिपि, जा. अट्ठ 1.79; ...
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