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अनुसंसावना अयं वुच्चति उपनाहो, विभ. 412; अनुसंसन्दनाति पठमुप्पन्नेन कोधेन सद्धि अन्तरं अदस्सेत्वा एकीभावकरणा, विभ. अट्ठ. 464. अनुसंसावना स्त्री., अनु + सं. + सु के प्रेर. से व्यु., क्रि. ना., विनम्रभाव से संलाप करते हुए किसी के साथ चलना अथवा उसका अनुगमन - दुग्गतिं नाभिजानामि, अनुसंसावना फलं, अप. 1.264. अनुसंसावयिं अनु + सं + सु का प्रेर., अद्य., उ. पु., ए. व., विनम्रता के साथ संभाषण किया, कुछ दूर तक विनतभाव से पूज्य व्यक्ति का सहगामी हुआ - वन्दित्वा सत्थुनो पादे, अनुसंसावयिं पुरे अप. 1.221; अनुसंसावयिं बुद्ध, उत्तमत्थरस पत्तिया, अप. 1.264; तुल. अनुसंयायति, ऊपर. अनुसंगीत त्रि., फिर से गायन किया हुआ, वह, जिसकी मौखिक पुनरावृत्ति फिर से की गयी हो, दोहराया गया, दुबारा कहा गया - पञ्चहि या सङ्गीता, अनुसङ्गीता च पच्छापि, दी. नि. अट्ठ. 1.2; म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).2; ध. स. अट्ठ. 3. अनुसज्झायन्ति अनु + सज्झाय का ना. रू., वर्त., प्र. पु., ब. व., पुनः स्वाध्याय करते हैं, फिर से कण्ठस्थ करते हैं, फिर से आवृत्ति करते हैं या कहते हैं - भासितमनुभासन्तीति तेहि भासितं सज्झायितं अनुसज्झायन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.298; ... तदनुगायन्ति ... सज्झायितमनुसज्झायन्ति वाचितमनुवाचेन्ति .... अ. नि. 2(1).209. अनुसञ्चरण नपुं., अनु + सं + Vचर से व्यु.. क्रि. ना. [अनुसञ्चरण], शा. अ. किसी के पीछे घूमते रहना, किसी के अगल-बगल टहलना, ला. अ. किसी के विषय में चित्त में उत्पन्न विभिन्न रूपों के संकल्प-विकल्प - विचरणं वा विचारो, अनुसञ्चरणन्ति वुत्तं होति, अभि. अव. 20; ध. स.
अट्ठ. 160. अनुसञ्चरति अनु + सं + Vचर का वर्त.. प्र. पु., ए. व., अनुसञ्चरण करता है, किसी तक जा पहुंचता है, सहचरण करता है, घूमता है, मार्ग को पकड़ता है, विचार का अनुसरण या उस पर अनुचिन्तन करता है; - सि म. पु.. ए. व.- किं मुण्डो कपालमनुसंचरसि, स. नि. 3(1).63; - न्तो वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व., किसी तक पहुंचता हुआ, प्राप्त होता हुआ - तस्मा यथा नाम ... खेत्तं अनुसञ्चरन्तो यत्थ वा तत्थ वा ... सतिणमत्तिकपिण्डं देति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).125; - माना वर्त. कृ., आत्मने., प्र. वि., ब. व., ऊपर की ओर जा पहुंचते हुए- किपिल्लिका विय थम्भं
अनुसत्थि/अनुसिट्ठि/अनुसट्ठ सिनेरुं अनुसञ्चरमाना उट्ठहिंसु, जा. अट्ठ. 1.200; - रितुं निमि. कृ., पास पहुंचने के लिये - अथस्सा धञा ... गन्वा एवरूपे चेतियङ्गणे अनुसञ्चरितुं एवरूपञ्च मधुरं धम्मकथं सोतुं ... उदपादि, ध, स. अट्ठ. 161; - रित त्रि०, भू. क. कृ., क. वह, जिसके विषय में चित्त द्वारा सोचाविचारा गया हो, चित्त द्वारा सुचिन्तित, चिन्तन का विषयीभूत - अनुविचरितं मनसाति चित्तेन अनुसञ्चरितं, दी. नि. अट्ठ. 3.88; स. नि. अट्ठ. 2.299; ख. वह, जिसने या जिसके आसपास प्राणी चलते-फिरते हों या पहुंचते रहते हों - पुनचपर, महाराज, आकासो
इसितापसभूतदिजगणानुसञ्चरितो, मि. प. 356. अनुसञ्चेतेति अनु + सं + चित का वर्त, प्र. पु., ए. व., ध्यान को किसी एक पर केन्द्रित करता है, ध्यान को दृढ़तापूर्वक स्थिर रखता है - सचे अनुसञ्चेतेति, न परिहायति ताहि समापत्तीहि, पु. प. 118; अनुसञ्चेतेतीति, सचे समापज्जति, समापत्तिहि समापज्जन्तो अनुसञ्चेतेति नाम, पु. प. अट्ठ. 34. अनुसञआयति द्रष्ट. अनुसंयायति के अन्त.. अनुसट त्रि., अनु + /सर का भू. क. कृ. [अनुसृत], क. वह, जिसका अन्य लोगों द्वारा अनुसरण या अनुगमन किया गया है, या ग्रहण किया गया है, आच्छादित, ढका हुआ - सत्तहि अनुसयेहि अनुसटो लोकसन्निवासोति-पस्सन्तानं, पटि. म. 118; ... पदुमेहि अनुसट विप्पकिण्णं, ..., वि. व. अट्ठ. 27; ख. कर्तृ. वा. में, अनुसरण करने वाला, व्याप्त हो जाने वाला - अङ्गमङ्गानुसारिनोति धमनीजालानुसारेन सकलसरीरे अङ्गमङ्गानि अनुसटा ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).127; ग. विकीर्ण, छितराया हुआ, असंयत - सरितानीति
अनुसटानि पयातानि, ध. प. अट्ठ. 2.307. अनुसति स्त्री., अनुस्सति का अप., द्रष्ट, अनुस्सति के
अन्त.. अनुसत्थि/अनुसिट्ठि/अनुसट्ठ स्त्री., पालि एवं अशोकीय प्राकृत में अनु + /सास से व्यु., क्रि. ना. [अर्धमागधी में अणुसट्ठि एवं अणुसिट्टि], अनुशासन, शिक्षण, आज्ञा, मार्गदर्शन, शिक्षा - भवदुक्खपटिपीळिता सत्ता धातुरतनञ्च धम्मञ्च विनयञ्च अनुसिठ्ठञ्च पच्चयं करित्वा .... मि. प. 110; तेन हि, महाराज, तथागतानं अनुसिट्टि सम्मानुसिट्टि होती ति, मि. प. 180; अनुसासनन्ति अनुसिद्धिं स. नि. अट्ठ. 1.93; एवमेव खो, महाराज, तथागतो सब्बकिलेसब्याधिवूपसमाय अनुसिद्धिं देति, मि. प. 168; स. उ. प. के रूप में
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