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अनुविलोकेति
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अनुव्यञ्जन दृष्टिपात करना - सब्बा च दिसाति इदं सत्तपदवीतिहारूपरि विवट्टस्स एकपस्सतो द्विन्नं एक पस्सतो द्विन्नन्ति चतुन्नम्पि ठितस्स विय सब्बदिसानुविलोकनं वुत्तं, न खो पनेवं दहब्बं खण्डानमेतं नामं, महाव. अट्ठ. 384; विवढें अनुविवट्ट, दी. नि. अट्ठ. 2.27.
बाहन्तम्पि च भिक्खुनो, विन. वि. 563. अनुविलोकेति अनु + वि+Vलोक का वर्त., प्र. पु., ए. व.. अनुविसट नपुं.. अनु + वि + /सर का भू. क. कृ. [अनुविलोकयति]. शा. अ. इधर-उधर निगाह डालता है, [अनुविसृत], इधर-उधर बिखरा हुआ, विक्षिप्त, चारों ओर इधर-उधर ताकता है, ला. अ. मनन करता है, अनुचिन्तन । फैला हुआ - छन्दो बहिद्धा पञ्च कामगुणे आरभ अनुविक्खित्तो करता है, तलाशता है, ढूंढता है - सब्बं चेतसा समन्नाहरित्वा अनुविसटो, स. नि. 3(2).349; इमस्स हि भिक्खुनो दीघरत्तं नन्दो अनुदिसं अनुविलोकेति, अ. नि. 3(1).16; यतो यतो रूपादीसु आरम्मणेसु अनुविसट चितं कम्मट्ठानवीथिं ओतरितुं वा अनुविलोकेति, ततो ततो तुण्हीभूतं, तुण्हीभूतं वाचाय, न इच्छति, दी. नि. अट्ठ. 2.317; सब्बा दिसा पुन तुण्हीभूतं कायेन, सु. नि. अट्ठ. 2.199; सेतम्हि छत्ते अनुविसटोहमस्मि, महब्बलो अमित यसो अतुल्यो, जा. अट्ठ. अनुधारियमाने सब्बा च दिसा अनविलोकेति, आसभिं वाचं 4.91; अनुविसटोति अहं चतस्सो दिसा चतस्सो अनूदिसाति भासाति, दी. नि. अट्ठ. 1.57; - कयतो/केन्तस्स वर्त. सब्बा दिसा अत्तनो गुणेन पत्थटो पतो पाकटो, जा. कृ., पु., ष. वि., ए. व., इधर-उधर देख रहे का - एवं मे अट्ठ. 4.92. अनुदिसं अनुविलोकयतो नाभिज्झादोमनस्सा पापका अकुसला अनुवुत्ति स्त्री., [अनुवृत्ति], अगले व्याकरणसूत्र में पिछले धम्मा अन्वास्सविस्सन्तीति, अ. नि. 3(1).16; सब्बं तं परिसं सूत्र से ले ली गयी सूत्र की वृत्ति या व्याख्या, नए सूत्र में अनुविलोकेन्तस्स ... एतदहोसि, मि. प. 18; - कयमाना पिछले सूत्र का वृत्ति की पुनरुक्ति - अयं वर्त. कृ., पु.. प्र. वि., ब. व., इधर-उधर देखने वाले - इध मयं, पनाधिप्पायविज्ञआपिका अनुवृत्ति, सद्द. 3.655, 685. मारिस, सदेवकं लोकं अनुविलोकयमाना ... न पस्साम, अनुवुत्थ त्रि., अनु + Vवस का भू. क. कृ. [अनूषित], किसी मि. प. 7; - केय्यासि विधि., म. पु., ए. व. - ..... के साथ रह रहा अथवा निवास कर रहा, केवल स. उ. प. उट्ठायासना उदकेन अक्खीनि अनुमज्जित्वा दिसा के रूप में प्रयुक्त, चिरानुवुत्थ के अन्त. द्रष्ट., तुल. अनुविलोकेय्यासि, अ. नि. 2(2).225; - केय्यं विधि., उ. अधिवुसित (पीछे). पु., ए. व., मैं इधर उधर दृष्टिपात करूं - विजम्भित्वा अनुवेध पु.. एक बार शल्यक्रिया किये गए व्रणद्वार के समीप समन्ता चतुहिसा अनुविलोकेय्यं दी. नि. 3.16; - केसि में ही की गयी दूसरी शल्यक्रिया - तमेनं दुतियेन सल्लेन अद्य., प्र. पु., ए. व., उसने चारों ओर दृष्टिपात किया - अनुवेधं विज्झेय्य, स. नि. 2(2).205; अनुवेधं विज्झेय्याति उहायासना समन्ता चतुद्दिसा अनुविलोकेसि, सु. नि. (पृ.) तस्सेव वणमुखस्स अडुलन्तरे वा द्वङ्कलन्तरे वा आसन्नपदेसे 149; - केसु अद्य., प्र. पु., ब. व., उन्होंने इधर-उधर ताका अनुगतवेधं, स. नि. अट्ठ. 3.114. - सेतच्छत्ते धारियमाने सब्बाव दिसा अनुविलोकेसुंउदा. अनुव्यञ्जन नपुं० [बौ. सं. अनुव्यञ्जन], क. निमित्तों अट्ठ. 101; - केत्वा पू. का. कृ., इधर उधर देख कर - अथवा विशिष्ट लक्षणों से भिन्न गौण-लक्षण या विशिष्टता, समन्ता चतुद्दिसा अनुविलोकेत्वा तिक्खत्तुं सीहनादं नदति, बुद्ध के 80 गौण चिह्नों में से कोई एक चिह्न - भगवतो स. नि. 2(1).79; - केतब्ब सं. कृ., अनुविलोकन किया असीतिअनुब्यञ्जनानि ब्यामप्पभा द्वात्तिंसमहापुरिसलक्खणानि, जाना चाहिये, अनुविलोकन करने योग्य - अनुदिसा दी. नि. अट्ठ. 3.91; भगवा द्वत्तिसमहापुरिसलक्खणेहि अनुविलोकेतब्बा होति, अ. नि. 3(1).16.
समन्नागतो असीतिया च अनुब्यञ्जनेहि परिरजितो, मि. अनुविवट्ट नपुं.. [बौ. सं. अनुविवर्त], भिक्षु के चीवर के चार प. 81; अनुब्यञ्जनग्गाहीति किलेसानं अनुब्यञ्जनतो खण्डों में से मध्यवर्ती खण्ड या विवट्ट के दोनों पार्श्वभागों पाकटभावकरणतो अनुब्यञ्जनन्ति लद्धवो हार वाले दो खण्ड अथवा दोनों पार्श्वभाग वाले दो-दो खण्डों हत्थपादसितहसितकथितआलोकितविलोकितादिभेदं आकार अर्थात् चीवर के चारों खण्डों का नाम - ... अड्डमण्डलम्पि गण्हाति, ध. स. अट्ठ, 420; ..., अनुब्यञ्जनेन अनुब्यञ्जन नाम करिस्सति, विवट्टम्पि नाम करिस्सति, अनुविवट्टम्पि कथयिस्सामि, ..... मि. प. 308; ख. आगे आया हुआ नाम करिस्सति, ... छिन्नकं भविस्सति, महाव. 378; वचन, अनुवर्तिनी अभिव्यक्ति, आगे कही जाने वाली बात का अनुविवट्टन्ति तस्स उभोसु पस्सेसुद्धे खण्डानि.... अनुविवट्टन्ति । कथन - पदसो नाम पदं, अनुपदं, अनवक्खरं अनुब्यञ्जनं.
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