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अनुसत्थु अत्थधम्मानु, आचरियानु., जिनानु., धम्मानु, लाभानु. के अन्त. द्रष्ट; - कर त्रि., अनुशासन का पालन करने वाला - ... सत्थु करुणागुणदीपक भगवतो अनुसिढिकरानं कायकम्मवचीकम्मविष्फन्दितविनयनं विनयपिटकं पकासेसि, पारा. अठ्ठ. 171; - दायक त्रि., अनुशासन देने वाला - अनुसासिकाति अनुसिट्ठिदायिका, अ. नि. अट्ठ. 3.100; - पद नपुं॰, तत्पु. स., अनुशासन-प्रकाशक वचन, शिक्षापद - सिट्ठिपदेति अनुसिट्ठिपदे, स. नि. अट्ठ. 1.99. अनुसत्थु पु.. [अनुशास्त], अनुशासन या शिक्षण देने वाला, शिक्षक, आचार्य - त्थारं द्वि. वि., ए. व. - आचरियमनुसत्थारं सब्बकामरसाहर जा. अट्ठ. 4.159; अनुसत्थारन्ति अनुसासक. जा. अट्ठ. 4.160. अनुसद्दायति अनु + सद्द के ना. धा. का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अनुशब्दायते], बाद में गूंजता रहता है, अनुरव या अनुगूंज करता है - भेरी आको-टिता अथ पच्छा अनुरवति अनुसद्दायति, ध. स. अट्ठ. 160. अनुसद्दायना स्त्री., अनुगूंज, आवाज का गूंजते रहना - यथा पच्छा अनुरवना अनुसद्दायना एवं विचारो दडब्बोति, ध. स. अट्ठ. 160. अनुसन्तत त्रि०, अनु + सं + Vतन का भू. क. कृ. [अनुसन्तत], निरन्तर रूप में विद्यमान, सतत रूप में जारी - तत्थ दिद्विचरितो ... पब्बजितो सल्लेखानुसन्ततवृत्ति भवति सल्लेखे तिब्बगारवो, नेत्ति. 92; तण्हा चरितो ... पब्बजितो सिक्खानुसन्ततवृत्ति भवति सिक्खाय तिब्बगारवो, नेत्ति. 92. अनुसन्दति अनु + सं + vधा का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अनुसंदधाति], अनुसन्दहति का अप., द्रष्ट., अनुसन्दहति
के अन्त... अनुसन्दहति अनु + सं + vधा का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अनुसंदधाति], अभियोजित करता है, लगा देता है, जोड़ देता है, समर्पित कर देता है, बाद में जारी रहता है - ... चित्तं अनुसन्दहति अप्पटिकुल्यता सण्ठाति, अ. नि. 2(2).196; अनुसन्दहतीति पवत्तति, अ. नि. अट्ठ. 1.168; कंसथालं आकोटितं पच्छा अनुरवति अनुसन्दहति, ... मि... प. 64; - हित्वा पू. का. कृ. - अनुसन्दहित्वा ठपनतो चित्तस्स अनुसन्धानता, ध. स. अट्ठ. 1.88. अनुसन्धानता स्त्री., अनु + सं +vधा से व्यु., भाव., चित्त ।
का किसी आलम्बन पर सतत रूप में स्थिर रहना - यो तस्मि समये ... चितरस अनुसन्धानता अनुपेक्खनता, ध.
अनुसन्धि स. 284, 372; ..... अनुसन्दहित्वा ठपनतो चित्तस्स अनुसन्धानता, ध. स. अट्ठ. 188. अनुसन्धि पु., अनु + सं + vधा से व्यु. [अनुसन्धि]. क. परस्पर सम्बन्ध, जोड़, त्रिपिटक के विभिन्न खण्डों का पूर्वापर-सम्बन्ध अथवा तार्किक सम्बन्ध, निष्कर्ष, प्रयोग - तयो हि सुत्तस्स अनुसन्धी-पुच्छानुसन्धि, अज्झासयानुसन्धि, यथानुसन्धीति, दी. नि. अट्ट, 1.104; ख. “अनुसन्धिं घटेति" वाक्य के मुहावरे में, निष्कर्ष निकालता है, जातककथा की अतीतवत्थु एवं पच्चुप्पन्नवत्थु के बीच तर्कसङ्गत सम्बन्ध बतलाता है - सत्था इमं धम्मदेसनं ... कथेत्वा अनुसन्धि घटेत्वा जातकं समोघानेत्वा दस्सेसि, जा. अट्ठ. 1.113, 188, 207, 216, 295; द्वे वत्थूनि कथेत्वा अनुसन्धिं घटत्वा जातकं समोधानेसि, जा. अट्ठ. 1.149; स. उ. प. के रूप में अज्झासयानु.. अधिप्पयानु.. कथानु, तिविधानु, पुच्छानु, पुब्बापरानु०, यथानु०. वचनानु., वत्तानु, विनिच्छयानु. के अन्त. द्रष्ट; - कुसल त्रि., तत्पु. स. [अनुसन्धिकुशल], सङ्गति बैठाने में कुशल, जोड़ या सम्बन्ध को प्रकाशित करने में कुशल - पस्सति हि भगवा ... परिसति अनुसन्धिकुसलो एको भिक्खु सुप्पबुद्धस्स ... पुच्छिस्सति, उदा. अट्ठ. 237; सो किर अनुसन्धिकुसलो, भगवता यथा दण्डपाणी न जानाति, ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).388; - कुशलता स्त्री॰, भाव. [अनुसन्धिकुशलता], सङ्गति या परस्पर-सम्बन्ध के बैठाने में कुशलता - तथागतं ... भिक्खुसङ्घस्स पाकटं करिस्सामीति चिन्तेत्वा अनुसन्धिकुसलताय एवमाह, म. नि. अठ्ठ. (उप.प.) 3.191; - क्कमयोजना स्त्री., तत्पु. स. [अनुसन्धिक्रमयोजना]. परस्पर-सम्बन्धों अथवा प्रयोगों के क्रम या पूर्वापर-क्रम की योजना - एस नयो सुक्कपक्खेपि, अयं तावेत्थ अनुसन्धिक्कमयोजना, म. नि. अट्ट. (मू.प.) 1(1).108; - नय पु., तत्पु. स. [अनुसन्धिनय], परस्पर-सम्बन्ध बैठाने या परस्पर में सङ्गति बैठाने की पद्धति - अनुसन्धिनया एते, मज्झिमस्स पकासिता ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).4; - पुब्बापर नपुं.. तत्पु. स. [अनुसन्धिपूर्वापर], परस्परसम्बन्ध में प्राप्त पूर्वापरक्रम - अनुसन्धिपुब्बापरे पन सील आदि कत्वा आरद्धे सुत्तन्ते मत्थके छसु ..., अ. नि. अट्ठ. 3.61; - योजना स्त्री., तत्पु. स. [अनुसन्धियोजना], परस्पर-सम्बन्ध बैठाने की योजना, सम्बन्धों अथवा प्रयोगों के विषय में कथन - अनुसन्धियोजनापि चेत्थ संसग्गगाथाय वुत्तनयेनेव वेदितब्बा, सु. नि. अट्ठ. 1.68; ... न
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