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अनुव्यञ्जनसो
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अनुसंसन्दना पाचि. 26; अनुब्यञ्जनं नाम रूपं अनिच्चन्ति वुच्चमानो, सोभनाति एवं अनुब्यञ्जनवसेन निमित्तग्गाहो. स. नि. अट्ठ. वेदना अनिच्चा ति सदं निच्छारेति, पाचि. अट्ट.7; ग. अट्ठ. 3.51; ख. अ., क्रि. वि., प्रत्येक अक्षर एवं पद के विवेचन में अनु + वि + अञ्ज के क्रि. ना. के रूप में भी प्रयुक्त, की दृष्टि से - ... सुत्तसो अनुब्यञ्जनसो .... महाव. 83; स्पष्ट रूप से प्रकाशन अथवा अभिव्यक्त होना - अनुब्यञ्जनसोति अक्खरपदपारिपूरिया ... पाचि. अट्ठ. 49. अनुब्यजनग्गाहीति किले सान अनु ब्यजनतो अनुव्यञ्जनस्सादगथित त्रि., विषयभोगों के भेद-प्रभेदों में पाकटभावकरणतो अनुब्यञ्जनन्ति लद्धवोहारं ध. स. अट्ठ. अनुभूत आनन्द में लिप्त या बंधा हआ - निमित्तस्सादगथितं 420; - ग्गाह पु., विवरणों के साथ ग्रहण, किसी बात का वा, ... विज्ञआण.... अनुब्यञ्जनस्सादगथितं वा तस्मिञ्चे सभी विशेषताओं के साथ विवेचन - निमित्तग्गाहोति हि समये कालं करेय्य, ..., स. नि. 2(2).172. संसन्देत्वा गहणं, अनुब्यञ्जनग्गाहोति विभत्तिगहणं स. नि. अनुसंयायति/अनुसायति अनु + सं+vया का वर्त., अट्ठ. 3.51; यो हि पुग्गलो निमित्तग्गाहं अनुब्यञ्जनग्गाह प्र. पु., ए. व., क. चारों ओर जाता है, आर-पार जाता है, गण्हण्तो नखा सोभना ति गण्हाति, ध. प. अट्ठ. 1.44; - पार करके जाता है; - न्तेन वर्त. कृ.. तृ. वि., ए. व., ग्गाही त्रि., विवरणों अथवा प्रत्येक लक्षण के साथ धर्मों को किसी को पार कर या किसी में होकर जाने वाले के साथ ग्रहण करने वाला, हंसने, देखने, ताकने, सिकोड़ने, पसारने - ... चक्करतनं पुरक्खत्वा चत्तारो दीपे अनुसंयायन्तेन जैसी विभिन्न क्रियाओं के आकार या स्वरूप को इन्द्रियों सद्धि आगमंसु. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).235; - यायित्वा द्वारा ग्रहण करने वाला - भिक्ख चक्खना रूपं दिस्वा न पू. का. कृ., अनुसंचरण करके, घूम-फिर कर, चक्कर निमित्तग्गाही होति नानुब्यञ्जनग्गाही, दी. नि. 1.62; ... न लगाकर - सकलजम्बुदीपं अन्तन्तेन अनुसंयायित्वा वाराणसिं निमित्तग्गाही होति नानुब्यञ्जनग्गाही, स. नि. 2(2).110; पापुणि, जा. अट्ठ. 4.191; ख. निरीक्षण करता है, निगरानी अनुब्यजनग्गाहीति किले सानं अनुअनु व्यञ्जनतो रखता है; - आयमानो वर्त. कृ., आत्मने, पु., प्र. वि., पाकटभावकरणतो अनुब्यञ्जन्ति लद्धवोहारं । ए. व., निगरानी करता हुआ, निरीक्षण कर रहा - ब्राह्मणो हत्थपादसितहसितकथितआलोकितविलो-कितादिभेदं आकार मगधमहामत्तो राजगहे कम्मन्ते अनुसआयमानो येन दारुगहे गण्हाति, महानि. अट्ठ. 316; - विचित्र त्रि., सौन्दर्य के गणको तेनुपसङ्कमि, पारा. 49; अनुसआयमानोति तमाम छोटे-मोटे लक्षणों के कारण पूर्ण रूप से भव्य या अनुसजायमानो, कताकतं जनन्तोति अत्थो, अनुविचरमानो उत्कृष्ट - रूपप्पमाणिका हि पुग्गला भगवतो वा, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.48; - ञातुं निमि. कृ., लक्खणखचितमनुब्यञ्जनविचित्र समुज्जलितकेतु- निगरानी करने के निमित्त, निरीक्षण के निमित्त - तस्मि, मालाब्यामप्पभाविनद्धमलङ्कारस्थमिव लोकस्स .... सु. नि. भिक्खवे, समये रुओ न फासु होति अतियातुं वा निय्यातु अट्ठ. 1.205; - धर त्रि., सुन्दरता अथवा उत्तमता के वा पच्चन्तिमे वा जनपदे अनुसआतुं, अ. नि. 1(1).84; ग. समस्त गौण-लक्षणों को भी धारण करने वाला - साथ में जाता है, पास जाता है;-यायी अद्य.. प्र. पु., ए. अनुब्यञ्जनधरं बुद्ध, आहुतीनं पटिग्गह, अप. 1.226; - व., साथ साथ गया - अनुसंयायी सो वीरो, मातुच्छ यावकोट्टक समुज्जल त्रि.. सुन्दरता/भव्यता के सम्पूर्ण गौण-लक्षणों अप. 2.208. द्वारा प्रभाषित अथवा जगमगाता हुआ - ... लक्खणविचित्तं अनुसंवच्छरं अ., क्रि. वि., अव्ययी. स. [अनुसंवत्सरं], अनुब्यञ्जनसमुज्जलं... सत्थु सरीरं ... इत्थिरूपं अद्दस, प्रत्येक वर्ष में, एक-एक वर्ष में - .... अनुसंवच्छरं ते ध. प. अट्ठ. 2.64; - सम्पन्न त्रि., भव्यता के समस्त गौण- सतसहस्सपरिच्चागेन बलिकम्म करिस्सामी ति, जा. अट्ठ. लक्षणों या चिहों से युक्त - अनुव्यञ्जनसम्पन्न, 1.77; अ. नि. अट्ट, 1.244; राजगहे च अनुसंवच्छर द्वतिसवरलक्खणं, बु. वं. 353; अप. 2.107; गिरग्गसमज्जो नाम अहोसि, ध. प. अट्ठ. 1.52; अनुसंवच्छर अनुब्यञ्जनसम्पन्नन्ति तम्बनखतुङ्गनासवट्टङ्कलितादीहि कातुं एवमेव नियोजयि, चू.वं. 37.88. असीतिया अनुब्यञ्जनेहि सम्पन्न, .... बु. वं. अट्ठ. 283. अनुसंसन्दना स्त्री., अनु + सं + /सन्द का क्रि. ना., धारा अनुव्यञ्जनसो अ., क्रि. वि., क. सुन्दरता या भव्यता के के प्रवाह की निरन्तरता, प्रवाह-सातत्य, पूर्ववर्ती एवं परवर्ती सभी गौण-लक्षणों की दृष्टि से, अनुव्यञ्जनों के आधार पर का एकीकरण, लगातार जारी रहना - यो एवरूपो ... - अट्ठमे अनुब्यञ्जनसो निमित्तग्गाहोति हत्था सोभना पादा सण्ठपना अनुसंसन्दना अनुप्पबन्धना दळहीकम्म कोधस्स -
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