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अनुपेति
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अनुप्पत्तिधम्म निज्झापति पेक्खेति अनुपेक्खेति दस्सेति अनुदस्सेति, अनुप्पञत्ति स्त्री., [अनुप्रज्ञप्ति, अतिरिक्त रूप में निर्दिष्ट चूळव. 174; पेक्खति अनुपेक्खतीति यथा सो तं अत्थं विनयनियम, गौण नियम या आज्ञा - अत्थि तत्थ पत्ति, पेक्खति चेव पुनप्पुनञ्च पेक्खति, एवं करोति, चूळव. अट्ठ. अनुपञत्ति, परि. 1; अधिमानवत्थु अनुपअत्तियं वुत्तनयमेव, 36.
पारा. अट्ठ. 2.83; तेसंयेव अनुपजत्ति पञत्ते अनुपञत्तं, अनुपेति अनु + प+vs का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अनुप्रैति], अ. नि. अट्ठ. 2.69; - टि.. मूल विनयनियमों पर कुछ किसी में जाकर घुल-मिल जाता है या विलीन हो जाता है, समय बाद में किये गये परिवर्तन या परिवर्धन अनुपचत्ति किसी की ओर अभिमुख हो जाता है - पथवी पथविकायं कहलाते हैं ये अतिरिक्त नियम आपत्तिकार (अपराध से अनुपेति अनुपगच्छति, आपो..., दी. नि. 1.49; म. नि. सम्बद्ध अतिरिक्त नियम बनाने हेतु) आपत्ति उपत्थम्भाकार, 2.192; अनुपेतीति अनुयायति, दी. नि. अट्ठ. 1.137; म. नि. (विद्यमान नियम को दृढ़ करने हेतु) तथा अनापत्तिकार अट्ठ. (म.प.) 2.163.
(विद्यमान नियम में छूट देने हेतु) होते हैं - वार पु.. अनुपेसेय्य अनु + प + Vइस के प्रेर. का विधि., प्र. पु., ए.. अनुप्रज्ञप्ति पर प्रकाश डालने वाले विनय के एक भाग का व. [अनुप्रेषयेत्], पीछे से भिजवा दे, पीछे लगवा दे, शीर्षक या नाम- अनुपञत्तिवारे- अन्तमसोति सब्बन्तिमेन अनुप्रेषण करा दे - ततो राजा ... अनुपेसेय्य अत्तनो परिच्छेदेन, पारा. अट्ठ. 1.206. परित्तकाय सेनाय बलं अनुपदं ददेय्य मि. प. 34. अनुप्पत्त त्रि., अनु + प+ vआप का भू. क. कृ. [अनुप्राप्त], अनुपोसथ पु.. उपोसथ का निषे. [बौ. सं. अनुपोसथ]. क. कर्मवा. के सन्दर्भ में - किसी के द्वारा प्राप्त किया उपोसथ के लिये निर्धारित तिथि से भिन्न दिन, प्रत्येक पक्ष गया, किसी की समझ या पकड़ में आने योग्य - सदत्थो की चतुर्दशी एवं प्रत्येक मास की पूर्णमासी के अतिरिक्त मे अनुप्पत्तो, कतं बुद्धस्स सासनन्ति, थेरगा. 112; स्वायं कोई दूसरा दिन - अनुपोसथे उपोसथो कातब्बो, महाव. सदत्थो मे मया अनुप्पत्तो अधिगतो, थेरगा. अट्ठ. 1.242; 178; अनुपोसथेति चातुद्दसिको च पन्नरसिको चाति इमे द्वे अनुप्पत्तो सच्छिकतो, सयं धम्मो अनीतिहो, थेरगा. 331; ख.
उपोसथे ठपेत्वा अञ्जस्मिं दिवसे, महाव, अट्ठ. 329.. कर्तृ. वा. के सन्दर्भ में - प्राप्त कर चुका, पहुंचा हुआ अनुपोसथिक त्रि., उपोसथिक का निषे०, स. [बौ. सं. - तयि जुण्हम्हि अहं एकेन अत्थेन इधानुप्पत्तो, जा. अट्ठ. अनुपोसथिक], उपोसथ का पालन न करने वाला, उपोसथ 4.87; - धम्मरज्ज त्रि., ब. स. [अनुप्राप्तधर्मराज्य], वह, न करने वाला - ये अनुपोसथिका होन्ति, ते निवारेति ..., जिसने धर्म के राज्य को प्राप्त कर लिया है, सत्य का म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.221.
साम्राज्य प्राप्त कर चुका - एवमेवं ... आनुभावेन अनुपोसथिकं अ., क्रि. वि., अनु + उपोसथिक से व्यु., अनुप्पत्तधम्मरज्जो धम्मराजापि..., अ. नि. अट्ट, 1.110; - प्रत्येक उपोसथदिवस पर, प्रत्येक पखवारे में - अन्वद्धमासन्ति सदत्थ त्रि., ब. स. [अनुप्राप्तसदर्थ]. वह, जिसने अपने अनुपोसथिक, पाचि. 193; 430; तस्मा अनुपोसथिकान्ति परम प्रयोजन अथवा सर्वोच्च लक्ष्य (अर्हत् अवस्था) को पदभाजने वुत्तं, पाचि. अट्ठ. 134.
प्राप्त कर लिया है - ... कतकरणीयो ओहितभारो अनुपोसिय अनु + vपुस के प्रेर. का सं. कृ. [अनुपोष्य], अनुप्पत्तसदत्थो परिक्खीणभवसओजनो सम्मदा विमुत्तो. पीछे या बाद में पालन-पोषण किये जाने योग्य - महाव. 255; अ. नि. 1(1).168; अनुप्पत्तसदत्थोति सदत्थो
सब्बसम्पत्तिबीजं मे रोपितं नानपोसियं, सद्धम्मो. 318. उच्चति अरहत्तं तं अनुप्पत्तो, अ. नि. अट्ठ. 2.123. अनुप्पगे अ., क्रि. वि., प्रातःकाल, सवेरे-सवेरे - ... अनुप्पगेयेव अनुप्पत्ति/अनुपत्ति स्त्री., अनु + प + vआप से व्यु. सन्निपतितानं काकानं ओरवसई, महाव. अट्ठ. 358; [अनुप्राप्ति], अपनी इच्छाओं की पूर्ति, प्राप्ति, उपलब्धि - अनुप्पगेयेवाति पातोयेव, सारत्थ. टी. 3.297.
आको चे हदयस्सानुपत्ति, स. नि. 1(1)55; 63; अनुप्पञत्त त्रि., अनु + प + ञा के प्रेर. का भू. क. कृ. हदयस्सानुपत्तिन्ति अरहत्तं, स. नि. अट्ट, 1.94. [अनुप्रज्ञप्त], बाद में प्रज्ञप्त किया गया, अतिरिक्त तौर पर अनुप्पत्तिधम्म त्रि., ब. स. [अनुत्पत्तिधर्म], अपुनर्भव की अनुमत अथवा नियोजित - पञत्ते अनुपचत्तं, परि. 413; प्रकृति वाला, पुनर्जन्म ग्रहण न करने वाला - सब्बं तं अ. नि. 1(1).119; तेसंयेव अनुपअत्ति पञत्ते अनुपञ्जत्तं, ... बोधिमूलेयेव पहीनं अनुप्पत्तिधम्म, उदा. अट्ठ. 109-1103; अ. नि. अट्ठ. 2.69.
- धम्मता स्त्री., अनुप्पत्तिधम्म का भाव. [अनुत्पत्तिधर्मता],
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