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32.
अनुरक्खमानक 283
अनुराध भवि., प्र. पु., ए. व. , आत्मने., उपरिवत् - एवं 448; अनुरत्ता भत्तारन्ति भत्तारं अनुवत्तिका, थेरीगा. अट्ठ. कुसलधम्मानं, अनुरक्खिस्सते अयं, अप. 2.258; - क्खितुं 294. निमि. कृ., रक्षा करने के निमित्त - कीळितुं अभिसित्तानं अनुरथं अ., क्रि. वि. [अनुरथं], रथ के पीछे-पीछे - ... चरितं चानुरक्खितुं, म. वं. 26.7; - क्खितब्बं सं. कृ., पच्छात्थे अनुरथं, भूसत्थे अनुरत्तो, ..., सद्द. 3.883; मो. व्या. अनुरक्षण या सुरक्षा की जानी चाहिए, अनुरक्षण करने योग्य - ..., कायिकं वाचसिक अनुरक्खितब्बं, ..., मि. प. 102. अनुरव पु., अनु + रु से व्यु., क्रि. ना. [अनुरव], एक अनुरक्खमानक त्रि., अनु + ।रक्ख के वर्त. कृ., आत्मने. ध्वनि होने के बाद में उत्पन्न अनुगूंज या आवाज, केवल से व्यु., संधारक, रक्षा करने वाला, सुरक्षित रखने वाला - स. उ. प. के रूप में ही प्राप्त, घण्टानुरव के अन्त. द्रष्ट.. तथेव सील अनुरक्खमानका, सुपेसला होथ सदा सगारवाति, अनुरवति अनु + रु का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अनुरौति], सद्धम्मो. 621; विसुद्धि. 1.33; दी. नि. अट्ठ. 1.53. गूंजता है, बाद में आवाज करता रहता है - यथा, महाराज, अनुरक्खा स्त्री., [अनुरक्षा], सुरक्षा, रखवाली - ननु, भन्ते, कंसथालं आकोटितं पच्छा अनुरवति अनुसन्दहति, मि. प. भगवा अनेकपरियायेन कुलानं अनुद्दयं वण्णेति, अनुरक्खं । 64; यथा, महाराज, भेरी आकोटिता अथ पच्छा अनुरवति वण्णेति, स. नि. 2(2).309; अत्तानुरक्खाय भवन्ति हेते. अनुसद्दायति, ध. स. अट्ठ. 159-60. हत्थारोहा रथिका पत्तिका च, जा. अट्ठ. 5.481.
अनुरवना स्त्री., अनु + रु से व्यु. [अनुरवन, नपुं०], गूंज, अनुरक्खित अनु + रक्ख का भू. क. कृ. [अनुरक्षित], वह, बाद में उत्पन्न आवाज - यथा अनरवना एवं विचारो जिसकी रक्षा की गयी है या जिसे सुरक्षित अथवा नियन्त्रित दहब्बो ति, मि. प. 64. करके रखा गया है - तयानुगुत्तोति तया अनुरक्खितो, जा. अनुरहो अ, निपा., क्रि. वि. [अनुरहसं], छिपे हुए रूप से, अट्ठ. 5.395.
एकान्त में, गुप्त रूप से, अप्रकट रूप से - आपत्तिञ्च वत अनुरक्खिय अनु + रक्ख का सं. कृ. [अनुरक्ष्य], रक्षा आपन्नो अस्सं अनुरहो मंभिक्खू चोदेय्यं नो सङ्घमज्झेति, किये जाने या नियन्त्रित करने योग्य, केवल स. उ. प. में म. नि. 1.34; अनुरहो मन्ति पुरिमसदिसमेव भिक्खं गहेत्वा ही प्राप्त, दुरनुरक्खिय के अन्त. द्रष्ट....
विहारपच्चन्ते सेनासनं पवेसेत्वा द्वारं थकेत्वा चोदेन्ते इच्छति, अनुरक्खिस्सते अनु + रक्ख के कर्म. वा. का भवि., प्र. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).154. पु., ए. व., आत्मने. सुरक्षित या नियन्त्रित करके रखा अनुराज पु., राजतिलक किया गया सहायक अथवा जाएगा - एवं कुसलधम्मानं, अनुरक्खिस्सते अयं, अप. साधारण शासक, गौण या छोटा राजा - मुद्धाभिसित्तो 2.258.
अनुराजा उपराजा ति भासितो, सद्द. 2.347; बहूहि अमच्चेहि अनुरक्खी त्रि., सुरक्षा करने वाला, संयम या नियन्त्रण सद्धिं तत्थ गन्वा अनुराजभावेन रज्ज कारापेसि, सा. वं. रखने वाला, सुरक्षित स्थिति में रखने वाला - गुव्हमनुरक्खी 49(ना.). चाहं यावाहं जीविस्सामि ताव गुरहमनुरक्खिस्सामि, मि. प. अनुराध व्य. सं., [अनुराध], क. एक स्थविर का नाम, उसी 105.
से सम्बद्ध, स. नि. के कुछ सुत्तों का शीर्षक - ... आयस्मा अनुरञ्जन्त अनु + रज का वर्त. कृ., अलङ्कत अथवा । अनुराधो भगवतो अविदुरे अरञकुटिकायं विहरति, स. नि. प्रभासित करता हुआ, प्रज्वलित होता हुआ, सुशोभित होता 2(1).106-108; 2(2).349-353; ख. श्रीलङ्का के प्रथम हुआ - पभाहि अनुरञ्जन्तो, लोके लोकन्तगू जिनो, अप. शासक विजय के एक साथी का नाम - निवासद्वानराधानं 2.146; थेरगा. अट्ठ. 2.430; पभाहि अनुरञ्जन्तोति सो । अनुराधपुरं अहु, म. वं. 10.76; नगरस्स तोहि कारणेहि नाम पद्मुत्तरो भगवा नीलपीतादिछब्बण्णपभाहि रंसीहि अनुरञ्जन्तो ठपेन्तो निवासत्तानुराधनाति आदिमाह, तत्थ ... देविया भातु जलन्तो सोभयमानो विज्जोतमानोति अत्थो, अप, अट्ठ. अनुराधो चा ति इमेसं द्विन्न अनुराधानं निवसितत्ता 1.251.
अनुराधनक्खत्तेन पतिट्ठापितताय च अनुराधपुरं नाम अहोसी अनुरत्त त्रि., अनु + रज का भू. क. कृ. [अनुरक्त], ति अत्थो, म. वं. टी. 254(ना.); नक्खत्तनामको मच्चो लगाव या राग से युक्त, किसी के प्रति पूरी तरह से मापेसि अनुराधपुर दी. वं. 9.35; ग. एक शाक्यवंषीय समर्पित - अनुरत्ता भत्तार, तस्साहं विद्देसनमकासि थेरीगा. राजकुमार का नाम - उरुवेलानुराधानं निवासा च तथा
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