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अनुयोजन
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अनुरक्खति सीलादीनि सम्पादेत्वा देवमनस्सानं सन्तिका सक्कारं लभन्ति, या संधारण हेतु किया जा रहा दृढ़ प्रयास, समाधि के ध. प. अट्ठ.2.160.
निमित्त की सुरक्षा करने वाले के चित्त में उत्पन्न वीर्य - अनुयोजन नपुं.. [अनुयोजन], किसी के साथ, पीछे किया चत्तारिमानि, ..., पधानानि, ..., संवरप्पधानं, पहानप्पधानं. गया, जोड़, अन्य के साथ योग - ..., तत्थ भावनाप्पधानं, अनुरक्खणाप्पधानं, अ. नि. 1(2).18; 19; दी. सहजातानुयोजनरसो, ..., विसुद्धि. 1.137; सहजातानं नि. 3.180; अनुरक्खणाप्पधानन्ति समाधिनिमित्तं अनुरक्खन्तस्स अनुयोजनं आरम्मणे अनुविचारणसङ्घातअनुमज्जन-वसेनेव उप्पन्नवीरियं, अ. नि. अट्ठ. 2.253; - णभब्ब त्रि., वह, वेदितब्ब, विसुद्धि, महाटी. 1.156.
पुद्गल या व्यक्ति जिसकी विमुक्ति अथवा चित्तविशुद्धि की अनुय्योजेत्वा अनु + युज के प्रेर. का पू. का. कृ.. अर्हता अनुरक्षण पर आधारित नहीं रहती है - सचे न अनुयोजित कराके, किसी अन्य के साथ जुड़वा कर या अनुरक्खति, परिहायति ताहि समापत्तीहि - अयं वुच्चति सङ्गति बैठवा कर - ... अप्पेव नाम अत्तनो धम्मतायेपि पुग्गलो अनुरक्खणाभब्बो, पु. प. 118; अनुरक्खणाभब्बोति सल्लक्खेय्या ति अनुय्योजेत्वा तिट्ट, तात, याव ते यागुभत्तं अनुरक्षणाय अपरिहानि आपज्जितुं भब्बो, पु. प. अठ्ठ. 34. सम्पादेमि, ध. प. अट्ठ. 2.291; स. नि. अट्ठ. 1.269. अनुरक्खति अनु + रक्ख का वर्त, प्र. पु., ए. व. अनुय्यान नपुं., संभवतः अनु + उय्यान से व्यु. [अनूद्यान]. [अनुरक्षति], रक्षा करता है, सुरक्षित बनाए रखता है, छोटा सा उद्यान, साधारण बाग - अनेकानुभवाधारे देखभाल करता है, निगरानी करता है, ठीक-ठाक करके या नानानुय्यानसुन्दरे चू. वं. 68.58; संभवतः नानाउय्यानसुन्दरे विशोधित करके रखता है - भिक्खु ... समाधिनिमित्तं के स्थान पर भ्रष्ट पाठ.
अनुरक्खति अट्ठिकसझं ... उद्धमातकसङ्ख, अ. नि. अनुय्युत त्रि., उय्युत का निषे. [अनुद्युत], सार्थक, विषय 1(2).19; दी. नि. 3.181; अनुरक्खतीति समाधिपारिया सन्दर्भ के सर्वथा अनुरूप, समयानुरूप - अत्थं न हापेति पन्थिकधम्मे रागदोसमोहे सोधेन्तो रक्खति, अ. नि. अट्ठ. अनुय्युतं भणं, महाव. 483; अनुय्युतं भणन्ति अनुज्ञातं 2.253; दी. नि. अट्ठ. 3.184; सचे अनुरक्खति, न परिहायति अनपगतं भणन्तो, महाव. अट्ठ. 410.
ताहि समापत्तीहि, पु. प. 118; सचे अनुरक्खतीति सचे अनुरक्ख पु.. [अनुरक्ष], सुरक्षा, सुरक्षण - विजयो विजितो अनुपकारधम्मे पहाय उपकारधम्मे सेवन्तो समापज्जति, पु. च सो नावं अनुरक्खे न च, दी. वं. 9.32.
प. अट्ठ, 34; - ते वर्त.. प्र. पु.. ए. व., आत्मने.. उपरिवत् अनुरक्खक त्रि., अनु + रक्ख से व्यु. [अनुरक्षक], सुरक्षा - माताव पुत्तं अनुरक्खते पतिं, अ. नि. 2(2).230; - न्त करने वाला, सुरक्षित रखने वाला, संधारक - केवल स. उ. वर्त. कृ., सुरक्षित या नियन्त्रित रखता हुआ - प. में ही प्राप्त, वंसानु. के अन्त. द्रष्ट...
सच्चवाचानुरक्खन्तो, जीवितं चजितुमुपागम, चरिया. 404; अनुरक्खण क. नपुं, अनु + रक्ख से व्यु., क्रि. ना. - न्तेन वर्त. कृ., तृ. वि., ए. व. - तुम्हाकं चित्तं अनुरक्खन्तेन [अनुरक्षण], संरक्षण, सुरक्षा, संधारण, जो उपलब्ध है या मया एवं वुत्तं नेवेत्थ तुम्हाक दोसो अत्थि, न मरह, ध. प. उत्पन्न है उसको ठीक से सुरक्षित रखना - अम्हाकं ... अट्ट, 1.351; - क्ख अनु., म. पु., ए. व., तू रक्षा कर, अम्हाकं अनुरक्खणत्थाय अरञ्जवासं अनुजानि, जा. अट्ठ. सुरक्षित बनाकर रख - ..., तमेव त्वं साधुकमनुरक्खा ति, 1.138; ... या च लद्धस्स अनुरक्खणा, ... उप्पन्नस्स पन दी. नि. 3.25; - क्ख थ अनु., म. पु.. ब. व., तुम लोग रक्षा अनुरक्खणमेव भारो, जा. अट्ठ. 5.112; ख. त्रि., संरक्षक, करो, सुरक्षित अथवा नियन्त्रित करके रखो- अप्पमादरता संधारक, सुरक्षितरूप में रखने वाला - अञवादो सारत्थो होथ, सचित्तमनुरक्खथ, ध. प. 327; - क्खे विधि., प्र. पु.. सद्धम्ममनुरक्खणो, दी. वं. 4.30; स. उ. प. के रूप में ए. व., सुरक्षित रूप में रखे, रक्षा करे - माता यथा नियं इन्द्रियानु., चित्तानु., वण्णानु., वुत्तानु., सत्तानु, सीलानु के पुत्तमायुसा एकपुत्तमनुरक्खे, सु. नि. 149; - क्खेय्य अन्त. द्रष्ट; - रक्खणा/रक्खना स्त्री., संरक्षण, सुरक्षा विधिः, प्र. पु., ए. व., उपरिवत् - पझं नप्पमज्जेय्य, - संवरो च पहानञ्च, भावना अनुरक्खणा, अ. नि. 1(2).19; सच्चमनुरक्खेय्य, चागमनुब्रूहेय्य, सन्तिमेव सो सिक्खेय्या ति, अलद्धस्स च यो लाभो, लद्धस्स चानुरक्खणा, जा. अट्ठ. म. नि. 3.288; - क्खिसामि भवि., उ. पु., ए. व., मैं सुरक्षा 5.111; ...., या च लद्धस्स अनुरक्खणा, जा. अट्ठ. 5.112; करूंगा, सुरक्षित रखूगा, संयमित करके रखूगा - ..., - पधान/प्पधान नपुं. तत्पु. स. [अनुरक्षणप्रधान], सुरक्षा तमेवाहं साधुकमनुरक्खिसामीति, दी. नि. 3.25; -क्खिस्सते
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