________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुवासति
292
अनुविचरति - दाधिकरण नपुं., चार प्रकार के अधिकरणों अथवा विरित्तस्स अनुवासितस्स आतुरस्स सप्पायकिरिया इच्छितब्बा विवाद-विषयों में से एक, निन्दा के कारण उत्पन्न होति, मि. प. 203. वैधानिक प्रश्न अथवा विवाद का विषय - अनुवादाधिकरणं अनुवासेति अनु + Vवास का वर्त, प्र. पु., ए. व., तेल की कतिहि समथेहि सम्मति अनुवादाधिकरणं चतूहि .... बत्ती डालकर विरेचन कराता है - अनुवासनीयं अनुवासेति, सिया अनुवादाधिकरणं वे समथे अनागम्मअमूळ्हविनयञ्च, मि. प. 166. तस्सपापियसिकञ्च, चूळव. 211; अधिकरणानन्ति अनुविक्खित्त त्रि., अनु + वि + खिप का भू. क. कृ. विवादाधिकरणं अनुवादाधिकरणं आपत्ताधिकरणं [अनुविक्षिप्त], चारों ओर छितराया हुआ अथवा बिखेरा किच्चाधिकरणन्ति इमेसं चतुन्न, दी. नि. अट्ठ. 3.204; - हुआ, इधर-उधर भागा हुआ - पञ्च कामगुणे आरम टि. सीलविपत्ति (शीलों का उल्लंघन), आचारविपत्ति अनुविक्खित्तो अनुविसटो, स. नि. 3(2).349; अनुविक्खित्तो (सदाचरण का अतिक्रमण), दिट्ठिविपत्ति (मिथ्या धारणाओं ति इध भिक्खु छन्द उप्पादेत्वा कम्मट्ठानं मनसिकरोन्तो से ग्रस्त हो जाना) तथा आजीवविपत्ति (जीविका कमाने के निसीदति, स. नि. अट्ठ. 3.288. उचित साधनों से भिन्न अनुचित साधन अपनाना), इन चार अनुविगणेति अनु + वि + गण का वर्त., प्र. पु., ए. व., अपराधों में से किसी एक के अपराधी भिक्षु के विरुद्ध की अनुचिन्तन करता है, तर्क-वितर्क करता है - न नूनायं गई निन्दा या भर्त्सना के कारण उत्पन्न वैधानिक परमहितानुकम्पिनो, रहोगतो अनुविगणेति सासनं, थेरगा. मसला अनुवादाधिकरण कहा गया है. इसके अन्तर्गत 109; अनुविगणेतीति एत्थ 'न नूना ति पदद्वयं आनेत्वा अपराधी भिक्षु के विरुद्ध प्रयुक्त सभी प्रकार के अनुवाद सम्बन्धितब्बं नानुविगणेति नूना ति, न चिन्तेसि मजे, थेरगा. (निन्दा), अनुलोपना (दोषों की प्राप्ति), अनुभणना (दोष- अट्ठ. 1.236. विषयक वार्तालाप), अनुसम्यवङ्गता, अब्भुस्सहनता तथा अनुविचरति अनु + वि + चर का वर्तः, प्र. पु., ए. व. अनुबलप्पदान, ये सभी आ जाते हैं. अनुवादाधिकरण का [अनुविचरति], शा. अ. अनुविचरण करता है, आस पास समाधान सम्मुखविनय, सतिविनय, अमूळ्हविनय तथा विचरण करता है, ऊपर नीचे विचरण करता है, ला. अ. तस्सपापिय्यसिका, इन चार उपायों द्वारा करणीय कहा चिन्तन करता है, अन्वेषण करता है - रत्तिं अनुवितक्केति गया है.
अनुविचारेति- अयं रत्तिं धूमायना, म. नि. 1.198; यं दिवसं अनुवासति अनु + आस का वर्त., प्र. पु., ए. व., शा. अ. ब्राह्मणो नगरं अनुविचरति..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).963; पीछे बैठता है, बगल में बैठ जाता है, ला. अ. अनुकूल - न्ति वर्त., प्र. पु., ब. व. - अनुपरियन्तीति अनुविचरन्ति, रूप में रहता है, उपस्थित होता है, अनुवर्तन करता है; - पे. व. अट्ठ. 164; इमं लोकं अनविचरन्तीति, अ. नि. अट्ठ. सेय्य विधि., प्र. पु., ए. व., अनुकरण करे, अनुगमन करे 2.121; - रन्ते वर्त. कृ., सप्त. वि., ए. व. - अनुचङ्कमन्तेपि -- सक्कच्चं अनुवासेय्य, स राजवसतिं वसे, जा. अट्ठ. अनुविचरन्तेपि, म. नि. 1.350; - रमान वर्त. कृ., आत्मने, 7.191; अनुवासेय्याति उपोसथवासं वसन्तो अनुवत्तेय्य, जा. अनुविचरण करता हुआ - दण्डपाणिपि खो सक्को जवाविहारं अट्ठ. 7.192.
अनुचकममानो अनुविचरमानो येन महावनं तेनुपसङ्कमि, म. अनुवासन नपुं.. [अनुवासन], तेल-भरी वर्तिका द्वारा विरेचन नि. 1.155; - रि अद्य., प्र. पु., ए. व., इधर उधर विचरण कराना - ... वमनविरेचनानुवासनकिरियमनुसिक्खित्वा .... किया - यहिमनुविचरि राजा, परिकिण्णो इत्थागारेहि, जा. मि. प. 320.
अट्ठ. 5.180; - रिं अद्य., उ. पु., ए. व., मैंने इधर उधर अनुवासनीय त्रि, अनु + Vवास का सं. कृ., तेलमयी विचरण किया- सन्धाविस्सं संसरि अपरापरं अनुविचरिन्ति वर्तिका द्वारा विरेचन कराये जाने योग्य - अनुवासनीयं अत्थो, ध. प. अठ्ठ. 2.71; -रितुं निमि. कृ., इधर उधर अनुवासेति, मि. प. 166.
विचरने के निमित्त - समत्थो च सो खणेन सागरजलपरियन्तं अनुवासरं अ., क्रि. वि. [अनुवासरं], प्रतिदिन - मणिमुत्तादिक महिं अनुविचरितुं, मि. प. 143; - रित्वा पू. का. कृ., वित्तं महग्घं अनुवासरं चू. वं. 62.32.
इधर उधर या बहुत दूर तक विचरण करके - अयं हयवरो अनुवासित त्रि., अनु + Vवास का भू. क. कृ., वह, जिसका सागरजलपरियन्तं महिं अनुविचरित्वा खणेन इधागच्छेय्या ति, विरेचन तेलभरी बत्ती डाल कर कराया गया हो - वन्तस्स मि. प. 143; - रापेन्ति प्रेर. वर्त., प्र. पु., ब. व.
For Private and Personal Use Only