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अनुलेपनीय
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अनुलेपनीय त्रि.. अनु + √लिप का सं. कृ. [अनुलेपनीय). लेप किये जाने योग्य, लिपाई-पोताई किये जाने योग्य अनुलेपनीयं अनुलिम्पेति, मि. प. 166. अनुलोकी/ अनुलोकिक त्रि, देखने वाला, दृष्टिपथ में रखने वाला सीसानुलोकिनो हुत्वा अनुगता होती अत्थो, दी. नि. अट्ठ. 1.39; सारिपुत्तत्थेरोपि तस्स गमनं सुत्वा सीसानुलोकिको गन्त्वा ओकासं सल्लखेत्वा तं सत्तविसुद्धिक्कम पुच्छि अ. नि. अड. 1.159 अनुलोम त्रि.. विविध रूपों में प्रयोग [ अनुलोम]. शा. अ. बालों के अनुरूप, ला. अ. क. बालों की तरह ऊपर से नीचे की ओर आने वाला, नियमित या स्वाभाविक क्रम के अनुसार, अनुकूल, सीधे क्रम में बताति अनुलोमवचनत्थे निपातो, पटि. म. अट्ठ. 1.304; अपि नु मे तं. .... अनुलोमं अभविस्स आणस्स उप्पादाय सब्बे धम्मा अनत्ता'ति, स. नि. 2 (2).366 मेन तृ. वि. ए. व. अनुलोम या सीधे क्रम के द्वारा अनुलोमेन धम्मद्वितियं निब्बाने व पटिलोमभावस्स सु. नि. अड. 18 तो प. वि. प्रतिरू, निपा., अनुलोमक्रम से, क्रमसङ्गत रूप से सीधे क्रम से बोधिपक्षियधम्मानं उद्धञ्च अनुलोमतो अभि. अब 162: ख. मं. अ. क्रि. वि. नियिमित क्रम के अनुसार, सीधे क्रम से अथ खो भगवा - पठमं ग्रामं पटिव्यसमुप्पादं अनुलोमं साधुकं मनसाकासि उदा. 69. अथ वा आदितो पहाय अनुलोमतो अनुलोमो, तं अनुलोमं साधुकं मनसाकासीति सक्कच्च मनसि अकासि, उदा. अट्ठ. 31; ग. पु. / नपुं०, अनुधम्मं से निर्मित अनुधम्म के अनुकरण पर व्यु. सीधा या नियमित क्रम अथ वा आदितो पद्वाय अन्तं पापेत्वा वृत्तत्ता पत्तिया वा अनुलोमतो अनुलोमो, ते अनुलोम, उदा. अड. 31 अनुलोमपटिलोमन्ति अनुलोमञ्च पटिलोमञ्च, महाव, अड. 226; घ. नपुं०, तीसरा जवनचित्त, गोत्रभू से पूर्व की चित्त की एक अवस्था अप्पनायानुलोमत्ता, अनुलोमानि एव च तदेव, अनुलोमेन धम्मद्वितियं निब्बाने च पटिलोमभावतो, उदा. अ. 27; यस्मिहि जवनवारे अरियमग्गो उप्पज्जति, तत्थ यदा द्वे अनुलोमानि तदा ततियं गोत्रभु, चतुत्वं मग्गचितं ततो पर तीणि फलचित्तानि होन्ति, उदा. अनु. 27; ततियं जवनचित्तं, अनुलोमन्ति सञ्ञितं, अभि. अव 162; तस्मा तीणि फलानि हि, अनुलोमा तयो होन्ति, अभि. अव 165; स. उ. प. के रूप में अनत्तसञ्ञानु, अनिच्चसज्ञानु कप्पियानु.. कसिणानु. झानानु.. दुक्खसानु, निब्बिदानु पच्चनीयानु, पाठानु, विमोक्खानु,
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अनुलोम
सच्चानु, सासनानु तथा सुत्तानु के अन्त द्रष्ट क नपुं. तीसरा जवनचित्त गोत्रभू से तुरन्त पूर्ववर्ती चित्त दुतियं उपचार तं ततियं अनुलोमक, अभि. अव. 120 खन्ति स्त्री, उचित क्रम में भावना करने योग्य क्षान्ति अनुलोमखन्तिं लद्वान, मोदती तिदिवं गतोति ध. प. अ. 1.363: चित्त नपुं. कर्म. स. तीसरा जवनचित्त, गोत्रभू से सद्यः - पूर्ववर्ती चित्त - तस्मा सब्बन्तिमेन परिच्छेदेन द्वीहि अनुलोमधिरोहि भवितब्बं विसुद्धि 2.313 आण नपुं, कर्म. स. विपश्यना कर्मस्थान के दस ज्ञानों में दसवां ज्ञान, 9 ज्ञानों के कृत्यनिष्पादन में तथा बाद में 37 बोधिपक्षीय धर्मों के लिये अनुकूल विपश्यना कर्मस्थान का एक ज्ञान
निरन्तरं समाहितो अनुलोमत्राणानन्तरं गोत्रभुञणोदयतो पद्वाय, उदा. अट्ट. 154; सम्मसनञणं उदयब्बयत्राणं भङ्गञाणं भयत्राणं आदीनवत्राणं निब्बिदात्राणं मुच्चितुकम्यतात्राणं पटिसङ्गात्राणं सङ्ग्रारूपेक्खात्राणं अनुलोमजाणञ्चेति दस विपस्सनात्राणानि, अभि. ध. स. 66 पुरिमानं नवन्न किच्चनिष्पत्तिया उपरि च सत्ततिसाय बोधिपविखयधम्मानं अनुकूलंगाणं अनुलोमत्राणं, अभि. ध. वि. टी. 232: उपना स्त्री अपने प्रतिपाद्य की स्थापना के लिए उपयुक्त अथवा अनुकूल तार्किक स्थापना अयं ताव परवादी पक्खस्स उपनतो निग्गहपापनारोपनानं लक्खणभूता अनुलोमठपना नाम कथा अड. 110: त्त नपुं. भाव. [अनुलोमत्व]. अनुकूलता, उपयुक्तता, अनुकूल या उपयुक्त रहने की स्थिति अप्पनायानुलोमता, अनुलोमानि एवं च यं तं सम्बन्तिमं एत्थ गोत्रभूति पच्चति अभि. अव 899 (गा. ) धम्मानुधम्मं पटिपज्जमानोति लोकुत्तरधम्मस्स अनुलोमत्ता अनुधम्मभूतं विपस्सनं भावयमानो सु. नि. अड्ड. 2.57;
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धम्म पु. कर्म. स. [अनुलोमधर्म] अनुकूल धर्म, उपयुक्त प्रत्यवेक्षण अयमनुधम्मोति अयं अनुलोमधम्मो होति. स. नि. अड्ड. 2.236 नय पु. कर्म, स. [अनुलोमनय] अपनी तार्किक स्थापना के लिये अनुकूल तर्क-पद्धति इदानि धम्मेन... दस्सेतुं अनुलोमनये पुच्छा सकवादिस्स, अत्तनो लद्धिं निस्साय पटिज्ञा परवादिस्स कथा अट्ठ. 113; पक्ख पु.. कर्म. स. [अनुलोमपक्ष], तार्किक स्थापना में अनुकूल पक्ष तेन व्रत रेतिआदि अनुलोमपको निग्गहस्स पापितत्ता अनुलोमपापना नाम, कथा. अ. 110; -पच्चनीय नपुं. दुकपद्वान की एक प्रकार की गणनापद्धति का शीर्षक यथा कुसलत्तिके अनुलोमपच्चनीयगणना एवं गणेतब्ब पट्टा. 2.34: पञ्चक नपुं. कथा की पुग्गलकथा
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