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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोजन 282 अनुरक्खति सीलादीनि सम्पादेत्वा देवमनस्सानं सन्तिका सक्कारं लभन्ति, या संधारण हेतु किया जा रहा दृढ़ प्रयास, समाधि के ध. प. अट्ठ.2.160. निमित्त की सुरक्षा करने वाले के चित्त में उत्पन्न वीर्य - अनुयोजन नपुं.. [अनुयोजन], किसी के साथ, पीछे किया चत्तारिमानि, ..., पधानानि, ..., संवरप्पधानं, पहानप्पधानं. गया, जोड़, अन्य के साथ योग - ..., तत्थ भावनाप्पधानं, अनुरक्खणाप्पधानं, अ. नि. 1(2).18; 19; दी. सहजातानुयोजनरसो, ..., विसुद्धि. 1.137; सहजातानं नि. 3.180; अनुरक्खणाप्पधानन्ति समाधिनिमित्तं अनुरक्खन्तस्स अनुयोजनं आरम्मणे अनुविचारणसङ्घातअनुमज्जन-वसेनेव उप्पन्नवीरियं, अ. नि. अट्ठ. 2.253; - णभब्ब त्रि., वह, वेदितब्ब, विसुद्धि, महाटी. 1.156. पुद्गल या व्यक्ति जिसकी विमुक्ति अथवा चित्तविशुद्धि की अनुय्योजेत्वा अनु + युज के प्रेर. का पू. का. कृ.. अर्हता अनुरक्षण पर आधारित नहीं रहती है - सचे न अनुयोजित कराके, किसी अन्य के साथ जुड़वा कर या अनुरक्खति, परिहायति ताहि समापत्तीहि - अयं वुच्चति सङ्गति बैठवा कर - ... अप्पेव नाम अत्तनो धम्मतायेपि पुग्गलो अनुरक्खणाभब्बो, पु. प. 118; अनुरक्खणाभब्बोति सल्लक्खेय्या ति अनुय्योजेत्वा तिट्ट, तात, याव ते यागुभत्तं अनुरक्षणाय अपरिहानि आपज्जितुं भब्बो, पु. प. अठ्ठ. 34. सम्पादेमि, ध. प. अट्ठ. 2.291; स. नि. अट्ठ. 1.269. अनुरक्खति अनु + रक्ख का वर्त, प्र. पु., ए. व. अनुय्यान नपुं., संभवतः अनु + उय्यान से व्यु. [अनूद्यान]. [अनुरक्षति], रक्षा करता है, सुरक्षित बनाए रखता है, छोटा सा उद्यान, साधारण बाग - अनेकानुभवाधारे देखभाल करता है, निगरानी करता है, ठीक-ठाक करके या नानानुय्यानसुन्दरे चू. वं. 68.58; संभवतः नानाउय्यानसुन्दरे विशोधित करके रखता है - भिक्खु ... समाधिनिमित्तं के स्थान पर भ्रष्ट पाठ. अनुरक्खति अट्ठिकसझं ... उद्धमातकसङ्ख, अ. नि. अनुय्युत त्रि., उय्युत का निषे. [अनुद्युत], सार्थक, विषय 1(2).19; दी. नि. 3.181; अनुरक्खतीति समाधिपारिया सन्दर्भ के सर्वथा अनुरूप, समयानुरूप - अत्थं न हापेति पन्थिकधम्मे रागदोसमोहे सोधेन्तो रक्खति, अ. नि. अट्ठ. अनुय्युतं भणं, महाव. 483; अनुय्युतं भणन्ति अनुज्ञातं 2.253; दी. नि. अट्ठ. 3.184; सचे अनुरक्खति, न परिहायति अनपगतं भणन्तो, महाव. अट्ठ. 410. ताहि समापत्तीहि, पु. प. 118; सचे अनुरक्खतीति सचे अनुरक्ख पु.. [अनुरक्ष], सुरक्षा, सुरक्षण - विजयो विजितो अनुपकारधम्मे पहाय उपकारधम्मे सेवन्तो समापज्जति, पु. च सो नावं अनुरक्खे न च, दी. वं. 9.32. प. अट्ठ, 34; - ते वर्त.. प्र. पु.. ए. व., आत्मने.. उपरिवत् अनुरक्खक त्रि., अनु + रक्ख से व्यु. [अनुरक्षक], सुरक्षा - माताव पुत्तं अनुरक्खते पतिं, अ. नि. 2(2).230; - न्त करने वाला, सुरक्षित रखने वाला, संधारक - केवल स. उ. वर्त. कृ., सुरक्षित या नियन्त्रित रखता हुआ - प. में ही प्राप्त, वंसानु. के अन्त. द्रष्ट... सच्चवाचानुरक्खन्तो, जीवितं चजितुमुपागम, चरिया. 404; अनुरक्खण क. नपुं, अनु + रक्ख से व्यु., क्रि. ना. - न्तेन वर्त. कृ., तृ. वि., ए. व. - तुम्हाकं चित्तं अनुरक्खन्तेन [अनुरक्षण], संरक्षण, सुरक्षा, संधारण, जो उपलब्ध है या मया एवं वुत्तं नेवेत्थ तुम्हाक दोसो अत्थि, न मरह, ध. प. उत्पन्न है उसको ठीक से सुरक्षित रखना - अम्हाकं ... अट्ट, 1.351; - क्ख अनु., म. पु., ए. व., तू रक्षा कर, अम्हाकं अनुरक्खणत्थाय अरञ्जवासं अनुजानि, जा. अट्ठ. सुरक्षित बनाकर रख - ..., तमेव त्वं साधुकमनुरक्खा ति, 1.138; ... या च लद्धस्स अनुरक्खणा, ... उप्पन्नस्स पन दी. नि. 3.25; - क्ख थ अनु., म. पु.. ब. व., तुम लोग रक्षा अनुरक्खणमेव भारो, जा. अट्ठ. 5.112; ख. त्रि., संरक्षक, करो, सुरक्षित अथवा नियन्त्रित करके रखो- अप्पमादरता संधारक, सुरक्षितरूप में रखने वाला - अञवादो सारत्थो होथ, सचित्तमनुरक्खथ, ध. प. 327; - क्खे विधि., प्र. पु.. सद्धम्ममनुरक्खणो, दी. वं. 4.30; स. उ. प. के रूप में ए. व., सुरक्षित रूप में रखे, रक्षा करे - माता यथा नियं इन्द्रियानु., चित्तानु., वण्णानु., वुत्तानु., सत्तानु, सीलानु के पुत्तमायुसा एकपुत्तमनुरक्खे, सु. नि. 149; - क्खेय्य अन्त. द्रष्ट; - रक्खणा/रक्खना स्त्री., संरक्षण, सुरक्षा विधिः, प्र. पु., ए. व., उपरिवत् - पझं नप्पमज्जेय्य, - संवरो च पहानञ्च, भावना अनुरक्खणा, अ. नि. 1(2).19; सच्चमनुरक्खेय्य, चागमनुब्रूहेय्य, सन्तिमेव सो सिक्खेय्या ति, अलद्धस्स च यो लाभो, लद्धस्स चानुरक्खणा, जा. अट्ठ. म. नि. 3.288; - क्खिसामि भवि., उ. पु., ए. व., मैं सुरक्षा 5.111; ...., या च लद्धस्स अनुरक्खणा, जा. अट्ठ. 5.112; करूंगा, सुरक्षित रखूगा, संयमित करके रखूगा - ..., - पधान/प्पधान नपुं. तत्पु. स. [अनुरक्षणप्रधान], सुरक्षा तमेवाहं साधुकमनुरक्खिसामीति, दी. नि. 3.25; -क्खिस्सते For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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