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अनुपुब्बसो
अनुपेक्खेति अनुपुब्बसो अ., क्रि. वि. [अनुपूर्वतः], क्रमशः, नियमित अनुपुरोहित पु.. [अनुपुरोहित], सहायक पुरोहित, साधारण क्रम से, व्यवस्थित रूप से, क्रमसङ्गत रूप से - द्वत्तिसानि राजा का पुरोहित, अप्रधान पुरोहित - तत्थेव ते कत्तब्ध च ब्याक्खाता, समत्ता अनुपुब्बसो, सु. नि. 1006; देवानं करिस्सन्ती ति सत्त अनुपुरोहिते ठपेसि, दी. नि. अट्ठ. खन्धमारुळहा, निय्यन्ति अनुपुब्बसो, अप. 2.210; ये वोहं 2.229; उद्दालक उप्पब्बाजेत्वा उपपुरोहितं करोथ .... जा. कित्तयिस्सामि गिराहि अनुपुब्बसो दी. नि. 2.187; अनुपुब्बसोति अट्ठ. 4.271. अनुपटिपाटिया, दी. नि. अट्ठ. 2.249.
अनुपेक्खणता' स्त्री., अनुपेक्खण का भाव. [अनुप्रेक्षणता]. अनुपुब्बाधिगत त्रि.. कर्म. स. [अनुपूर्वाधिगत], क्रमशः उपेक्षा न करने की अवस्था, उपेक्षा न करना - आरम्मणं प्राप्त किया हुआ, क्रमसङ्गत-रूप में उपलब्ध या साक्षात्कृत अनुपेक्खमानो विय तिद्वतीति अनुपेक्खनता, ध. स. अट्ठ. 188. - अनुपुब्बाधिगतेन अरहत्तमग्गेन अविज्जण्डकोसंपदालेत्वा अनुपेक्खणता स्त्री., अनु + पेक्खण का भाव. [अनुप्रेक्षणता], ...., अ. नि. अट्ठ. 3.205.
चित्त की सुदृढ़ चिन्तन या गम्भीर चिन्तन में रहने की अनुपुब्बाभिसञआनिरोध पु. कर्म स. [अनुपूर्वाभिसंज्ञानिरोध]. स्थिति, गम्भीर चिन्तन की अवस्था - कतमो तस्मिं समये क्रमशः प्राप्त संज्ञा का निरोध, ध्यान की अवस्था में अनुभूत विचारो होति? यो तस्मिं ... विचारो अनुविचारो ... एक आध्यात्मिक उपलब्धि - एवं खो, पोट्टपाद, अनुसन्धानता अनुपेक्खनता- अयं .... ध. स. 8; 85; 2843 अनुपुब्बाभिसनिरोध-सम्पजान-समापत्ति होति, दी. नि. 372; विचरणवसेन वा उपेक्खनता अनपेक्खनता, ध. स. 1.164; सम्पजानसञआनिरोधसमापत्तीति सम्पजानन्तस्स अन्ते अट्ठ. 188. सञआ निरोधसमापत्ति .... दी. नि. अट्ठ. 1.278; द्रष्ट. ___ अनुपेक्खति अनु + प+ Vइक्ख का वर्त.. प्र. पु., ए. व. अभिसञआनिरोध.
[अनुप्रेक्षते], सावधानी के साथ देखता है, उचित रूप में अनुपुब्बाभिसमय पु.. कर्म. स. [अनुपूर्वाभिसमय], क्रमशः गहराई के साथ सोचता-विचारता है - चेतसा अनवितक्केति विकसित आन्तरिक ज्ञान, क्रमशः प्राप्त आन्तरिक अनुभूति अनुविचारेति मनसानुपेक्खति, दी. नि. 3.192; अ. नि. या अन्तर्दृष्टि - अनुपुब्बाभिसमयोति, कथा. 180; न वत्तब्बं 2(1).20; 82; - मान वर्त. कृ. [अनुप्रेक्षमाण], गहराई के अनुपुब्बाभिसमयोति, कथा. 185; तेसं लद्धिविवेचनत्थं साथ सोच-विचार कर रहा, सावधानीपूर्वक देख रहा - अनुपुब्बाभिसमयोति पुच्छा सकवादिस्स, पटिआ इतरस्स, पापकेन मनसानुपेक्खमानो नेव हत्थियायी भविस्सति, अ. कथा. अट्ठ. 159; - कथा स्त्री., कथा. के दूसरे वर्ग की 9वीं नि. 2(2).22; - क्खित त्रि., भू. क. कृ. [अनुप्रेक्षित], वह कथा का शीर्षक; कथा. 180-186.
जिस पर सावधानीपूर्वक सोच-विचार किया गया है, अच्छी अनुपुब्बी स्त्री., [आनुपूर्वी], क्रमशः आने वाली, क्रमसङ्गत तरह से विचारित, सुचिन्तित - तथारूपस्स धम्मा बहुस्सुता ढङ्ग से की गई प्रस्तुति, द्रष्ट. आनुपुब्बी के अन्त..
होन्ति, धाता वचसा परिचिता मनसानुपेक्खिता दिडिया अनुपुबूपसन्त त्रि., अनुपुब्ब + उपसन्त का कर्म. स. सप्पटिविद्धा, चूळव. 207; म. नि. 1.277; मनसानुपेक्खिताति [अनुपूर्वोपशान्त], क्रमशः शान्त हो चुका, क्रमशः समाप्त चित्तेन अनुपेक्खिता, म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1(2).150. हो चुका, क्रमशः निरुद्ध, क्रमशः ठण्डा पड़ चुका - अनुपेक्खा स्त्री., उपेक्खा का निषे., तत्पु. स. [अनुपेक्षा], अनुपुब्बूपसन्तस्स, यथा न आयते गति, थेरीगा. अट्ठ. उपेक्षा का अभाव, उचित रुचि प्रकट करना, उचित ध्यान 177; उदा. 179; अप. 2.212; अनुपुब्बूपसन्तस्साति - उपेक्खाञआणेन अनुपेक्खाय, अनुलोमेन ... पटिलोमभावस्स, अनुक्कमेन उपसन्तस्स विज्झातस्स निरुद्धस्स, उदा. अट्ठ. .... पहानं, सु. नि. अट्ठ. 1.8.
अनुपेक्खितु पु., अनुपेक्खति से व्यु., कर्तृ. कृ., अनुप्रेक्षण अनुपुब्बेन अ., क्रि. वि. [अनुपूर्वेण], क्रमशः, नियमित रूप या गम्भीर सोच विचार करने वाला, समुचित अनुचिन्तन में, धीरे-धीरे, कालक्रम में - अनुपुब्बेन चारिक चरमानो येन करने वाला - अत्तानुपेक्खीति अत्तनोव कताकतं जाननवसेन कपिलवत्थु तदवसरि महाव. 104; म. नि. 2.250; अनुपुब्बेनाति अत्तानं अनुपेक्खिता, अ. नि. अट्ठ. 3.44. अनुपटिपाटिया, ध. प. अट्ठ. 2.197; सो अनुपुब्बेन वयप्पत्तो अनुपेक्खेति अनु + प + Vइक्ख के प्रेर. का वर्त., प्र. पु., .... जा. अट्ठ. 22; होतीति हि अयं वारो, अनुपुब्बेन ए. व. [अनुप्रेक्षयति], उचित एवं गम्भीर सोच-विचार-हेतु आगतो, अभि. अव. 61.
प्रेरित करता है, अनुप्रेक्षण कराता है - पुग्गलं सञआपति
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