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अनुपीळित
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अनुपुब्बनिरोध अनुपीळित त्रि., अनु + पीळ का भू. क. कृ. [अनुपीड़ित], अनुपुब्बकारणा तस्मिं ठाने परिनिब्बायति. म. नि. अत्यधिक कष्ट में पीड़ित, बहुत अधिक विपत्तिग्रस्त या 2.118. व्यथित - रत्तस्स हि उक्कुटिक पदं भवे, दुट्ठस्स होति अनुपुब्बकिरिया स्त्री., कर्म. स. [अनुपूर्वक्रिया], क्रमशः या सहसानुपीलितं, सु. नि. अट्ठ. 2.236; अ. नि. अट्ठ. 1.322; क्रमसङ्गत तरीके से की जाने वाली क्रिया - इमस्स ... ध. प. अट्ठ. 1.116.
अनुपुब्बसिक्खा अनुपुब्बकिरिया अनुपुब्बपटिपदा ... म. अनुपुच्छति अनु + vपुच्छ का वर्त., प्र. पु.. ए. व. नि. 3.50; 2.155; उदा. 130; एतेसं अज्झेनेपि पन [अनुपृच्छति], प्रश्न करता है, पूछता है, अनुमति लेता है; अनपब्बकिरियाय पञआयतीति दस्सेति. म. नि. अट्ठ. (उप.प.) - सि म. पु., ए. व., तूं पूछता है - एवं मं पहितत्तम्पि, किं । 3.46. जीवमनुपुच्छसि, सु. नि. 434; - च्छामि उ. पु., ए. व., मैं अनुपुब्बचारी त्रि., [अनुपूर्वचारी], नियमित क्रम में भिक्षाटन पूछता हूं- आणं सक्कानपुच्छामि, कथं नेय्यो तथाविधो, स. में विचरण करने वाला, एक घर के बाद दूसरे घर में बारीनि. 1119; आणं सक्कानुपुच्छामीति सक्काति भगवन्तं बारी से भिक्षा हेतु जाने वाला - सपदानचारीति अवोक्कम्मचारी आलपन्तो आह. सु. नि. अट्ठ. 2.293; - च्छमानो वर्त. कृ., अनुपुब्बचारी, सु. नि. अट्ठ. 1.94. पूछ रहा, प्रश्न कर रहा - दिठ्ठञ्च निस्साय अनुपुच्छमानो, अनुपुब्बतनुक त्रि.. [अनुपूर्वतनुक], नीचे से ऊपर की ओर (मागण्डियाति भगवा) समुग्गहीतेसु पमोहमागा, सु. नि. क्रमशः पतला अथवा कृश रहने वाला शिखर - सिखरसीसो 847; -छि अद्य.. उ. पु., ए. व. - किमेवहं तुण्डिलमनुपुच्छि वा उद्धं अनुपुब्बतनुकेन सीसेन समन्नागतो, महाव. अट्ठ. करेय्य संभातरं कालिकायं, जा. अट्ठ. 4.223.
294. अनुपुब्ब त्रि., [अनुपूर्व], क्रमबद्ध, क्रमानुसङ्गत, पूर्वापरक्रम अनुपुब्बता स्त्री.. भाव., अनुपुब्ब से व्यु. [अनुपूर्वता], क. में निबद्ध, अनुक्रमिक - अनुपुब्बा च ते ऊरू, नागनाससमूपमा, अनुकूलता, क्रमसङ्गत पद्धति से की गयी क्रिया, अनुकूल जा. अट्ठ. 5.150; किमानुपुब्बं पुरिसो, किं वतं किं समाचार क्रिया - अनुपुब्बताति अनुकूलकिरिया, वि. व. अट्ठ. 235; थेरगा. 727; ... किमानुपुब्बन्ति अनुपुब्बं अनुक्कमो, अनुपुब्बमेव ख. पूर्वापरक्रम, क्रमसङ्गतता, क्रमबद्ध परम्परा, केवल स. वक्खमानेसु वतसमाचारेसु को अनुक्कमो, थेरगा. अट्ठ. उ. प. के रूप में ही प्राप्त, गणनानु., पदानु. के अन्त. 2.233; क्रि. वि. के रूप में द्रष्ट. अनुपुब्बं, अनुपुब्बतो, द्रष्ट.. अनुपुब्बसो के अन्त..
अनुपुब्बतो/अनुपुब्बं अ., क्रि. वि. [अनुपूर्वतः], क्रमशः, अनुपुब्बं अ. क्रि. वि. [अनुपूर्व], नियमित क्रम में, एक-एक क्रमसङ्गत पद्धति से, क्रमिक प्रक्रिया के अनुरूप - अनुपब्बतो करके, क्रमशः - अनुपुब्बं अनुधम्म ब्याकरोहि मे, सु. नि. मनसिकरोन्तेनापि च नातिसीघतो मनसिकातब्ब, विभ. अट्ठ. 515-16: 605; अनुपुब्बन्ति पहपटिपाटिया अनुधम्मन्ति 216; तत्थ अनुपुब्बतोति इदहि सज्झायकरणतो पट्ठाय अत्थानुरूपं पाळि आरोपेन्तो, सु. नि. अट्ठ. 2.135; तस्स अनुपटिपाटिया मनसिकातब्बं न एकन्तरिकाय, विसुद्धि. ब्रह्मा वियाकासि, अनुपुब्बं यथातथं, म. नि. 1.423; अनुपुब्बं 1.235; झानानि पन चत्तारि, समापज्जानुपुब्बतो, अभि. परिचिता, यथा बुद्धेन देसिता, थेरगा. 548; 647; तथा अव. 137. अनुपुब्बं अनुक्कमेन परिचिता आसेविता भाविता, थेरगा. अनुपुब्बनिन्न त्रि, तत्पु. स. [अनुपूर्वनिम्न]. क्रमशः गहरा अट्ठ. 2.158.
होता हुआ, धीरे-धीरे गहराई को प्राप्त हो रहा - अनुपब्बनिन्नो अनुपुब्बकथा/अनुपुब्बिकथा/आनुपुब्बिकथा स्त्री., 1. अनुपुब्बपोणो अनुपुब्बपब्भारो, न आयतकेनेव पपातो. उदा. क्रमशः विकसित होने वाला कथन, क्रमानुसङ्गत उपदेश 2. 128; अ. नि. 3(1).39; अनुपुब्बनिन्नोतिआदीनि सब्बानि दानकथा, सीलकथा, सग्गकथा तथा मग्गकथा के रूप में अनुपटिपाटिया निन्नभावस्सेव वेवचनानि, उदा. अट्ठ. 244. क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ने वाले बुद्धवचन या अनुपुब्बनिरोध पु., कर्म. स. [अनुपूर्वनिरोध]. (ध्यान-प्रक्रिया बुद्धोपदेश - तस्स आविभावत्थं अयमनुपुब्बिकथा, जा. अट्ठ में चेतना का) क्रमशः प्राप्त होने वाला निरोध या उपशम 1.61; तदत्थदीपनत्थाय अनुपुब्बकथा अयं, म. वं. 22.1. - नव अनुपुब्बनिरोधा, पठमं झानं .... दी. नि. 3.211; अनुपुब्बकारण नपुं., कर्म. स., क्रमशः अथवा बारी बारी अनुपुब्बनिरोधाति अनुपटिपाटिया निरोधा, दी. नि. अट्ठ. से कराये जाने वाले करतब या काम - सो अभिण्हकारणा 3.209; नवयिमे, भिक्खवे, अनुपुब्बनिरोधा, अ. नि.
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