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अनुपारम्भ
के साथ सुखं विहरति अविघातं अनुपायासं अपरिविाहं स. नि. 1 (2). 135.
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अनुपारम्भ त्रि, उपारम्भ का निषे [ अनुपालम्भ ], द्वेषमयी या परछिद्रान्वेषी प्रवृत्ति से मुक्त, निन्दा या दुर्वचन न कहने वाला, अनिन्दक, अद्वेषी अनासवा अनुपधिकाति निद्दोसा अनुपारम्भा दी. नि. अट्ट. 3.70 - चित्त त्रि. ब. स. [ अनुपालम्भचित्त], उलाहना न देने या परनिन्दा न करने की प्रवृत्ति से युक्त चित्त वाला- अनुपारम्भचित्तो च सद्धम्मसोतुमिच्छति अ. नि. 2 (2) 177; सो अनुपारम्भचितो समानो भब्बो मुट्ठस्सच्चं पहातु ...चेतसो विक्खेप पहातु अ. नि. 3(2).123.
अनुपालक त्रि. [अनुपालक ]. पालन करने वाला, रक्षा करने वाला कम्मजानं अनुपालको हुत्वा पच्चयो होति., म. नि. अट्ठ. ( मू०प०) 1 (1). 218; जनको हेतु अक्खातो, पच्चयो अनुपालको अमि, अव. 153.
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अनुपालन नपुं, अनु + √पाल का कर्तृ. कृ. [अनुपालन ], संरक्षण, संधारण, सततरूप में अनुरक्षण - उस्मं पटिच्च
जीवितिन्द्रियेन उस्माय अनुपालनं म. नि. अड्ड. (मू.प.) 1(2).245; यथावुत्तप्पकारउपकारुपत्थम्भनानुपालनपरिवारमेव हुत्वा... ध. स. अड. 345 विसुद्धि. 2.73: जातित्र्य नामगोत्तञ्च आयुञ्च अनुपालन, दी. वं. 3.2; - लक्खण त्रि.. ब. स. [ अनुपालनलक्षण] पालन करने या संरक्षा करने की प्रकृति वाला, संरक्षण करने के स्वभाव से युक्त - अनुपालनलक्खणे इन्दद्वं कारेतीति इन्द्रियं ध. स. अट्ठ 168 तं पन अत्तना अविनिभुत्तानं धम्माने अनुपालनलक्खणं अभि. अव 21 समत्थ त्रि.. [अनुपालनसमर्थ] पालन या रक्षा करने में सक्षम अनुपालनसमत्थतो धम्मभण्डागारिकत्तसिद्धि, म. नि. अड. ( मू.प.) 1 ( 1 ) .8; - समत्थता स्त्री भाव [ अनुपालनसमर्थता], रक्षा करने की क्षमता धम्मकोसस्स अनुपालनसमत्थताय धम्मभण्डागारि कत्तसिद्धि, उदा. अड. 13 म. नि. अड. (म.प.) 1 ( 1 ) 8. अनुपालना स्त्री, अनुपालन से व्यु, लगातार संरक्षण, सतत संधारण वितीति हि जीवितिन्द्रियसङ्घाताय अनुपालनाय नाम, स. नि. अड. 2.235; अञ्ञथत्तं जरा वुत्ता, ठिती च अनुपालनाति तदे अनुपालित त्रि.. अनु + √पाल का भू. क. कृ. [अनुपालित]. किसी के द्वारा रक्षित, वह जिसका पालन या रक्षा किसी के द्वारा की गयी हो पुत्ता हि मातापितृहि वढिता येव अनुपालिता च, अ. नि. अट्ठ. 2.28.
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अनुपिय / अनुपिया
अनुपालेति अनु + √पाल का वर्त, प्र. पु. ए. व. [अनुपालयति], अनुपालन करता है, संरक्षित करके रखता है, बरकरार रखता है, मानता रहता है- याव नं अनुपालेति, ताव सो सुखमेधति, जा. अड्ड. 2.357, 3.16; अनुपालेतीति यो कोचि एवरूपं लभित्वा याव रक्खति जा. अड. 2.357;
धम्मे अनुपालेति उदकं विय उप्पलादीनि अभि. अव. 21 - लय अनु. म. पु. ए. व. [ अनुपालय] अनुपालन करो
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अनुपालय वचसा कम्मुना च, जा. अट्ठ 7.215; लेसिं/ लयि अद्य उ. पु. ए. व. मैंने अनुपालन किया था भाजनं अनुपालेसिं, भिक्खुसहस्स तावदे, अप. 1.229, भाजनं अनुपालय, अप० 1.229; लियमान कर्म० वा., आयुना अनुपालियमानं
वर्त. कृ.. अनुपालित होता हुआ ध. स. अट्ठ. 344.
अनुपासिका स्त्री, उपासिका का निषे. तत्पु, स. [ अनुपासिका ]. वह नारी, जो उपासिका अर्थात् बुद्ध की गृहस्थ अनुयायिनी नहीं है, उपासिका भिन्न नारी - साच अनुपासिका, महाव, 193. अनुपाहन त्रि. ब. स. [ अनुपाहन] बिना जूतों वाला सत्या अनुपाहनो मतीति थेरापि भिक्खू अनुपालना मन्ति महाव. 260 राजपुती गिरिद्वारे, पत्तिका अनुपाहना, जा. अड. 7.323; कथं नु पथं गच्छन्ति, पत्तिका अनुपाहना, जा. अ. 7.370; थेरान भिक्खूनं अनुपाहनानं चङ्गमन्तानं सउपाहनो चङ्कमति, महानि. 166; विलो. सउपाहन. अनुपाहार पु.. देखिए अनुपहार के अन्त.. अनुपिय / अनुपिया नपुं / स्त्री. संभवतः अनूपिय का अप मल्ल जनपद के एक नगर अथवा आम्रवन का नाम, जहां गृहत्याग के उपरान्त तथा राजगृह जाने से पहले सिद्धार्थ गौतम ने प्रथम सप्ताह बिताया था: क. नपुं,, अनुपियं नाम मल्लानं निगमो, चूळव. 316; दी. नि. 3.1; बोधिसत्तोपि पब्बजित्वा तस्मिंयेव पदेसे अनुपियं नाम अम्बधनं अत्थि, तत्थ सत्ताहं पब्बज्जासुखेन वीतिनामेत्वा ... राजगहं पाविसि, जा. अनु. 1.75; ख. स्त्री. एक समयं भगवा अनुपियाय विहरति अम्बवने, उदा. 89; तेन समयेन बुद्धो भगवा अनुपियाय विहरति चूळव. 316 नगर नपुं. अनुपिय नामक मल्ल जनपद में स्थित नगर इदं सत्था अनुपियनगरं निस्साय अनुपियअम्बवने विहरन्तो.... जा. 31. 1.144; अम्बवन नपुं०, मल्ल जनपद के एक अनुपियअम्बवने विहरन्तो सुखविहारि
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आम्रवन का नाम भदियत्थेरं आरम्भ कधेसि जा. अड. 1.144.
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