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अनादर
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अनादान
अनाथानं पिण्ड अदासि, तेन अनाथपिण्डिकोति सङ्घयं गतो, खु. पा. अट्ठ. 90; ख. पिता का नाम सुमनसेट्ठी, ज्येष्ठभ्राता का नाम सुभूतिथेर - सावत्थियं सुमनसेट्ठिस्स गेहे निब्बत्ति, सुभूतीतिस्स नाम अंकसु, अ. नि. अट्ठ. 1.173; ग. महाउपासिका विशाखा के साथ इनका उल्लेख, कभी-कभी सुभूति को महानाथपिण्डिक तथा सुदत्त को चुळअनाथपिण्डिक कहा गया है, जा. अट्ट, 1.152; ध. प. अट्ठ. 2.81; घ. पुञलखणदेवी का नाम इनकी अग्रमहिषी के रूप में प्राप्त, जा. अट्ठ. 2.337; ङ. राजगृह के एक श्रेष्ठी की बहन के साथ इनके विवाह का उल्लेख प्राप्त होता है, चूळव. 282; च. पुत्र का नाम काल, ध. प. अट्ठ. 2.108; छ. तीन पुत्रियों के नाम महासुभद्दा, चूलसुभद्दा एवं सुमनादेवी, ध. प. अट्ठ. 1.88: ज. बहू का नाम सुजाता, नतिनी का नाम खेमा, जा. अट्ठ. 2.287; झ. उनके मित्रों के रूप में उग्गसेट्ठी एवं काळकण्णि के नाम प्राप्त, ध. प. अट्ठ. 2.265 जा. अट्ठ. 1.348; ञ. पुण्णा एवं रोहिणी के नाम उनकी दासियों के रूप में उल्लिखित, थेरीगा. अट्ठ. 223; जा. अट्ठ. 1.242; ट. श्रावस्ती में भगवान बुद्ध को जेतवनविहार का दान तथा इस विहार में अनेक बुद्धोपदेशों के उल्लेख सम्पूर्ण त्रिपिटक के विभिन्न भागों में प्राप्त, जा. अट्ठ. 1.102; ठ. उसके रुग्ण होने का उल्लेख निकायों में मिलता है - अनाथपिण्डिको गहपति आबाधिको होति दुक्खितो बाळहगिलानो, म. नि. 3.309; ड. उनकी मृत्यु तथा तदुपरान्त देवपुत्र के रूप में तषित स्वर्ग में उनकी उत्पत्ति के उल्लेख भी प्राप्त - अथ खो अनाथपिण्डिको गहपति, ... कालमकासि तुसितं कायं उपपज्जि, म. नि. 3.313; - पुत्तकालवत्थु नपुं., ध. प. अट्ठ. में आगत एक कथानक का शीर्षक, जिसमें अनाथपिण्डिक के पुत्र काल का कथानक वर्णित है, ध. प. अट्ठ. 2.108-110; - वग्ग पु., स. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, स. नि. 1(1)62-68; - सेट्ठिवत्थु नपुं., ध. प. अट्ठ. के एक कथानक का शीर्षक, जिसमें अनाथपिण्डिक से सम्बद्ध एक वृत्तान्त वर्णित है; ध. प. अट्ट. 2.7-9; - पिण्डिकोवादसुत्त म. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, जिसमें अनाथपिण्डिक के महाप्रयाण के काल में बुद्ध-प्रवेदित उपदेश का वर्णन मिलता है, म. नि. 3.309315. अनादर' पु., आदर का निषे., तत्पु. स. [अनादर]. 1. असम्मान, अपमान, उपेक्षा, तिरस्कार - अवमानं तिरोक्कारो परिभवोप्यनादरो, पराभवोप्यवा , अभि. प. 172:2. प्रयोग
नियम के अनुसार अनादर में छट्ठी तथा सप्त. वि. होती हैं -- अनादरे च, क. व्या. 307; छट्ठी चानादरे, मो. व्या. 2.37; तस्स पस्सन्तस्सेवाति अनादरे सामिवचनं तस्मिं पस्सन्तेयेवाति अत्थो, सारत्थ. टी. 1.124; अनादरे हि इदं सामिवचनं, उदा. अट्ठ. 310. अनादर त्रि., ब. स. [अनादर], आदर-रहित, सम्मान का भाव न रखने वाला, अन्यों के प्रति सम्मान प्रकट न करने वाला; असम्मानित - उक्खित्तं भिक्खं ... अनादरं अप्पटिकारं अकतसहायं तमनुवत्तेय्य पाचि. 293; दुस्सीललुद्दा फरुसा अनादरा, सु. नि. 250; अनादराति इदानि न करिस्साम, विरमिस्साम एवरूपा ति एवं आदरविरहिता, सु. नि. 1.265; यतो च होति पापिच्छो अहिरीको अनादरो, इतिवु. 26; - ता स्त्री., भाव. [अनादरता], असम्मानभाव, तिरस्कारभाव, तिरस्क्रिया - सहधम्मिके वुच्चमाने ... विष्पटिकूलग्गाहिता ..... अनादरियं अनादरता अगारवता ... अयं वुच्चति दोवचस्सता, ध. स. 1332; अनादरस्स भावो अनादरियं, इतरं तस्सेव वेवचनं, अनादियनाकारो वा अनादरता, ध. स. अट्ठ. 415; - भाव पु.. [अनादरभाव], उपरिवत् - अनादरभावो अनादरियं विभ. अट्ठ. 451. अनादरिय नपुं., अनादर से निष्पन्न [अनादर्य], अनादर का भाव, असम्मानभाव, असावधानी - अनादरभावो अनादरिय वि. भ. अट्ठ. 451; अनादरियं नाम द्वे अनादरियानि, पाचि. 153; सो अनादरियं पटिच्च करोति येव, पाचि. 153; ध. स. 1332; अनादरियेन वा अजाननेन वा, मि. प. 248; - रिक त्रि., अनादरिय से व्यु. [अनादर्यक]. उपरिवत् - पापमित्तसंसग्गेन पन ... अनादरिको हुत्वा .... पे. व. अट्ठ. 6, पाठा. अनादरियको; - कथा स्त्री., विन. वि. के एक खण्डविशेष का शीर्षक, 1604-1609; - ता स्त्री॰, भाव., अनादरभाव, असम्मानभाव, तिरस्कारभाव - सहधम्मिके वुच्चमाने ... अनादरियं अनादरियता ... अयं वच्चति दोवचस्सता, पु. प. 126, पाठा. अनादरियता.. अनादान त्रि., आदान का निषे., ब. स., इच्छा न करनेवाला, वीततृष्ण, स्कन्धों के प्रति रागमुक्त, आत्मग्राह से मुक्त मनोदशा वाला, कामनारहित या निष्काम - वीततण्हो अनादानो, निरुत्तिपदकोविदो, ध, प. 352; अनादानोति खन्धादीस निग्गहणो, ध. प. अट्ट. 2.321; वीततण्हो अनादानो, सतो भिक्खु परिब्बजे, जा. अट्ठ. 4.316; पञ्चन्नं खन्धानं अहं ममन्ति गहितत्ता सादानेस तस्स गहणस्स अभावेन अनादानं, ध. प. अट्ठ. 2.386.
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