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अनिक्खिपन
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अनिच्च
अट्ठ. 190; चेतसिकवीरियवसेन अनिक्खित्तधुरो, सु. नि. अट्ठ. 1.200; - धुरता स्त्री., भाव.. सुदृढ़ वीर्य वाला होना, दृढ़ पराक्रम से युक्त होना - यो तस्मिं समये चेतसिको वीरियारम्भो.... अनिक्खित्तधुरता ..., ध. स. 36. अनिक्खिपन नपुं, निक्खिपन का निषे., तत्पु. स. [अनिक्षेपण], नीचे नहीं उतार फेंकना, उत्तरदायित्व से दूर न भागना, अपरित्याग - अनिक्खित्तछन्दताति कुसलच्छन्दस्स। अनिक्खिपनं ध. स. अट्ठ. 426. अनिखातकूल/अनिगाधकूल त्रि. निखातकूल/ निगाधकूल का निषे., ब. स. [अनिखातकूल], ऐसा जलाशय अथवा नदी, जिसके तट गहरे न हों, कम गहरे तीर वाला/वाली - अनिगाधकूलाति अगम्भीरतीरा, जा. अट्ठ. 6.132. अनिगम पु.. निगम का निषे., तत्पु. स. [अनिगम], निगम से भिन्न, बीरान बस्ती - निगमापि अनिगमा कता, म. नि. 2.308. अनिगूळ्हमन्त/अनिगुय्हमन्त त्रि., निगूळहमन्त/ निगुय्हमन्त का निषे., ब. स. [अनिगूढमन], अपनी योजना अथवा मन की बातों को दूसरों से छिपा कर न रखने वाला, अप्रतिच्छन्नमन्त्र - अनिगुयहमन्तन्ति अप्पटिच्छन्नमन्तं, जा. अट्ठ. 5.73. अनिग्गतरतनक त्रि., निग्गतरतनक का निषे०, ब. स. [अनिर्गतरत्नक, वह शयनघर, जहां से स्त्रीरत्न बाहर न निकले हों- अनिग्गतरतनकति महेसी सयनिघरा अनिक्खन्ता होति, उभो वा अनिक्खन्ता होन्ति, पाचि. 212; रतनं वच्चति महेसी, निग्गतन्ति निक्खन्तं, अनिग्गतं रतनं इतोति ... सयनिघरेति अत्थो, पाचि. अट्ठ. 139. अनिग्गमन नपुं.. निग्गमन का निषे., तत्पु. स. [अनिर्गमन], बाहर निकलकर नहीं जाना, बाहर न निकलना - ... आयतनानि अनागमनतो अनिग्गमनतो च दट्ठब्बानि, विभ. अट्ठ. 44. अनिग्गह त्रि., निग्गह का निषे.. ब. स. [अनिग्रह], नियन्त्रण में न लाने योग्य अनियन्त्रणीय - अनिग्गहासूति निग्गहेन विनेतुं असक्कुणेय्यासु, जा. अट्ठ. 5.435. अनिग्गहीत/अनिग्गहित त्रि., निग्गहीत या निग्गहित का निषे., तत्पु. स. [अनिगृहीत], अभिभूत न किया गया, अतिरस्कृत, नहीं उपेक्षित- मया धम्मो देसितो अनिग्गहितो असंकिलिट्ठो..... अ. नि. 1(1).206: निग्गण्हन्तो हि हापेत्वा वा दस्सेति, वडढेत्वा वा ... यस्मा चत्तारि अरियसच्चानि
... हापेत्वापि ... दस्सेतुं न सक्का, तस्मा ... अनिग्गहितो
नाम, अ. नि. अट्ठ. 2.160. अनिघ/अनीघ त्रि., इघ या ईघ का निषे., ब. स. [अनिघ]. निष्पाप, क्रोध अथवा आक्रोश से रहित, निरपेक्ष, सरल, सुरक्षित - अनिघो तिण्णकथंकथो विसल्लो. सु. नि. 17; ईघाभावतो अनीघो, सु. नि. अट्ठ. 1.21; सन्तं विधूमं अनीघं निरासं, सु. नि. 464; दुक्खाभावेन अनीघं सु. नि. अट्ठ. 2.120; अनीघोति रागादिईघविरहितो, सु. नि. अट्ठ. 2.27980; अनीघोति निढुक्खो हुत्वा, जा. अट्ठ. 3.392; - टि. दुक्खं च कसिरं किच्छंनीघो च ब्यसनं अघं, अभि. प. 89 में नीघ शब्द पुल्लिङ्ग में निर्दिष्ट है, परन्तु अभि. प. सूची में इसके विविध व्याख्यान, द्रष्ट. मोरिस, जॅ. पा. टे. सो. 1891, 3.41 व्यु. की अनेक संभावनाओं में प्रमुख, (क) नीहा (दुख) का निषे., (ख) ईहा, ईघा का निषे., (ग) सं. के निघ
का निषे. (घ) सं. अनघ का विप. पालि-प्रतिरूप है. अनिच्च त्रि., निच्च का निषे., तत्पु. स. [अनित्य], सदा विद्यमान न रहने वाला, अशाश्वत, क्षणभङ्गुर, अध्रुव - सब्बे सङ्घारा अनिच्चा .... ध. प. 277; सब्बे ते भवा अनिच्चा दुक्खा विपरिणामधम्मा, उदा. 106; ... हुत्वा अभावद्वेन अनिच्चा, उदा. अट्ठ. 174; हुत्वा अभावढेन अनिच्चधम्मो, दी. नि. अट्ठ. 1.178; - कम्मट्ठानिक त्रि., ब. स., अनित्यता के आलम्बन पर ध्यान करने वाला - पञ्चसतापि ते अनिच्चकम्मट्ठानिका भिक्खू..., अ. नि. अट्ठ. 3.181; - 8 त्रि., उप. स. [अनित्यस्थ), अनित्य के आकार वाला,
अनित्य की अवधारणा में अन्तर्भूत - यावता रूपस्स अनिच्चट्ठ ...... पटि. म. 119; अनिच्चट्ठन्ति च अनिच्चाकारं पटि. म.
अट्ठ. 2.32; - ता स्त्री॰, भाव. [अनित्यता], अनित्य स्वभाव वाला होने की अवस्था, क्षणभङ्गुरता, उत्पन्न होकर विनष्ट हो जाने का स्वभाव - रूपानंत्वेव अनिच्चतं विदित्वा, म. नि. 3.265; लोके अनिच्चतं ञत्वा, स. नि. 1(1),75; अनिच्चतं खयवयतं विदित्वा, उदा. अट्ठ. 237; अनिच्चता एसा सब्बलोकविनासिनी, म. वं. 20.57%; अनिच्चतमुदाहरि अप. 1.61; - ताकथा स्त्री., कथा. के ग्यारहवें वर्ग की दसवीं कथा का शीर्षक, कथा. 371-372; - च्चाकार पु., तत्पु. स./ब. स., अनित्यता का स्वभाव, अनित्यता के स्वरूप
को प्रकाशित करने वाला - अनिच्चाकारं ... धम्म देसेसि ...... जा. अट्ठ. 3.82; - दस्सावी त्रि., अधिच्चदस्सावी के स्थान पर अप., द्रष्ट. ऊपर; - धम्म त्रि., ब. स. [अनित्यधर्म], स्वभाव से ही अनित्य, अध्रुव प्रकृति वाला,
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