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अनुपतित
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अनुपनत अनुपतित त्रि., अनु + /पत का भू. क. कृ. [अनुपतित], क्रमसङ्गत पद्धति द्वारा किया गया परीक्षण या अनुशीलन
आ पड़ा, आकर गिरा हुआ, सहगत, विषयीभूत - अयम्पि मे किलेसो पहीनो ... अनुपदपच्चवेक्षणाय दुक्खानुपतितद्धगूध. प. 302; ये वट्टसङ्घातं अद्धानं पटिपन्नता पच्चवेक्खमानो भगवा निसिन्नो होति, उदा. अट्ठ. 273; अद्धगू ते दुक्खे अनुपतिताव, ध. प. अट्ठ. 2.264; स. उ. पाठा. पच्चवेक्षणाय; - सुत्त नपुं, म. नि. के एक सुत्त प. के रूप में अनोत्तप्पानुपतित, उपेक्खानु, दुक्खानु.. का शीर्षक, म. नि. 3.74-77; - दसो अ., क्रि. वि. [अनुपदशः], दोमनस्सानु., दोसानु.. पञ्जानु.. पमादानु, पितानु.. रागानु.. एक एक पद को लेकर, अक्षरशः - सब्बं कुत्तानुसारेन अनुपदसो विचारानु.. वितक्कानु., विरियानु.. सतानु.. सद्धानु.. पच्चवेक्खितब्बं म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1(1).94. समाधानु. आदि के अन्त. द्रष्ट...
अनुपदिट्ठ त्रि., उपदिट्ठ का निषे. [अनुपदिष्ट], वह, जिसका अनुपद नपुं.. [अनुपद], 1. आगे आने वाला या उत्तरवर्ती उपदेश या कथन नहीं किया गया है - अनुपदिहानं पद, गाथा का द्वितीय पद, गाथागायन की एक पद्धति, वुत्तयोगतो, क. व्या. 51. जिसमें प्रथम पाद को छोड़ द्वितीय चरण का गायन होता अनुपद्दव त्रि०, ब. स. [अनुपद्रव], उपद्रवों, आपत्ति-विपत्तियों है; 2. छन्दबद्ध रचना का चतुर्थांश - पदं अनुपदञ्चापि, या बाधाओं से मुक्त, सङ्कटरहित, शुभ - यथापि मूले अनुपद्दवे अक्खरञ्चापि ब्यञ्जनं अप. 1.40; पदेन पदं कथयिस्सामि, दळ्हे, ध. प. 338; छेदनफालनपाचनविज्झनादीनं केनचि अनुपदेन अनुपदं कथयिस्सामि, मि. प. 308; - द अ., उपद्दवेन अनुपदवे, ध. प. अट्ठ. 2.306; सम्पत्तियो दुवे भुत्वा, [अनुपदं], शा. अ.1. शब्दशः - सब्बे बुद्धगुणे अनुपद अनीति अनुपद्दवो, अप. 1.125; याय, भन्ते, दिसा अभया अनवसेसतो मनसि कातुं न सक्का, उदा. अट्ठ. 274; शा. अनीतिका अनुपद्दवा .... पारा. 254. अ.2. एक-एक कदम का अनुसरण करते हुए, निरन्तर, __ अनुपद्दुत त्रि., उपद्दुत का निषे., बाधाओं, सङ्कटों, हानियों या कदम से कदम मिलाकर, पीछे-पीछे, कदम के साथ-साथ, उपद्रवों से मुक्त, भयमुक्त, अक्षत - इदं खो, यस, अनुपद्रुतं, तुरन्त पीछे - पदेनानुपदायन्तं, अप. 1.140; पदेनानुपद महाव. 20; अनुपडुता अनुपसट्टा खेमिनो अप्पटिभया गच्छन्तीति यन्तो, विपस्सिस्स महेसिनो, अप. 1.214; भण्डसामिका । वुत्तं होति. खु. पा. अट्ठ. 125; अक्खतन्ति अनुपटुतं पाटलिपुत्तं चोरानं अनुपदं गन्त्वा , ध. प. अट्ठ. 1.271; ला. अ. वि. व. अट्ठ.298. एकदम अनुरूप - बोधिञाणस्स अनुपदं चरमाना, जा. अट्ठ अनुपधारेत्वा उप + Vधर के प्रेर. के पू. का. कृ. का निषे. 3.439; - तो अ., [अनुपदं]. शब्दशः, अक्षरशः - अयं [अनुपधार्य], विचाराधीन रूप में न रखकर, बिना उचित अनुपदतो अत्थवण्णना, खु. पा. अट्ठ. 201; विलो. सोच-विचार के ही, उचित परीक्षण को न करके - अधिपेतत्थवण्णना, तुल. अनुपदं एवं अनुपदसो; - धम्म- मग्गपरिस्सयं अनुपधारेत्वाव थूपाभिमुखी गच्छति, वि. व. विपस्सना स्त्री., तत्पु. स. [अनुपदधर्मविपश्यना], एक- अट्ठ. 168; अहं सामि, अत्तनो बालताय अनुपधारेत्वा एक धर्म के विषय में क्रमशः विकसित विपश्यना ज्ञान - अनाथपिण्डिकेन सेट्टिना सद्धिं कथेसिं, जा. अट्ठ. 1.2253B सारिपुत्तो, भिक्खवे, अड्डमासं अनुपदधम्मविपस्सनं । अहो वत मे भारियं अनुपधारेत्वा कतकम्मान्ति महासंवेगो विपस्सति. म. नि. 3.74; तत्रिदं, भिक्खवे, सारिपुत्तस्स उदपादि, ध. प. अट्ठ. 2.397. अनुपदधम्मविपस्सनायाति या अनुपदधम्मविपस्सनं अनुपधिक/अनूपधीकं त्रि., उपधिक/उपधीक का निषे. विपस्सतीति अनुपदधम्मविपस्सना कुत्ता, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) [अनुपधिक], आसक्ति, राग या तृष्णा से मुक्त, सांसारिक 3.60; - टि. प्रथम ध्यान आदि में ध्यानाङ्ग-रूप में उदित क्लेशों से रहित (निर्वाण का पद) - सुकित्तितं वितर्क, विचार आदि धर्मों के अभिनिरोपण आदि के स्वभाव गोतमनूपधीक, सु. नि. 1063; एत्थ अनुपधिकन्ति निब्बानं. को जान कर उन्हें चित्त में व्यवस्थापित करना ही सु. नि. अट्ठ. 2.282; दिस्वा पदं सन्तमनुपधीकं अकिञ्चनं अनुपदधम्म-विपस्सना है, द्रष्ट. म. नि. अट्ठ. (उप.प.) कामभवे असत्तं, महाव. 41; विलो. सउपधिक. 3.60-61; - वग्ग पु., म. नि. के एक वग्ग का शीर्षक, म. अनुपनत त्रि., अनपनत का कुछ संस्करणों में प्राप्त अप., नि. 3.74-147; - ववत्थित त्रि.. [अनुपदव्यवस्थित]. एक- उपनुत (अपनत) का निषे. [अनुपनत], बुरे या पापकर्मों में एक करके व्यवस्थित या निर्धारित पद वाला - त्यारस धम्मा न लगा हुआ - अनपनतं चित्तं व्यापादे न इञ्जतीति अनुपदववत्थिता होन्ति, म. नि. 3.74; - समवेक्खना स्त्री., आनेज, उदा. अट्ठ. 150; पाठा. अनपनुत.
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