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अनुपविठ्ठपुब्ब
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अनुपसम अनुपविट्ठपुब्ब त्रि., [अनुप्रविष्टपूर्व], वह, जो पूर्वकाल में वा, अ. नि. 3(2).238-39; - सु अनु., म. पु., ए. व. - किसी के साथ जुड़ा हुआ रह चुका है, या पहले किसी के यस्सिच्छसि तस्सा अनुप्पवेच्छसु, जा. अट्ठ. 5.390; - भीतर समा चुका है - अनुपाविसिन्ति न कञ्चि च्छे/च्छेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - देवो च न कालेनकालं अनुपविठ्ठपुब्बोस्मि, न मया अओ कोचि समणो पुच्छितपुब्बोति सम्माधारं अनुप्पवेच्छेय्य, दी. नि. 1.66; जायन्तमस्स वदति, जा. अट्ठ. 6.73.
नानुप्पवेच्छे, सु. नि. 210; - च्छि अद्य., प्र. पु., ए. व. - अनुपविसति अनु + प + विस का वर्त, प्र. पु., ए. व. बुद्धानुभावेन देवो सम्माधारं अनुप्पवेच्छि, पारा. अट्ठ. 1.61. [अनुप्रविशति], प्रवेश करता है, किसी के भीतर जाकर अनुपवेस/अनुप्पवेस पु., [अनुप्रवेश], बहुत भीतर तक परिव्याप्त हो जाता है, किसी में जाकर समा जाता है, अथवा गहराई तक प्रवेश- ओगाधप्पत्ताति ओगाधं अनुप्पवेसं बलपूर्वक मार्ग बनाता है, पहुंच जाता है, जबर्दस्ती घुस पत्ता, अ. नि. अट्ठ. 3.100; यस्मा तिण्णं अत्यनयानं अञमर्श जाता है - घनघातिमन्ति या घातियमाना अधिकरणिं अनुप्पवेसो इच्छितो, नेत्ति. अट्ठ. 327. अनुपविसति, जा. अट्ठ. 3.248; बुद्धादीनं गुणे ओगाहति, अनुपवेसेय्य अनु + प + विस के प्रेर. का विधि., प्र. पु.. भिन्दित्वा विय अनुपविसतीति ओकप्पना, ध. स. अट्ठ. 189; ए. व., दे, प्रदान करे, अन्दर तक प्रवेश कराये या पहुंचाए तत्थ संसीदतीति मिच्छावितक्कस्मिं संसीदति अनुप्पविसति, - अनुप्पवेच्छेय्याति अनुप्पवेसेय्य, अ. नि. अट्ठ. 2.105; न अ. नि. अट्ठ. 3.35; पु. प. अट्ठ. 94; - सि म. पु., ए. व. अनुप्पवेच्छेय्याति न च पवेसेय्य, न वस्सेय्याति अत्थो, दी. - पोक्खरणी ति लद्धनाम दिब्बसरं जलविहाररतिया नि. अट्ठ. 1.177. अनुपविससि, वि. व. अट्ठ. 32; - सेय्य विधि., प्र. पु., ए. अनुपसग्ग/अनूपसग्ग त्रि., ब. स. [अनुपसर्ग], क. विपत्ति व. - छन्नं वा अनुपविसेय्य, पाचि. 297; - पाविसिं अद्य.. या दुर्भाग्य से मुक्त, विपत्ति-रहित - सउपसग्गो बालो, उ. पु., ए. व. - समणं ब्राह्मणं वापि, सक्कत्वा अनुपाविसिन्ति, अनुपसग्गो पण्डितो, अ. नि. 1(1).124; केनचि जा. अट्ठ, 6.73; - विस्स/विसित्वा पू. का. कृ. - अनुपसज्जितब्बत्ता अनुपसग्गं, नेत्ति. अट्ठ. 245; ख. केवल अहिंसको रेणुमनुप्पविस्स, जा. अट्ठ. 4.404; तथारूपं वनसण्ड ___व्याकरण के सन्दर्भ में - उपसर्गयुक्त समास से रहित अनुपविसित्वा अज्झत्तिककम्मट्ठान, ध. प. अट्ठ. 1.210; इदं शब्द - सुतसद्दो सउपसग्गो अनुपसग्गो च अनुपपदेन, ठानं पापुणाती'ति अनुपविसित्वा मञ्चपीठं पञ्जपेत्वा सुतसद्दो च, सद्द. 2.491; - धम्म त्रि., कर्म. स. - विपत्ति निसीदन्तिपि, पाचि. अट्ठ. 40; अनुपखज्जाति अनुपविसित्वा, या संकटों से मुक्त निर्वाण-धर्म - अनूपसग्गनुपसग्गधम्म, स. नि. अट्ठ. 2.274.
निब्बानमेतं सुगतेन देसितं, नेत्ति. 46; अनुपसग्गभावहेतुतो अनुपविसन नपुं., अनु + प + Vविस से व्यु. [अनुप्रवेशन], अनुपसग्गधम्म, नेत्ति. अट्ठ. 245. अन्दर गहराई तक बेध कर प्रविष्ट हो जाना, भीतर घुस __ अनुपस्सट्ठ त्रि., उपस्सट्ट का निषे., तत्पु. स. [अनुपसृष्ट], जाना - तं पन कण्ड अनुपविसनतुन सल्लन्ति वुच्चति, उपद्रव अथवा सङ्कटों से रहित, भय से मुक्त - इदं खो, यस, जा. अट्ठ. 1.158.
अनुपद्रुतं, इदं अनुपस्सg, महाव. 20; अनुपछता अनुपसट्ठा अनुपवेच्चति/अनुप्पवेच्छति व्यु. अनिश्चित, सम्भवतः खेमिनो अप्पटिभया गच्छन्तीति वुतं होति, खु. पा. अट्ठ. अनु + प + vयमु से व्यु. पयच्छति का विकृत रूप अथवा अनु + प + विस का प्रेर. रूप, वर्त, प्र. पु., ए. व. अनुपसम पु०, उपसम का निषे॰ [अनुपशम], अशान्ति, [अनुप्रयच्छति/अनुप्रवेशयति], शा. अ. प्रवेश करता है, मानसिक बेचैनी या व्यग्रता - अनुपसमारामा, भिक्खवे, भीतर में भर देता या उड़ेल देता है, ला. अ. प्रदान करता पजा अनुपसमरता अनुपसमसम्मुदिता, अ. नि. 1(2).149; है, बदले में दे देता है - दसरस ठानानि अनुप्पवेच्छति, उपसमपटिपक्खो अनुपसमो, अनुपसन्तढेन वा वट्टमेव महाव. 297; तमेनं अस्सदमको उत्तरि वण्णियञ्च पाणियञ्च अनुपसमो नाम, अ. नि. अट्ठ. 2.330; - संवत्तनिक त्रि., अनुप्पवेच्छति, म. नि. 2.118; देवो न सम्माधारं अनुप्पवेच्छति, [अनुपशम-संवर्तनिक], अशान्ति की मनोदशा में परिणत हो अ. नि. 1(1).187; अनुप्पवेच्छतीति वस्सितब्बयुत्ते काले जाने वाला, अशान्ति की ओर ले जाने वाला, राग-द्वेष आदि वस्सं न वस्सति, अ. नि. अट्ठ. 2.140; - न्ति ब. व. - यं का उपशम करने में असमर्थ - ... अनिय्यानिके वा पनस्स इतो अनुप्पवेच्छन्ति मित्तामच्चा वा आतिसालोहिता अनुपसमसंवत्तनिके असम्मासम्बुद्धप्पवेदिते भिन्नथूपे
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