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अनुपवज्ज
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अनुपविट्ठचित्त अनुपवज्ज त्रि., उप + Vवद के सं. कृ. उपवज्ज का निषे. अद्य., प्र. पु., ए. व. - तं कल्याणं वत्तं निहितं, पच्छिमा [अनुपवद्य], निन्दा नहीं किये जाने योग्य, अनिन्दनीय, जनता अनुप्पवत्तेसि, म. नि. 2.279. दुष्परिणामों को न देने वाला, पुण्य से भरा, शुभ, निन्दा- अनुपवाद/अनूपवाद पु., उपवाद का निषे. [अनुपवाद]. वचनों का अविषय - अनिग्गहितो असंकिलिट्ठो अनुपवज्जो निन्दा अथवा दुर्वचनों का अभाव, वाणी द्वारा किसी के प्रति अप्पटिकुटो समणेहि ब्राह्मणेहि विझूहीति, अ. नि. 1(1).206%; बुरा भला न बोलना - अनूपवादो अनूपघातो, पातिमोक्खे च अनुपवज्जोति उपवादविनिमुत्तो, अ. नि. अट्ठ. 2.155; इमेहि संवरो, ध. प. 185; उदा. अट्ठ. 243; उदा. 117; दी. नि. तीहि ठानेहि अनुपवज्जस्स दिवसो वीतिवत्तती ति, मि. प. 2.38; पारा. अट्ठ. 1.142; तत्थ अनूपवादोति वाचाय कस्सचिपि 361; तुल. अनवज्ज, सउपवज्ज - ता स्त्री., भाव. अनुपवदनं, उदा. अट्ठ. 205; दी. नि. अट्ठ. 2.62; - क त्रि, [अनुपवद्यता], अनिन्दनीयता, प्रशस्यता- छन्नेन सम्मुखायेव उपवादक का निषे. [अनुपवादक], निन्दा न करने वाला,
अनुपवज्जता ब्याकताति, म. नि. 3.319; स. नि. 2(2).65. बुरे वचन न बोलने वाला, अनिन्दक - अरियानं अनुपवादका अनुपवत्तक/अनुप्पवत्तक त्रि., [अनुप्रवर्तक], वह, जो सम्मादिविका, म. नि. 1.29; 3.217; पटि. म. 105. पहले से गतिशील को पीछे भी गतिशील बनाए रखता है, अनुपवादापन नपुं., उपवादापन का निषे., निन्दा न करवाना, गतिशीलता के क्रम को आगे भी जारी रखने वाला - धम्मेन दुर्वचन न कहलाना, निन्दा करने या दुर्वचन कहने हेतु पवत्तितस्स धम्मचक्कस्स अनुप्पवत्तको सेनापति कोति पुच्छि दूसरों को प्रेरित न करना - अनूपवादोति अनूपवादनञ्चेव सु. नि. अट्ठ. 2.158; गोतमस्स भगवतो सासनवरे । अनूपवादापनञ्च, ध. प. अट्ठ. 2.136. धम्मचक्कमनुप्पवत्तको जातो, मि. प. 326; अतुलतेजा अनुपवादी त्रि., उपवादी का निषे. [अनुपवादी], निन्दा न धम्मचक्कानुप्पवत्तका पञआपारमिं गता, मि. प. 311. करने वाला, बुरे वचन न बोलने वाला, अनिन्दक - तत्थाहं अनुपवत्तन नपुं, अनु + प+ वत का क्रि. ना. [अनुप्रवर्तन], अनोवादी अनुपवादी घासच्छादनपरमो विहरामि, म. नि. 2.24. अनुष्ठान, गतिशीलता को आगे भी जारी रखना प्रयोग - अनुपविट्ठ/अनुप्पविट्ठ त्रि., अनु + प+विस का भू. क. बोज्झङ्गानं अनुपवत्तनेन भावनं मज्झिम वीथिं, उदा. अट्ठ. कृ. [अनुप्रविष्ट], प्रवेश किया हुआ, समीप पहुंचा हुआ, पूरी 294.
तरह से अन्दर में व्याप्त हो चुका; - @ो प्र. वि., ए. व. - अनुपवत्तन्त त्रि., अनु + प + Vवत का वर्त. कृ. कुच्छिगतो होति कोट्ठमनुपविट्ठो, म. नि. 1.416; - हा ब. [अनुप्रवर्तमान], लगातार आगे की ओर बढ़ रहा, निरन्तर व. - अविचारेत्वा समवायेन अनुपविट्ठा सप्पविठ्ठा, वि. व. गतिशील हो रहा - देसनानुसारेन आणे अनुपवत्तन्ते, उदा. अट्ठ. 285; तत्थ यस्मा तिलम्हि तेलं विय न वेदनादयो अट्ठ. 294.
सञआदीसु अनुपविठ्ठा, कथा. अट्ठ. 191; - 8 द्वि. वि., ए. अनुपवत्तित त्रि., अनु + प + वत का भू. क. कृ., प्रेर. व. - निब्बानं आरम्मणकरणवसेन गतं अनुपविट्ठ, ध. प. [अनुप्रवर्तित], पीछे अनुष्ठित, आगे की ओर बढ़ते हुए रखा अट्ठ. 2.71; निब्बानस्स गुणं अजेहि अनुपविट्ठ मि. प. 2903; गया, लगातार गतिशील बनाया हुआ, निर्मित, चलाया हुआ - द्वे सप्त. वि., ए. व. - अज्ज नरवरपवरे जिनवरवसभे - अनुट्ठितायाति अनुप्पवत्तिताय, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) नगरवरमनुपविढे वीथिया धनपालको हत्थी आपतिस्सति, 3.106.
मि. प. 199; - द्वेन अ., क्रि. वि., अन्दर में परिव्याप्त होने अनुपवत्तेति/अनुप्पवत्तेति अनु + प+ Vवत के प्रेर. का के अर्थ में, अन्तर्निविष्ट हो जाने के तात्पर्य में - वर्त.. प्र. पु.. ए. व. [अनुप्रवर्तयति], पहले से गतिशील को अब्भन्तरमनुप्पविठ्ठद्वेन पन अन्तोतुदकद्वेन दुन्निहरणीयढेन आगे या बाद में गतिशील बनाए रखता है, जारी रखता है, च सल्लं, सु. नि. अट्ठ. 1.80; - ता स्त्री., भाव., भीतर प्रवेश निरन्तर गति में रखता है - तथागतेन अनुत्तरं धम्मचक्कं । कर जाने की अवस्था, अन्दर अन्दर परिव्याप्त हो जाने की पवत्तितं सम्मदेव अनुप्पवत्तेतीति, म. नि. 3.77; अ. नि. स्थिति - सङ्घसमयमनुप्पविठ्ठतायपि दक्खिणं विसोधेति, मि. 2(1).141; मि. प. 326; स. नि. 1(1).221; - य्याथ विधि., प. 240. म. पु., ब. व. - इदं कल्याणं वत्तं निहितं अनुप्पवत्तेय्याथ, अनुपविट्ठचित्त त्रि., ब. स. [अनुप्रविष्टचित्त], वह, जिसका म. नि. 2.279; - य्यासि विधि., म. पु., ए. व. - इदं चित्त इधर-उधर भटका हुआ है, अस्थिर मन वाला - कल्याणं वत्तं निहितं अनुप्पवत्तेय्यासि, म. नि. 2.273 - सि अनिकट्ठचित्तोति अनुपविट्ठचित्तो, अ. नि. अट्ठ. 2.334.
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