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अनुपस्सी -261
अनुपादान वाला - न हि विक्खित्तचित्तो सोतुं सक्कोति, न च सप्पुरिसे जा. अट्ठ. 6.229; अनुपाकारमत्थके कललं कत्वा वीहिं तत्थ अनुपस्सयमानस्स सवनं अत्थीति, दी. नि. अट्ठ. 1.30; म. रोपापेसि, जा. अट्ठ. 6.230; आचरिय, तुम्हे अनुपाकारे ठत्वा नि. अट्ट (मू.प.) 1(1).9; अ. नि. 1.8.
अम्हाकं मनुस्सानं पासादं ओलोकेत्वा ..., जा. अट्ठ. 6.234%; अनुपस्सी त्रि., अनु +दिस से व्यु. [अनुपश्यी], धर्मों की तथा अनुपाकारञ्च द्वारट्टालके अन्तरट्टालके ... कारेसि, यथार्थता को देखने वाला, सम्यक-दृष्टि वाला, मोह से जा. अट्ठ. 6.220. रहित, धर्मों का प्रविचयात्मक ज्ञान रखने वाला, देखने अनुपात पु., अनु + vपत से व्यु. [अनुपात], अनुप्रवृत्तियां, वाला, समझने वाला - न सो मित्तो यो सदा अप्पमत्तो, अनुपतन, पीछे या बाद में आ जाना - न च कोचि भेदासङ्की रन्धमेवानुपस्सी, सु. नि. 258; जा. अट्ठ. 3.165; सहधम्मिको वादानुपातो गारव्ह ठानं आगच्छति, अ. नि. ... रन्धमेवानुपस्सीति यो भेदमेव आसङ्कमानो कतमधुरेन 1(1).188; वादानुपातोति वादस्स अनुपातो, अनुपतनं पवत्तीति उपचारेन सदा अप्पमत्तो विहरति, सु. नि. अट्ठ. 1.271; अत्थो, अ.नि. अट्ठ. 2.140; अनुपातो अनुपच्छा पवत्ति, अ. रन्धमेवानपस्सीति छिदं विवरमेव पस्सन्तो, जा. अट्ठ. 3.166. नि. टी. 2.119; द्रष्ट. वादानुपात एवं वादानुवाद. अनुपहच्च अ., उप + Vहन के पू. का. कृ. का निषे०, बिना अनुपाती त्रि., अनुपात से व्यु. [अनुपाती], बाद में या पीछे हानि पहुंचाये हुए, नष्ट न करके, क्षत विक्षत न करके - आने वाला, अचानक आकर टूट पड़ने वाला, त्रासदायक यंनूनाहं इमस्स नागस्स अनुपहच्च छविञ्च ..., महाव. 293; (केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयोग में प्राप्त)- तं तं अनुपहच्चाति अविनासेत्वा, महाव. अट्ठ. 242; दी. नि. अट्ठ. असच्चं अविभज्जसेविनि, जानामि मूळ्हं विदुरानुपातिनि, 2.361; इमं पुरिसं अनुपहच्च छविञ्च चम्मञ्च ..., दी. नि. जा. अट्ठ. 5.395; द्रष्ट. खणानु., पण्डितानु. के अन्त.. 2.249; दक्खो गोघातको वा ... अनुपहच्च अन्तरं मंसकायं अनुपादं अ, क्रि. वि., अव्ययी. स. [अनुपादं], पैरों के अनुपहच्च बाहिरं चम्मकायं म. नि. 3.327.
समीप, पैरों के बगल में - एवं तिट्ठमानेनापि नातिदूरे अनुपहत त्रि., उपहत का निषे. [अनुपहत], 1. हानि को नाच्चासन्ने नानुपादं नानुसीसं ठातब्ब, विसुद्धि. 1.175; अप्राप्त, अक्षत - तीहि धम्मेहि समन्नागतो पण्डितो वियत्तो विलो. अनुसीसं. सप्पुरिसो अक्खतं अनुपहतं अत्तानं परिहरति, अ. नि. अनुपादा अ., उप + आ + Vदा के पू. का. कृ., उपादाय 1(1).331; कच्चि पनासि, तात कुम्म, अक्खतो अनुपहतो ति, के संक्षिप्तीकृत रूप का निषे., प्रायः संज्ञाओं के पूर्व में अक्खतो, खोम्हि, तात कुम्म, अनुपहतो, स. नि. 1(2).2063; प्रयुक्त, 1. शा. अ. किसी उपादान या सहायक सामग्री के 2. वह, जिस पर प्रहार न किया गया हो, जिसे हटाया न बिना, 2. ला. अ. सांसारिक बन्धनों के प्रति लगाव-रहित गया हो, या नीचे न रखा गया हो - गिम्हे, महाराज, होकर, किसी भी प्रकार की आसक्ति या राग के बिना - अनुपहतं होति रजोजल्लं, वातक्खुभिता रेणू गगनानुगता यथाभूतं विदित्वा अनुपादाविमुत्तो, दी. नि. 1.14; अनुपादा होन्ति, मि. प. 255; - जिव्हापसाद त्रि., ब. स., वह विमुत्तोति चतूहि उपादानेहि अग्गहेत्वा विमुत्तो, दी. नि. जिसकी जीभ कुण्ठित न हो या हकलाती न हो - ततो अट्ठ. 2.91; कथञ्चावुसो, अनुपादा परितस्सना होति, म. कम्मट्ठानं... यथा नाम अनुपहतजिव्हापसादो, ध. प. अट्ठ. नि. 3.275; अनुपादा परितस्सनाति ... 'उपादापरितस्सनञ्च 1.269.
.... अनुपादाअपरितस्सनञ्चाति, मनि. अट्ठ. (उप.प.) अनुपहनन/अनूपघातन नपुं.. [अनुपहनन], किसी को 3.200; अनुपादानो अनुपादाविमुत्तो, ... तस्स अभावा किञ्चि हानि या क्षति न पहुंचाना, अहिंसा - अनूपघातोति धम्म अनुपादियित्वाव विमुत्तो भिक्खवे तथागतोति, दी. नि. अनूपघातनञ्चेव अनूपघातापनञ्च, ध. प. अट्ठ. 2.136-37. अट्ठ. 1.94. अनुपहार पु., उपहार का निषे. [अनुपहार], पास में या अनुपादान' त्रि०, उपादान से व्यु., ब. स. [अनुपादान], समीप में नहीं ले आना, आपूर्ति न करना - अग्गि... तस्स प्रज्वलित करने वाली अथवा जलाने वाली सामग्री से च... अञस्स च अनुपहारा अनाहारो निबुतो ..., म. नि. रहित, ईधन-रहित, भवचक्र में फंसाने वाले रागों, आसक्तियों 2.165; स. नि. 1(2).76..
या लगावों से मुक्त - अग्गि सउपादानो जलति, नो अनुपाकारे अ., क्रि. वि. [अनुप्राकार], किले की दीवालों के अनुपादानो, स. नि. 2(2).365; अनुपादानो विय पदीपो बगल में, दुर्गभित्तियों के बगल में - अनुपाकारे चङ्कमन्ति, अपण्णत्तिकभावं गताति अत्थो, ध. प. अट्ठ, 1.338; अनेजो
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