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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुपविठ्ठपुब्ब 259 अनुपसम अनुपविट्ठपुब्ब त्रि., [अनुप्रविष्टपूर्व], वह, जो पूर्वकाल में वा, अ. नि. 3(2).238-39; - सु अनु., म. पु., ए. व. - किसी के साथ जुड़ा हुआ रह चुका है, या पहले किसी के यस्सिच्छसि तस्सा अनुप्पवेच्छसु, जा. अट्ठ. 5.390; - भीतर समा चुका है - अनुपाविसिन्ति न कञ्चि च्छे/च्छेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - देवो च न कालेनकालं अनुपविठ्ठपुब्बोस्मि, न मया अओ कोचि समणो पुच्छितपुब्बोति सम्माधारं अनुप्पवेच्छेय्य, दी. नि. 1.66; जायन्तमस्स वदति, जा. अट्ठ. 6.73. नानुप्पवेच्छे, सु. नि. 210; - च्छि अद्य., प्र. पु., ए. व. - अनुपविसति अनु + प + विस का वर्त, प्र. पु., ए. व. बुद्धानुभावेन देवो सम्माधारं अनुप्पवेच्छि, पारा. अट्ठ. 1.61. [अनुप्रविशति], प्रवेश करता है, किसी के भीतर जाकर अनुपवेस/अनुप्पवेस पु., [अनुप्रवेश], बहुत भीतर तक परिव्याप्त हो जाता है, किसी में जाकर समा जाता है, अथवा गहराई तक प्रवेश- ओगाधप्पत्ताति ओगाधं अनुप्पवेसं बलपूर्वक मार्ग बनाता है, पहुंच जाता है, जबर्दस्ती घुस पत्ता, अ. नि. अट्ठ. 3.100; यस्मा तिण्णं अत्यनयानं अञमर्श जाता है - घनघातिमन्ति या घातियमाना अधिकरणिं अनुप्पवेसो इच्छितो, नेत्ति. अट्ठ. 327. अनुपविसति, जा. अट्ठ. 3.248; बुद्धादीनं गुणे ओगाहति, अनुपवेसेय्य अनु + प + विस के प्रेर. का विधि., प्र. पु.. भिन्दित्वा विय अनुपविसतीति ओकप्पना, ध. स. अट्ठ. 189; ए. व., दे, प्रदान करे, अन्दर तक प्रवेश कराये या पहुंचाए तत्थ संसीदतीति मिच्छावितक्कस्मिं संसीदति अनुप्पविसति, - अनुप्पवेच्छेय्याति अनुप्पवेसेय्य, अ. नि. अट्ठ. 2.105; न अ. नि. अट्ठ. 3.35; पु. प. अट्ठ. 94; - सि म. पु., ए. व. अनुप्पवेच्छेय्याति न च पवेसेय्य, न वस्सेय्याति अत्थो, दी. - पोक्खरणी ति लद्धनाम दिब्बसरं जलविहाररतिया नि. अट्ठ. 1.177. अनुपविससि, वि. व. अट्ठ. 32; - सेय्य विधि., प्र. पु., ए. अनुपसग्ग/अनूपसग्ग त्रि., ब. स. [अनुपसर्ग], क. विपत्ति व. - छन्नं वा अनुपविसेय्य, पाचि. 297; - पाविसिं अद्य.. या दुर्भाग्य से मुक्त, विपत्ति-रहित - सउपसग्गो बालो, उ. पु., ए. व. - समणं ब्राह्मणं वापि, सक्कत्वा अनुपाविसिन्ति, अनुपसग्गो पण्डितो, अ. नि. 1(1).124; केनचि जा. अट्ठ, 6.73; - विस्स/विसित्वा पू. का. कृ. - अनुपसज्जितब्बत्ता अनुपसग्गं, नेत्ति. अट्ठ. 245; ख. केवल अहिंसको रेणुमनुप्पविस्स, जा. अट्ठ. 4.404; तथारूपं वनसण्ड ___व्याकरण के सन्दर्भ में - उपसर्गयुक्त समास से रहित अनुपविसित्वा अज्झत्तिककम्मट्ठान, ध. प. अट्ठ. 1.210; इदं शब्द - सुतसद्दो सउपसग्गो अनुपसग्गो च अनुपपदेन, ठानं पापुणाती'ति अनुपविसित्वा मञ्चपीठं पञ्जपेत्वा सुतसद्दो च, सद्द. 2.491; - धम्म त्रि., कर्म. स. - विपत्ति निसीदन्तिपि, पाचि. अट्ठ. 40; अनुपखज्जाति अनुपविसित्वा, या संकटों से मुक्त निर्वाण-धर्म - अनूपसग्गनुपसग्गधम्म, स. नि. अट्ठ. 2.274. निब्बानमेतं सुगतेन देसितं, नेत्ति. 46; अनुपसग्गभावहेतुतो अनुपविसन नपुं., अनु + प + Vविस से व्यु. [अनुप्रवेशन], अनुपसग्गधम्म, नेत्ति. अट्ठ. 245. अन्दर गहराई तक बेध कर प्रविष्ट हो जाना, भीतर घुस __ अनुपस्सट्ठ त्रि., उपस्सट्ट का निषे., तत्पु. स. [अनुपसृष्ट], जाना - तं पन कण्ड अनुपविसनतुन सल्लन्ति वुच्चति, उपद्रव अथवा सङ्कटों से रहित, भय से मुक्त - इदं खो, यस, जा. अट्ठ. 1.158. अनुपद्रुतं, इदं अनुपस्सg, महाव. 20; अनुपछता अनुपसट्ठा अनुपवेच्चति/अनुप्पवेच्छति व्यु. अनिश्चित, सम्भवतः खेमिनो अप्पटिभया गच्छन्तीति वुतं होति, खु. पा. अट्ठ. अनु + प + vयमु से व्यु. पयच्छति का विकृत रूप अथवा अनु + प + विस का प्रेर. रूप, वर्त, प्र. पु., ए. व. अनुपसम पु०, उपसम का निषे॰ [अनुपशम], अशान्ति, [अनुप्रयच्छति/अनुप्रवेशयति], शा. अ. प्रवेश करता है, मानसिक बेचैनी या व्यग्रता - अनुपसमारामा, भिक्खवे, भीतर में भर देता या उड़ेल देता है, ला. अ. प्रदान करता पजा अनुपसमरता अनुपसमसम्मुदिता, अ. नि. 1(2).149; है, बदले में दे देता है - दसरस ठानानि अनुप्पवेच्छति, उपसमपटिपक्खो अनुपसमो, अनुपसन्तढेन वा वट्टमेव महाव. 297; तमेनं अस्सदमको उत्तरि वण्णियञ्च पाणियञ्च अनुपसमो नाम, अ. नि. अट्ठ. 2.330; - संवत्तनिक त्रि., अनुप्पवेच्छति, म. नि. 2.118; देवो न सम्माधारं अनुप्पवेच्छति, [अनुपशम-संवर्तनिक], अशान्ति की मनोदशा में परिणत हो अ. नि. 1(1).187; अनुप्पवेच्छतीति वस्सितब्बयुत्ते काले जाने वाला, अशान्ति की ओर ले जाने वाला, राग-द्वेष आदि वस्सं न वस्सति, अ. नि. अट्ठ. 2.140; - न्ति ब. व. - यं का उपशम करने में असमर्थ - ... अनिय्यानिके वा पनस्स इतो अनुप्पवेच्छन्ति मित्तामच्चा वा आतिसालोहिता अनुपसमसंवत्तनिके असम्मासम्बुद्धप्पवेदिते भिन्नथूपे 125. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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