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अनुपनाह
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अनुपब्बजति अनुपनाह पु., उपनाह का निषे. [अनुपनाह], वैर, मात्सर्य अनुपथे/अनुपन्थे अ., क्रि. वि., मार्ग के बगल में, मार्ग या ईर्ष्या का अभाव, अक्रोध, पुरानी बातों को मन में बांध के सहारे - अट्ठीनि अम्म याचित्वा, अनुपथे दहाथ नं. जा. कर न रखना - अक्कोधो च अनपनाहो च, अ. नि. अट्ठ. 5.292; अनुपथे दहाथनं, जङ्घमग्गमहामग्गानं अन्तरे 1(1)116; उपनन्धनलक्खणो उपनाहो, अ. नि. अट्ठ. 2.66. दहेय्याथति वदति, जा. अट्ठ. 5.293.. अनुपनाही त्रि., उपनाही का निषे. [अनुपनाही], उपनाह, अनुपन्न त्रि., अनु + /पद का भू. क. कृ. [अनुपन्न], द्रोह, ईर्ष्या या द्वेष न करने वाला, पुरानी बातों को मन में अनुगत, प्रविष्ट, प्रादुर्भूत, अनुप्राप्त - ब्राह्मणानं वचनपथं बांधकर न रखने वाला- परे उपनाही भविस्सन्ति, मयमेत्थ अनुपन्ना अनुगता, जा. अट्ठ. 7.61; स. उ. प. के रूप में अनुपनाही भविस्सामा ति, म. नि. 1.54; अक्कोधनोनुपनाही, काव्यपथानु., पन्थानु., मारधेय्यानु. के अन्त. द्रष्ट.. अमायो रित्तपेसुणो, थेरगा. 502, 503; अनुपनाही अनुपपत्ति स्त्री, उपपत्ति का निषे. [अनुपपत्ति], पुनर्जन्म पुरिसपुग्गलो ति, स. नि. 1(2).184.
की अप्राप्ति, नूतन भव का अभाव - अनुपपत्ति खेमन्ति अनुपनिस त्रि., क. उपनिस्सय के समाना. उपनिसा का अभिज्ञ्जय्यं, पटि. म. 12; अनुपपत्ति निरामिसन्ति अभिज्जेयं, निषे, हेतुओं एवं प्रत्ययों से अनुत्पन्न, असंस्कृत, अकारण पटि. म. 13; विलो. उपपत्ति; - क त्रि., पुनर्जन्म की प्राप्ति -विमुत्तिम्पाहं, भिक्खवे, सउपनिसं वदामि, नो अनुपनिसं. की ओर न ले जाने वाला, प्रतिसन्धि न दिलाने वाला - स. नि. 1(2).28; विलो. सउपनिस; ख. ध्यान न लगाने अनुपवज्जन्ति अनुपपत्तिकं अप्पटिसन्धिक, स. नि. अट्ठ. वाला - अनोहितसोतो, भिक्खवे, अनुपनिसो होति, अ. नि. 3.18; पाठा. अप्पवत्तिक; अनुपवज्जन्ति अनुप्पत्तिक 1(1).228; तुल. श्रद्धाय उपनिषदा, छान्दोग्य उपनिषद, अप्पटिसन्धिक, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.243. 1.1.10.
अनुपपद पु., उपपद का निषे. [अनुपपद], समास के पू. अनुपनिस्सय त्रि., उपनिस्सय का निषे., ब. स. प. से भिन्न दूसरा पद - अपिग्गहणेन अनुपपदस्सापि [अनुपनिःश्रय], उपनिश्रय से रहित, (अर्हत्व-प्राप्ति के लिये उत्तरपदादिस्स चस्स लोपो होति न वा ..., क. व्या. 392; आवश्यक) अर्हताओं से रहित, अनर्ह, आधाररहित - न खो सुतसद्दो सउपसग्गो अनुपसग्गो च अनुपपदेन सतसद्दो च, पन बुद्धा सउपनिस्सयानंयेव धम्म देसेन्ति, अनुपनिस्सयानम्पि सद्द. 2.491. देसेन्ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).11; - सम्पन्न त्रि., अनुपपन्न त्रि., उप + vपद के भू. क. कृ. (उपपन्न) का तत्पु. स. [अनुपनिःश्रय-सम्पन्न], अर्हत्व के प्राप्ति की निषे. [अनुपपन्न], क, वह, जिसने कहीं पर प्रवेश नहीं योग्यता या अर्हता से रहित - तथागतो हि लोके पाया है, पुनर्जन्म को अप्राप्त, नहीं पहुंचा हुआ, पुनर्भव प्राप्त
ओमकसत्तसम्मतानं अनुपनिस्सयसम्पन्नानं विपरीतदस्सनानं न करने वाला- इमञ्च कायं निक्खिपति, सत्तो च अञ्जतरं ...., खु. पा. अट्ठ. 140; विलो. उपनिस्सयसम्पन्न.
कायं अनुपपन्नो होति, स. नि. 2(2).365; तं ठानं अनुपपन्ना अनुपनीत/अनूपनीत त्रि., उप+vनी के भू. क. कृ. का होन्ति, अ. नि. 3(2).239; ख. अपूर्ण, अपरिष्कृत, रहित, निषे. [अनुपनीत], शा. अ. समीप न ले जाया गया, पास अभव्य - अप्पस्सुतो सुतेन अनुपपन्नो, अ. नि. 1(2).7; तक न पहुंचाया गया, अप्रस्तुत, अनुद्धृत - न कम्मुना। मातितो हि, भो, ... अनुपपन्नोति, दी. नि. 1.84; ग. नोपि सुतेन नेय्यो, अनूपनीतो स निवेसनेसु. सु. नि. 852; व्याकरण के नियमों के अनुसार अनिष्पन्न निपात जैसे रूढ़ अत्ता च अनुपनीतो, महाव. 257; ला. अ. उपाध्याय के शब्द - यदनुपपन्ना निपातना सिज्झन्ति, क. व्या. 392; समीप नहीं पहुंचाया गया अर्थात दीक्षा को प्राप्त न किया। सद्द. 3.800. हुआ, अनुपसम्पन्न - एको अज्झायको उपनीतो एको अनुपब्बजति अनु + प + Vबज का वर्त, प्र. पु., ए. व. अनज्झायको अनुपनीतो, म. नि. 2.368.
[अनुप्रव्रजति], दूसरों की देखा-देखी प्रव्रजित होता है या अनुपनेय्य त्रि., उप + ।नी के पू. का. कृ., उपनेय्य का भिक्षुजीवन में प्रवेश करता है - न्ति ब. व. - अभिजाता निषे. अथवा उप + vनी के विधि., प्र. पु., ए. व. का निषे., अभिज्ञाता सक्यकुमारा भगवन्तं पब्बजितं अनुपब्बजन्ति, प्रस्तुत न करा कर, सामने उपस्थापित न करके - समोति चूळव. 316; - जिं अद्य. उ. पु., ए. व. - तदा सो पब्बजी अत्तानमनपनेय्य, हीनो न मजेथ विसेसि वापि, स. नि. धीरो, अहं तमनुपब्बजिं, अप. 2.252; - जिंसु अद्य. प्र. पु.,
ब. व. - बोधिसत्तं अगारस्मा अनगारियं पब्बजितं अनुपब्बजिंसु
805.
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