________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुपज्जथ
253
उड़ाता है -- पुग्गलो पहं पट्ठो समानो अभिहरति अभिमद्दति अनुपजग्घतीति खलितं गण्हाति, अ. नि. 1(1).228; अनुपजग्घतीति परेन पन्हे पुच्छितेपि कथितेपि पाणिं पहरित्वा महाहसितं हसति, अ. नि. अट्ठ. 2.181. अनुपज्जथ अनु + पद का अद्य., म. पु.. ब. व. [अन्वपद्यत]. एक साथ सम्मिलित होकर प्रवेश किया, एक साथ दिखाई पड़ा, प्रकट हुआ, साथ-साथ चला - विज्जू महामेघरिवानुपज्जथ, जा. अट्ठ. 5.402. अनुपज्झायक त्रि., उपज्झायक का निषे., ब. स. [अनुपाध्यायक]. बिना उपाध्याय वाला, उपाध्याय या । उपदेष्टा से रहित - न भिक्खवे, अनुपज्झायको उपसम्पादेतब्बो, यो उपसम्पादेय्य, आपत्ति दुक्कटस्साति, महाव. 113; तेन खो पन समयेन भिक्खू अनुपज्झायका
अनाचरियका अनोवदियमाना, महाव. 50. अनुपञ्चाहं अ., क्रि. वि., अव्ययी. स., प्रत्येक पाँचवें दिन पर - अनुदसाहं अनुपञ्चाहं देवे वस्सन्तेति अत्थो, पे. व. अट्ठ. 122. अनुपटिपज्जनक त्रि., अनु + पटि + vपद से व्यु., किसी के आचरण का अनुसरण करनेवाला, किसी के व्यवहार या कार्यपद्धति का अनुगमन करनेवाला, किसी के कार्य का अनुवर्तन करनेवाला, किसी की कार्यपद्धति का पक्षधर या समर्थक - तत्थ अनुवत्तकाति तस्स दिट्ठिखन्तिरुचिग्गहणेन अनुपटिपज्जनका, पारा. अट्ठ. 2.177. अनु-पटिपाटि स्त्री.. [अनुपरिपाटी], नियमित क्रम, प्रणाली, प्रक्रम, अनुक्रम, परिपाटी - तत्थ अनुपुब्बेनाति अनुपटिपाटिया, ध. प. अट्ठ. 2.197; एतासु अनुपटिपाटिया विहरितब्बढेन समापज्जितब्बढेन च अनुपुब्बविहारसमापत्तीसु. उदा. अट्ठ. 117; - कथा स्त्री., क्रमशः अथवा क्रमबद्धरूप में विकसित होने वाला व्याख्यान - अनुपुब्बिं कथन्ति अनुपटिपाटिकथं दी. नि. अट्ठ. 1.224; - निरोध प., क्रमिक प्रक्रिया से प्राप्त निरोध - अनुपुब्बनिरोधाति अनुपटिपाटिया निरोधा, दी. नि.
अट्ठ. 3.209. अनुपट्ठपेत्वा उप+Vठा के पू. का. कृ. का निषे., जागरूक न कर, उपस्थापित या प्रस्तुत न कर, तैयार न कर, प्रतिष्ठित न कर - अनुपद्विताय सतियाति कायगतासतिं
अनुपट्टपेत्वा, स. नि. अट्ठ.2.183. अनुपट्ठान नपुं., उपट्ठान का निषे. [अनुपस्थान], स्मृति की जागरुकता का अभाव, किसी की देखभाल करने या सेवा करने का अभाव, अनुपस्थिति, असामीप्य - वीरियिन्द्रियस्स
अनुपतन वसेन एकत्तअनपटानं वीरियिन्द्रियरस अत्थङ्गमो होति. पटि. म. 196; - कुसल त्रि., जो उपस्थित नहीं है उसके प्रति कुशल, प्रमाद करने में कुशल - नवहि आकारेहि अनुपट्ठानकुसलो होति, पटि. म. 214; - ता स्त्री., भाव., स्मृति की जागरुकता के अभाव की दशा, सेवा न करने की मनोवृत्ति, अनुपस्थिति - अनुपट्ठानताति नेक्खम्म पटिलद्धस्स कामच्छन्दो न उपट्ठाति, पटि. म. 94; विलो. उपट्ठान, अनुपट्ठित त्रि., उपट्ठित का निषे. [अनुपस्थित]. वह, जो सामने उपस्थित न हो, अविद्यमान, वह, जिसकी सेवा न की जा रही है, नहीं जागरुक, शिथिल - अनपट्टिता चेव सति न उपट्टाति, म. नि. 1.150; अनुपद्विताय सतिया, स. नि. 1(2).209; - कायसति त्रि., वह, जिसकी काया सम्बन्धी स्मृति शिथिल है या जागरुक नहीं है - अनुपडितकायसति च विहरति परित्तचेतसो, म. नि. 1.398; - सति त्रि., ब. स. [अनुपस्थितस्मृति], वह, जिसकी स्मृति जागरुक नहीं है, शिथिल स्मृतिवाला, प्रमादयुक्त व्यक्ति - बाधयन्ति अनुपद्वितस्सतिं. जा. अट्ठ. 5.450. अनुपतति अनु + vपत का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अनुपतति], किसी का पीछा करता है, अनुगमन करता है, प्रवेश करता है, आ धमकता है, आक्रमण करता है, किसी के अन्दर आ जाता है, अन्तर्सन्निविष्ट होता है, किसी दो के अन्तराल में आकर गिर जाता है - सत्तन्नत्वेव कायानमन्तरेन सत्थं विवरमनुपतति, म. नि. 2.196; ... एवं सत्तन्नं कायानं अन्तरेन छिद्देन विवरेन सत्थं पविसति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.164; - न्ति ब. व. - तं नामरूपस्मिमसज्जमानं अकिञ्चनं नानुपतन्ति दुक्खा , ध. प. 221; - माना वर्त., कृ. आत्मने., स्त्री. - अपि नाम एताय एकपदिया अनुपतमाना पुत्तके ते लहं पस्सेय्यासीति.... जा. अट्ठ. 7.328; - तेय्यासि विधि., म. पु., ए. व. - तमेवानुपतेय्यासि, अपि पस्सेसि ने लहुँ, जा. अट्ठ. 7.327; - तिस्सन्ति भवि., प्र. पु., ब. क. - मक्खिका नानुपतिस्सन्ति नान्वास्सविस्सन्तीति, अ. नि. 1(1). 315; - तितुं निमि. कृ. - सचे अनुपतितुकामासि, जा. अट्ठ. 7.327; - तित्वा पू. का. कृ. - तमेनं गिज्झापि काकापि कुललापि अनुपतित्वा अनुपतित्वा फासुळन्तरिकाहि वितुडेन्ति, पारा. 140. अनुपतन नपुं, अनु + vपत से व्यु.. क्रि. ना. [अनुपतन], अनुसरण, आक्रमण, अन्तःप्रवेश, अन्तर्सन्निवेश- अनुपतनं पवत्तीति अत्थो, अ. नि. अट्ट. 2.140; खणानुपातीति पमादक्खणे अनुपतनसीलो, जा. अट्ठ. 3.461.
For Private and Personal Use Only