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अनुपक्खिपत्वा उठता है, छलांग लगाते हुए अनुगमन करता है, आगे बढ़ता है, ला. अ. अवहेलना करता है - भवं सोणदण्डो समणस्सेव गोतमस्स वादं अनुपक्खन्दती ति, दी. नि. 1.107; अनुपक्खन्दतीति अनुपविसति, दी. नि. अट्ट, 1.234. अनुपक्खिपत्वा अनु + प + खिप का पू. का. कृ. [अनुप्रक्षिप्य], अन्दर, भीतर में या बीच में रखकर - अन्तरसथिम्हि नछुटुं अनुपक्खिपित्वा, अ. नि. 1(2).280; नढ अन्तरसथिम्हि पक्खिपित्वा ..., अ. नि. अट्ट, 2.392. अनुपखज्ज अनु + प+ खन्द का पू. का. कृ. [बौ. सं. अनुप्रस्कद्य]. 1. अन्यों की उपेक्षा कर अपने को बलपूर्वक आगे करके, अनुचित रूप से अनुप्रवेश करके - अथ खो छब्बग्गिया भिक्खू थेरे भिक्खू अनुपखज्ज सेय्यं कप्पेन्ति, पाचि. 63; अनुपखज्जाति अनुपविसित्वा, पाचि. 64; कथं हि नाम छन्नो भिक्खु भिक्खुनीनं अनुपखज्ज भिक्खूहि सद्धि विवदिस्सति, चूळव. 195; 2. अतिक्रमण करके, रौंद कर, कुचल कर, उपेक्षा या अवज्ञा कर - अनुपखज्ज मुच्छिता भोजनानि भुञ्जमाना मदं आपज्जिस्सन्ति, म. नि. 1.2093; यंनूनाहं अनुपखज्ज जीविता वोरोपेय्यान्ति, स. नि. 2(1).103; अनुपखज्जाति अनुपविसित्वा, स. नि. अट्ठ. 2.274; - कथा स्त्री., विन. वि. के एक खण्ड का शीर्षक, विन. वि. गा. 1089-1099; - सिक्खापद नपुं.. पाचि. के एक खण्ड का शीर्षक, पाचि. 63-64. अनुपखज्जन्त उप + Vखन्द के वर्त. कृ. का निषे., अतिक्रमण न करते हुए, अवज्ञा न करते हुए - थेरे भिक्खू अनुपखज्जन्तेन, परि. 311. अनुपगच्छति अनु + प + गम का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अनुप्रगच्छति, विलीन हो जाता है, निकट पहुंच जाता है, संक्रमण कर जाता है, प्रवेश कर जाता है - पथवी पथवीकार्य अनुपेति अनुपगच्छति, म. नि. 2.193; अनुपेतीति अनुयायति अनुपगच्छतीति तस्सेव वेवचनं अनुगच्छतीतिपि अत्थो , दी. नि. अट्ट, 1.137. अनुपगत त्रि., उपगत का निषे. [अनुपगत], समीप तक न पहुंचा हुआ, अप्राप्त, किसी काम के पीछे न लगा हुआ - अनपायोति पटिघवसेन अनपगतो, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.61; पाठा. अनुपगतो. अनुपगमन 1. नपुं., उपगमन का निषे. [अनुपगमन].
[पहुचना, निकटता का अलाभ - चक्खुविाणरस आपाथं अनुपगमनतो अनिदस्सनं नाम, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).306; 2. त्रि., ब. स., समीप तक न पहुंचने वाला,
अनुपजग्घति निकटता को अप्राप्त - अनुपायोति रागवसेन अनुपगमनो हुत्वा, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.61. अनुपगमनीय त्रि., उपगमनीय का निषे. [अनुपगमनीय], समीप न पहुंचने योग्य, आश्रय न ग्रहण करने योग्य, वह, जिसको पकड़ना संभव न हो - पयोगासयविपन्नेहि अनुपगमनीयतो च केनचिपि अनासादनीयतो च दुरासदो, वि. व. अट्ठ. 180. अनुपगम्म/अनुपग्गम्म अ., उप + Vगम के पू. का. कृ. का निषे. [अनुपगम्य], पास न पहुंच कर, समीप में प्राप्त न होकर, आश्रय ग्रहण न कर, सहारा न लेकर, स्वीकार न कर - दिष्टिञ्च अनुपग्गम्म सीलवा दस्सनेन संपन्नो, सु. नि. 152; उभो अन्ते अनुपगम्म मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसम्बुद्धा, म. नि. 3.279; तिस्सो नदियो अनुपगम्म ... महासमुदं पविसति, उदा. अट्ठ. 245. अनुपचार पु., उपचार का निषे०, सुदूर, असमीपता, असामीप्य, निर्जनता, पास-पड़ोस या अड़ोस-पड़ोस का न रहना - मनुस्सानं अनुपचारद्वानं यत्थ न कसन्ति न वपन्ति, तेनेवाह - वनपत्थन्ति दूरानमेत सेनासनानं अधिवचनान्तिआदि, दी. नि. अट्ठ. 1.171. अनुपचित त्रि., उपचित का निषे. [अनुपचित], पुजीभूत या राशीकृत न किया हुआ, अराशीकृत, असञ्चित, अपुञ्जित - तत्थ अकतेनाति अनिब्बत्तितेन अत्तना अनुपचितेन, पे. व. अट्ठ. 131; - कुसलसम्भार त्रि., ब. स., पुण्यकर्मों को सञ्चित न किया हुआ - ससादीहि विय महासमुद्दो अनुपचितकुसलसम्भारेहि अलभनेय्यप्पतिवा दुप्परियोगाहा च, उदा. अट्ठ. 10; - जाणसम्भार त्रि., ज्ञान की सम्पदा को सञ्चित न करने वाला - तत्थ दुद्दसन्ति सभावगम्भीरत्ता अतिसुखुमसण्हसभावत्ता च अनुपचितञाणसम्भारेहि पस्सितुं न सक्काति दुद्दसं, उदा. अट्ठ. 319. अनुपचिनन्त त्रि., उप + चि के वर्त. कृ. का निषे., संग्रह या सञ्चय नहीं करने वाला - तत्थ अनुपचिनन्ताति सिनेहेन आलयवसेन अनोलोकेन्ता, जा. अट्ठ. 5.333. अनुपच्छिन्न त्रि., उपच्छिन्न का निषे. [अनुपच्छिन्न]. व्यवधान या अन्तराल से रहित, अव्यवहित, क्रमभङ्गरहित, अबाधित अनवरुद्ध - पच्छा भुसत्थ सादिस्सानुपच्छिन्नानु वत्तिसु, अभि. प. 1174; तत्थ अनुगते अन्वेति, अनुपच्छिन्ने अनुसयो, सद्द. 3.883. अनुपजग्घति अनु + प + /जग्घ का वर्त, प्र. पु.. ए. व., हँसता है, ठठाकर हँसता है, ठिठोली करता है, मजाक
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