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अनुनाद
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अनुपक्खन्दति अनुनयसोजन, पटिघसञोजन, दिद्विसञोजन, मुक्त - सन्तो अनुण्णतो चरे, सु. नि. 707; पब्बतो अनुन्नतो विचिकिच्छासओजनं, मानसओजनं, भवरागसञोजनं, अनोनतो, मि. प. 356; विलो. अनोणतो/अनोनतो अविज्जासोजन, दी. नि. 3.201; - याभाव पु.. [अनवनत]. [अनुनयाभाव], राग या स्नेह का अभाव - एतेनस्स अनुन्नळ त्रि., उन्नळ का निषे., अहङ्कार से रहित, घमण्ड से अनुनयाभावं दस्सेति, उदा. अट्ठ. 151; - मान त्रि., आत्मने, रहित, अनुद्धत - अनुद्धता अनुन्नळा, अचपला, अमुखरा, वर्त. कृ., समझा-बुझा रहा, मार्गदर्शन करता हुआ, अभिप्रेरित म. नि. 1.39; अनुद्धता होन्ति अनुन्नळा, अ. नि. 1(1).86. करता हुआ -- अनुनयमानो तायं वेलायं इमा गाथायो अभासि. अनुन्नामिनिन्नामि त्रि., उन्नामी + निन्नामी का निषे., वह, स. नि. 1(1).268.
जो न ऊपर की ओर उठा हुआ है और न ढलानदार है, अनुनाद पु.. [अनुनाद], प्रतिध्वनि, कोलाहल, शब्द, अनुगूंज समतल, चौरस - इध, भिक्खवे, खेत्तं अनुन्नामानिन्नामि च - अत्तनोव नादरस अनुनादं सुणाति, स. नि. अट्ठ. 2.253. होति, अ. नि. 3(1).70. अनुनासिक त्रि., [अनुनासिक], नासिका से उच्चारित प्रत्येक अनुपकम्पति अनु + प + ।कम्प का वर्तः, प्र. पु., ए. व. व्यञ्जन-वर्ग का पांचवां व्यञ्जन (ङ्, ञ्, ण, न्, म्) तथा [अनुप्रकम्पति], चलायमान होता है, कांपता है, थरथराता अनुस्वार या निग्गहीत - एत्थ च गाथाबन्धसुखत्थं अनुनासिको है, हिलता-डुलता है, प्रभावित होता है - कस्स सेलूपमं खु. पा. अट्ठ. 152; - लोप पु.. [अनुनासिकलोप], अनुनासिक चित्तं, ठितं नानुपकम्पति, थेरगा. 191; यस्स सेलूपमं चित्तं, का लोप, अनुनासिक-ध्वनि की समाप्ति - अनुनासिकलोपो ठितं नानुपकम्पति, उदा. 114; लोकधम्मेहि नानुपकम्पति न चेत्थ "विवेकजं पीतिसुखन्ति आदीसु विय न कतो. सु. नि. पवेधति, उदा. अट्ठ. 200. अट्ठ. 2.123-124; - कागम पु.. [अनुनासिकागम]. अनुपकार त्रि., उपकार का निषे., अनुपयोगी, अहितकर, अनुनासिक का निवेशन, अनुनासिक को अतिरिक्त ध्वनि के भला न करने वाला - निरोधं समापज्जनकेन भिक्खुना रूप में रख देना - अनुनासिकागमं कत्वा वृत्तं 'अपरंकारोति, उपकारानुपकारानि अङ्गानि जानितब्बानि, म. नि. अट्ठ. उदा. अट्ठ. 281.
(मू.प.) 1(2).243; - धम्म पु., कर्म. स., अहितकारक बातें, अनुनीत त्रि०, अनु + Vनी का भू. क. कृ. [अनुनीत], ले उपकार या भलाई नहीं लाने वाले तत्त्व - सचे जाया गया, प्राप्त कराया गया, अभिप्रेरित - तेन दिद्विच्छन्देन अनुपकारधम्मे पहाय उपकारधम्मे सेवन्तो समापज्जति, पु. अनुनीतो ताय च दिविरुचिया निविट्ठो, सु. नि. अट्ठ. 2.215. प. अट्ठ. 34; अजानन्तो उपकारधम्मे नुदति नीहरति, अनुनीयमानो पु., अनु + ।नी का कर्म. वा. में वर्त. कृ. अनुफ्कारधम्मे सेवति, तदे... [अनुनीयमान], अभिप्रेरित किया जा रहा, प्राप्त कराया जा अनुपक्कम पु., उपक्कम का निषे., तत्पु. स., शा. अ. रहा - अनुनीयमानोपि सञ्जत्ति अनागच्छन्तो किसी के समीप न पहुंचना, ला. अ. दूसरों के अधार्मिक पच्छिमदिसाभिमुखो पक्कामि. थेरीगा. अट्ठ. 246.
उपायों का अभाव, किसी के द्वारा अनाक्रमण या आक्रमण अनुनेता पु., अनु + Vनी का कर्त. कृ. [अनुनेत]. नेतृत्व का अभाव - अनुपक्कमेन, भिक्खवे. तथागता परिनिब्बायन्ति. करने वाला, उत्प्रेरक - नेता विनेता अनुनेता. दी. नि. चूळव. 332. 3.146; पुनपुन नेतीति अनुनेता, दी. नि. अट्ठ. 3.127; अनुपक्किलेस पु., उपक्किलेस का निषे. [अनुपक्लेश], भगवा हि धम्मानं नेता विनेता अनुनेता, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) उपक्लेशों का अभाव - यदिमे तपोजिगुच्छा उपक्किलेसा 1(2).269.
वा अनुपक्किलेसा वाति, दी. नि. 3.32. अनुनेन्ती स्त्री., अनु + नी का वर्त. कृ., प्र. वि., ए. व. अनुपक्कुट्ट त्रि., उपक्कुट्ट का निषे. [अनुपक्रुष्ट], अनिन्दित, [अनुनयन्ती], अभिप्रेरित कर रही, मार्गदर्शन कर रही, निर्दोष निष्कलङ्क - अक्खित्तो अनुपक्कट्ठो जातिवादेन, म. समझा-बुझा रही- अनुनेन्ती अनिकरतं, केसे च छम खिपि नि. 2.384; दी. नि. 1.116; सु. नि. पृ. 173; याव सत्तमा सुमेधा, थेरीगा. 516.
पितामहयुगा अक्खितो अनुपक्कुट्टो जातिवादेन, अ. नि. अनुन्नत/अनुण्णत त्रि., उन्नत/उण्णत का निषे. 2(1).208. [अनुन्नत], शा. अ. वह, जो ऊपर की ओर उठाया हुआ अनुपक्खन्दति अनु + प + Vखन्ध का वर्त.. प्र. पु., ए. व. न हो; ला. अ. अहङ्कार से रहित, अभिमान या दर्पभाव से [अनुप्रस्कन्दति], शा. अ. उछलता है, पीछे ऊपर की ओर
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