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अनिच्च
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अनिच्च
विनश्वर - रूपं खो, राध, अनिच्चधम्मो, स. नि. 2(1).180; - पटिसंवेदी त्रि., [अनित्यप्रतिसंवेदी], सभी संस्कृत धर्मों में अनित्यता का अनुभव करने वाला - ... अनिच्चपटिसंवेदी सततं समितं...अ. नि. 2(2).164; अनिच्चाति एवं आणेन पटिसंवेदिता अस्साति अनिच्चपटिसंवेदी, अ. नि. अट्ट. 3.151; - लक्खण नपुं.. तत्पु. स. [अनित्यलक्षण], भगवान बुद्ध द्वारा प्रवेदित धर्मों के तीन लक्षणों में से सर्वप्रथम, जिसके अनुसार हेतुओं एवं प्रत्ययों से उत्पन्न सभी संस्कृत धर्म अपने हेतु-प्रत्ययों के निरुद्ध होते ही स्वयं भी निरुद्ध हो जाते हैं तथा कोई भी संस्कृत धर्म शाश्वत नहीं है - अनिच्चलक्खणं दुक्खलक्खणं अनत्तलक्खणञ्चेति तीणि लक्खणानि, अभि. स. 66; अनिच्चतायेव लक्खणं लक्खितब, लक्खीयति अनेनाति वा अनिच्चलक्खणं, अभि. ध. वि. टी. 232; खणतो उदयब्बयदस्सनेन अनिच्चलक्खणं पाकट होति.... विसुद्धि. 2.267; अनिच्चलक्खणं ताव उदयब्बयानं अमनसिकारा.... विभ. अट्ठ. 47; - लक्खणवत्थु नपुं..ध. प. अट्ठ. की एक कथा का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. 2.233; - वग्ग पु., स. नि. के एक खण्ड विशेष का शीर्षक, स. नि. 2(1)20-24, 2(2)1-6; - सञ स्त्री., [अनित्यसंज्ञा], धर्मों में अनित्यता की अनुपश्यना, अनित्यता की विपश्यनाभावना, 'सभी संस्कृत पदार्थ विनश्वर हैं, नित्य नहीं हैं, इस प्रकार की अनित्यता की अनुपश्यना से उत्पन्न ज्ञान - अनिच्चसा भाविता बहुलीकता .... स. नि. 2(1).139; अनिच्चसञ्जाति अनिच्चं अनिच्चन्ति भावेन्तस्स उप्पन्नसा, स. नि. अट्ठ. 2.291; अनिच्चसञआति अनिच्चानुपस्सनाञाणे उप्पन्नसा , अ. नि. अट्ठ. 3.109; ... अभावतो उदयब्बयवन्ततो पभङ्गुतो तावकालिकतो ... सब्बे सङ्खारा अनिच्चा ति पवत्तअनिच्चानुपस्सनावसेन अनिच्चसचिनो, उदा. अट्ठ. 191; - सञआभावनानुयोग पु., तत्पु. स., धर्मों में अनित्यता की अनुपश्यना-भावना में स्वयं को लगा दे ना, अनित्यतानु पश्यना का अभ्यास - अनिच्चसआभावनानुयोगमनुयुत्ता विहरन्ति, म. नि. 3.126; - सानुलोम त्रि., ब. स., अनित्यता की विपश्यनाभावना के अनुरूप या उपयुक्त - अथ वा अनिच्चं वा अनिच्चसानुलोमं वा..., महानि. 142; ... ताय सञआय। अनुलोम अप्पटिकूलं अनिच्चसआनुलोम, महानि. अट्ठ. 244; - सापरिचित त्रि, तत्पु. स., अनित्यता की विपश्यना-भावना को जानने वाला अथवा उससे परिचित साधक- अनिच्चसञआपरिचितेन, भिक्खवे, भिक्खनो चेतसा
... अ. नि. 2(2).198; - सजी त्रि., [अनित्यसंज्ञी], अनित्यता की अनुपश्यना करने वाला, संस्कृत धर्मों में अनित्यता का मानसिक प्रत्यक्ष-ज्ञान प्राप्त करने वाला - सब्बसकारेसु अनिच्चानुपस्सी विहरति, अनिच्चसञी .... अ. नि. 2(2).165; अनिच्चाति एवं सा अस्साति अनिच्चसञी, अ. नि. अट्ठ. 3.151; - सभाव त्रि.. ब. स. [अनित्यस्वभाव], स्वभाव से ही अनित्य, विनश्वर या क्षणभङ्गुर - अनिच्चसभावानं पन खन्धानं जरामरणत्ता अनिच्चं नाम जातं. स. नि. अट्ठ. 2.37; - सम्भूत त्रि०, तत्पु. स. [अनित्यसम्भूत], अनित्य स्वभाव वाले संस्कृत धर्मों से उत्पन्न - अनिच्चसम्भूतं, भिक्खवे, चक्खु ... स. नि. 2(2).133; - च्चाकार पु., कर्म. स. [अनित्याकार], अनित्यलक्षण, धर्मो का अनित्य स्वभाव, अध्रुव स्वरूप, विनश्वर प्रकृति - ... भगवा पुग्गलस्स आचिक्खति विपस्सनानिमित्तं अनिच्चाकारं दुक्खाकारं अनत्ताकार, महानि. 264; अनिच्चाकारन्ति हुत्वा अभावाकारं महानि अट्ठ. 312; - च्चानुपस्सना स्त्री., तत्पु. स. [अनित्यानुपश्यना]. धर्मो के अनित्य स्वभाव को विपश्यना की भावना द्वारा देखना, चार स्मृति-प्रस्थानों में से अन्तिम अर्थात धर्मों की धर्मता पर अनुपश्यना, पांच स्कन्धों के क्षय एवं व्यय आदि का ज्ञानदर्शन - अनिच्चानुपस्सना अभिज्ञेय्या, पटि. म. 103;
अनिच्चानुपस्सना, दुक्खानुपस्सना अनत्तानुपस्सना चेति तिस्सो अनुपस्सना, अभि. ध. स. 66; तत्थ अनिच्चस्स, अनिच्चन्ति वा अनुपस्सना अनिच्चानुपस्सना तेभूमकधम्मानं अनिच्चतं गहेत्वा पवत्ताय विपस्सनाय एतं नाम, विसुद्धि. महाटी. 1.323; द्रष्ट. अनुपस्सना; -- च्चानुपस्सी त्रि., [अनित्यानुदर्शी, बौ. सं. अनित्यानुपश्यी], विपश्यना द्वारा धर्मों में अनित्यता का ज्ञान-दर्शन प्राप्त करने वाला - सब्बसवारेसु अनिच्चानुपस्सिनो विहस्थ, इतिवु. 58; ... अनिच्चलक्खणं नाम, तं आरब्भ पवत्ता विपस्सना अनिच्चानुपस्सना, तं अनिच्चन्ति विपस्सको अनिच्चानुपस्सी. इतिवु. अट्ठ. 234; अनिच्चन्ति अनुपस्सी, अनिच्चस्स वा अनुपस्सनसीलो अनिच्चानुपस्सीति, विसुद्धि. महाटी. 1.324; - च्चुच्छादनपरिमद्दनभेदनविद्धंसनधम्म त्रि., ब. स. [अनित्युत्सादनपरिमर्दनभेदनविध्वंसनधर्म], वह मानव शरीर, जो स्वभाव से ही अनित्य, अपचय-शील, अपघर्षणशील, टूट जाने वाला एवं विनष्ट हो जाने वाला है -... कायस्स अधिवचनं .... अनिच्चुच्छादन परिमद्दन भेदन-विद्धंसनधम्मस्स, म. नि. 1.198; ... हत्वा अभावद्वेन अनिच्चधम्मो
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