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अनाळ्हिय
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अनिक्खित्त
अनाळिहय त्रि., आळ्हिय का निषे०, तत्पु. स. [अनाढ्य], निर्धन, दरिद्र, धनरहित - पुरिसो दलिदो अस्सको अनाळिहयो. म. नि. 2.123; 2.395; अनाळिहयोति अनड्डो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.119; अपि चे दलिद्दा कपणा अनाळिहया, जा. अट्ट. 5.91. अनिकट्ठकाय त्रि., निकट्ठकाय का निषे., ब. स. [अनिकटस्थकाय], वह, जिसका शरीर परिस्थिति विशेष के अनुकूल या सामञ्जस्यपूर्ण न हो - ... अनिकट्ठकायो च अनिकट्ठचित्तो..., अ. नि. 1(2).157. अनिकट्ठचित्त त्रि., निकट्ठचित्त का निषे०, ब. स. [अनिकटस्थचित्त], वह, जिसका चित्त कहीं और है, अन्यमनस्क - अनिकट्ठकायो च अनिकट्ठचितो च, ..., अ. नि. 1(2).157; अनिकट्ठचित्तोति अनुपविट्ठचित्तो, अ. नि. अट्ठ. 2.334. अनीकरत्त/अनीकदत्त पु., वारणवती के एक राजा का नाम - वारणवतिम्हि, राजा अनीकरतो.... थेरीगा. 464, 483. अनिक्कीळितावी त्रि., निकीळितावी का निषे., तत्पु. स.,
शा. अ. वह, जिसकी क्रीड़ा पूर्ण नहीं हुई है, ला. अ. वह, जिसने काम-भोगों का अभी तक पूर्ण सेवन नहीं किया है - पठमेन वयसा अनिक्कीळितावी कामेसु. स. नि. 1(1).11; अनिक्कीळितावी कामेसूति कामेस अकीळितकीळो अभुत्तावी, अकतकामकीळोति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 1.39; पठमेन वयसा अनिक्कीळिताविनो कामेस. स. नि. 1(1).139. अनिकुब्बन्त त्रि., नि + ।कुब्ब के वर्त. कृ. का निषे. [अनिकुर्वत्], धोखाधड़ी न कर रहा, विप्रलम्भित न करने वाला - परेसं अनिकुब्बतो, जा. अट्ठ. 2.195. अनिकेत त्रि., निकेत का निषे., ब. स. [अनिकेत]. शा. अ. बेघर, गृह-विहीन, ला. अ. तृष्णा-रहित, अनासक्ति भाव वाला, रागरहित, निर्वाण को प्राप्त मुनि- अनिकेतमसन्थवं, एतं वे मुनिदस्सनं, सु. नि. 209; अनिकेतं ... असन्थवं ... उभयम्पेतं निब्बानस्साधिवचनं सु. नि. अठ्ठ. 1.2153; पब्बजितो ... अप्पिच्छो होति ... अनिकेतो..... मि. प. 229; - चारी त्रि., [अनिकेतचारिन्], संभवतः 'सारी' के स्थान पर अप.; अनासक्ति की अवस्था का पालन कर रहा - अनिकेतचारीति अपलिबोधचारी नित्तण्हचारी, स. नि. अट्ठ. 2.265; - वासी त्रि., अनासक्त अथवा तृष्णाविनिर्मुक्त होकर निवास करने वाला, बेघर - यदा देवदत्तो मनुस्सो अहोसि वनचरको अनिकेतवासी, मि. प. 192; - विहार
पु., तत्पु. स., अनासक्त जीवन बिताने वाला, बेघर होकर (प्रव्रजितभाव को प्राप्त कर) विचरण करने वाला - ओक पहाय अनिकेतसारी, सु. नि. 850. अनिक्कड्डन नपुं.. निषे०, तत्पु. स. [अनिष्कर्षण], बाहर न निकालना, निकाल बाहर न करना, खण्डन न करना -
इमिस्सा अनिक्कवनं करिस्सामि, जा. अट्ठ. 3.19. अनिक्कसाव त्रि, कसाव का निषे., ब. स. [अनिष्काषाय], चित्त के मलों या काषायों से अविनिर्मुक्त कलुषित चित्त वाला - अनिक्कसावो कासावं, यो वत्थं परिदहिस्सति, ध. प. 9; अनिक्कसावोति रागादीहि कसावेहि सकसावो, ध. प. अट्ठ. 1.49; थेरगा. 969. अनिक्खन्त त्रि., निक्खन्त का निषे., तत्पु. स., बाहर न निकला हुआ, परित्याग नहीं किया हुआ- ... मातुकुच्छितो अनिक्खन्तकालेयेव आभता आनीता, जा. अट्ठ. 1.282; - राजक त्रि.. ब. स. [-राजक], वह क्षेत्र, जहां से राजा बाहर नहीं निकला है - अनिक्खन्तराजकति राजा सयनिघरा अनिक्खन्तो होति, पाचि. 212; अनिक्खन्तो राजा इतोति अनिक्खन्तराजक, पाचि. अट्ठ. 139. अनिक्खमन नपुं., निक्खमन का निषे०, तत्पु. स. [अनिष्क्रमण]. बाहर न निकलना, गृह का परित्याग न करना, गृही या भोगासक्त जीवन, गृहत्याग न करने वाला - तदा बहि अनिक्खमनकुलानिपि, ध. प. अठ्ठ. 1.218. अनिक्खित्त त्रि., निक्खित्त का निषे., तत्पु. स. [अनिक्षिप्त], नहीं फेंका हुआ, नीचे न रखा हुआ, स्वीकृत, अपरित्यक्त; - कसाव त्रि., ब. स., द्रष्ट, 'अनिद्धन्तकसाव' के अन्त. आगे; - छन्द त्रि., ब. स. [अनिक्षिप्तछन्द], शिथिल इच्छा से रहित, सुदृढ़ संकल्प वाला, दृढ़ अध्यवसाय वाला - अप्पमत्तोति ... अनिक्खित्तछन्दो ... कुसलेसु धम्मेसु महानि. 42; - छन्दता स्त्री., भाव. [अनिक्षिप्तछन्दता], सुदृढ़ संकल्प की मनोदशा - यो तस्मिं समये चेतसिको वीरियारम्भो.... असिथिलपरक्कमता अनिक्खित्तछन्दता, ध. स. 26; यस्मा पनेतं वीरियं ... छन्दं न निक्खिपति, धुरं न निक्खिपति ... तस्मा अनिक्खित्तछन्दता, ध. स. अट्ठ. 191; अनिक्खित्तछन्दताति कुसलच्छन्दस्स अनिक्खिपनं. ध. स. अट्ठ. 426; - धुर त्रि., कर्म. स. [अनिक्षिप्तधुर]. वह, जो भार को नीचे उतार कर न फेंके, प्रबल वीर्य से सम्पन्न, दृढ़ उद्योगी - आरद्धवीरियो ... थामवा दळ्हपरक्कमो अनिक्खित्तधुरो कुसलेसु धम्मेसु. उदा. 109; अनिक्खित्तधुरोति अनोरोहितधुरो अनोसक्कितवीरियो, उदा.
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