________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुदसाह
247
अनुदेव/अन्वदेव करोति, जा. अट्ठ. 5.422; उप्पन्नकामरतिया अनुडव्हमाना अनुदिसं अ., क्रि. वि., अव्ययी. स. [अनुदिशं], सभी विय हुत्वा पि, जा. अट्ठ. 6.250.
दिशाओं की ओर, प्रत्येक दिशा की तरफ - नन्दो अनुदिसं अनुदसाहं अ., क्रि. वि., अव्ययी. स. [अनुदशाह], प्रत्येक अनुविलोकेति, अ. नि. 3(1).16; गच्छति अनुदिसं. दी. दसवें दिन पर - अन्वड्डमासं अनुदसाहं अनुपञ्चाहं देवे नि. 1.203; अ. नि. 2(2).80; स. नि. 1(1).143; स. नि. वस्सन्ते ति अत्थो, पे. व. अट्ठ. 122; दी. नि. अट्ठ.2.362. 2(1).113. अनुदस्सति अनु + vदा का भवि., प्र. पु.. ए. व. [अनुदास्यति], अनुदिसा स्त्री., संभवतः अनुदिसं (अ.) के अनुकरण पर क. बदले में या परिणामस्वरूप देगा या लौटा देगा, प्रस्तुत भिन्न तात्पर्य में गढ़ा हुआ शब्द, दिशा-मण्डल का करेगा - सम्मा धारं पवेच्छन्ते सुबहूनि फलानि अनुदस्सति, अन्तर्मध्यवर्ती क्षेत्र ईशान, आग्नेय आदि, दिशाओं के चार मि. प. 342; ख. प्रदान करेगा, अर्पित करेगा - बोधिसत्तानं अन्तर्मध्यवर्ती क्षेत्रों के समूह का सङ्केतक शब्द - दिसाथ इमे दस गुणे अनुदस्सतीति, मि. प. 257.
दक्खिणापाची, विदिसानुदिसा भवे, अभि. प. 29; अनुदिसा अनुदस्सित त्रि., अनु + दिस के प्रेर. का भू. क. कृ. आलोकेतब्बा होति, म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1(1).272; [अनुदर्शित], पूर्ण रूप से प्रदर्शित या अभिव्यक्त- तथागतस्स पुरत्थिमायपि अनुदिसाय सद्दानं सद्दनिमित्तं मनसि करोति, सदेवके लोके सेट्ठभावो अनुदस्सितो, मि. प. 125.
पटि. म. 103; तस्स चतस्सो दिसा चतस्सो अनुदिसा च अनुदस्सेति अनु + दिस का प्रेर. वर्त., प्र. पु., ए. व. गच्छन्तस्सापि, ध. प. अट्ठ. 1.184; - पेक्खण नपुं.. [अनुदर्शयति], पुनः पुनः सिखलाता या समझाता है - अनुदिशाओं की ओर दृष्टिपात, विलोकन, इधर-उधर ताकना सापेति निज्झापति पेक्खेति अनपेक्खेति दस्सेति - विलोकितं नाम अनुदिसापेक्खणं, स. नि. अट्ठ. 1.157; अनुदस्सेति, चूळव. 174.
दी. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).270. अनुदहति/अनुडहति अनु + Vदह/ डह का वर्त., प्र. अनुदीपयित्वा अनु + /दीप के प्रेर. का पू. का. कृ. पु., ए. व. [अनुदहति], धीरे-धीरे जलाता है, उत्पीड़ित [अनुदीप्य], ज्ञात कराके, प्रकाशित कराके, सुस्पष्ट कराके करता है, विनष्ट करता है, शोक में डुबो देता है - रागो - पुब्बकानं सयम्भूनं पवेणिमनुसिट्ठिया धम्माधम्ममनुदीपयित्वा .... सत्ते अनुदहति झापति, दी. नि. अट्ठ. 3.160; - न्ति प्र. धम्मेन, मि. प. 214. पु., ब. व. - किं ते इमे कासावा अनुदहन्ति, स. नि. अनुदूत पु., [अनुदूत], शा.अ. साथ चल रहा दूत, विशेष 3(1)63; 3(2)371; तं तं अनुदहन्ति महाविनासं पापेन्ति, जा. अर्थ-भिक्षुसङ्घ द्वारा किसी भिक्षु पर किसी अपराध का अट्ट. 5.449; - हितुं निमि. कृ. - तं विसं अनुडहितुं न विधान किये जाने पर तथा अपराध के निराकरण हेतु उस सक्कोति, ध. प. अट्ठ. 2.16.
भिक्षु द्वारा याचना किये जाने पर सङ्घ द्वारा उसके साथ अनुदहन/अनुडहन नपुं., अनु + /दह/ डह से व्यु. साक्षी के रूप में जाने के लिये दिया गया दूसरा भिक्षु - [अनुदहन], अग्निदाह, आग की ज्वाला, जलन, क्षय, सुधम्मस्स भिक्खुनो अनुदूतं देतु, चूळव. 41; तेन अनुदूतेन विनाश, अग्निकाण्ड - उक्कोपमा तिणुक्कूपमा अनुदहनतुन, भिक्खुना सद्धिं गन्त्वा, ध. प. अट्ट, 1.293; याचित्वा अनुदूतं थेरीगा. अट्ठ. 311; तिणुक्कूपमा कामा अनुदहनतुना ति, सो सह तेन पुरं गतो, म. वं. 4.15; अनुदूतन्ति अत्तदुतियं महानि. 5; - ता स्त्री॰, भाव., जला देने की क्षमता या भिक्खु याचित्वा तं ततो लभित्वाति अत्थो, म. वं. टी. 124 प्रकृति - अनुदहनताय रागरस, सा. सं. 130(रो.); - (ना.). बलवता स्त्री., जला डालने की शक्ति - अनुदहनबलवताय अनुदेव/अन्वदेव अ., [अन्वगेव], क. एक ही साथ, साथ अब्बोहारिकानि होन्ति, जा. अट्ट. 5.264.
साथ ही - अन्वदेवाति अनुदेव, सहेव एकतो येवाति अत्थो, अनुदिट्ठि स्त्री., [अनुट्टष्टि], गौण मिथ्या-धारणा, संसार की अ. नि. अट्ठ. 1.57; पुब्बङ्गमानं अकुसलानं धम्मानं समापत्तिया वस्तुओं (धर्मों) के विषय में परिकल्पित अप्रमुख मिथ्या- अन्वदेव अहिरिकं अनोतप्पं..., स. नि. 3(1).2; अ. नि. धारणा - अनुदिट्ठीनं अप्पहानं सङ्कप्पपरतेजितं, थेरगा. 754; 3(2).182; ... एतं अनुदेव सहेव एकतोव, न विना तेन अनुदिट्टीनं अप्पहानन्ति अनुदिट्ठिभूतानं सेसदिट्ठीनं उप्पज्जतीति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 3.153; ख. बाद में, अप्पहानकारणं, थेरगा. अट्ठ. 2.242; स. उ. प. में अत्तानु०, तुरन्त पीछे - मनो अकुसलानं धम्मानं पठम उप्पज्जति, अपरन्तानु., परित्तत्तानु, पुब्बन्तानु. के अन्त. द्रष्ट.. अन्वदेव अकुसला धम्मा, अ. नि. 1(1).13.
For Private and Personal Use Only