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अनुग्गहण
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अनुचरित अनुग्गहण नपुं.. [अनुग्रहण], अनुकूल रूप में किसी वस्तु अनुघरं क्रि. वि., अ. [अनुगृह], प्रत्येक घर में, घर घर में का स्वीकरण, सहायता-प्रदान, अनुकम्पन - अनुग्गहायाति - ... अनुघरं पञ्च पञ्च उदकघटकानि ठपेन्ति .... मि. प. अनुग्गहणत्थं स. नि. अट्ठ. 2.21, पाठा. अनुग्गहत्थं - ___42. पच्चुपट्ठान त्रि., [-प्रत्युपस्थान], अनुग्रह या अनुकम्पा के अनुघरकं उपरिवत् - अनुधरकं अनुघरकं आहिण्डथ, महाव. कारण उत्पादित अनुकूल मानसिक संवेदन से उत्पन्न - सातलक्खणं सुखं, ... अनुग्रहणपच्चुपट्टानं, ध. स. अट्ठ. अनुघायित्वा अनु + Vघा का पू. का. कृ., सुगन्ध लेकर,
सूंघ कर, रसास्वाद ग्रहणकर - भमराव गन्धमनुघायित्वा अनुग्गहीत त्रि., अनु + गह का भू. क. कृ. [अनुगृहीत], पविसन्ति विवित्तकाननं, मि. प. 311. क. वह, जिस पर किसी ने अनुग्रह अथवा कृपा की है, अनुचङ्कमति अनु + कम का अवधारक वर्त, प्र. पु., ए. व. संतुष्ट, सहायता प्राप्त, अनुमोदित, उपकृत - कतिहि ... [अनुचङ्क्रम्यते], ऊपर से नीचे की ओर तथा नीचे से अङ्गेहि अनुग्गहिता सम्मादिट्टि, म. नि. 1.373, पाठा. ऊपर की ओर चलता है, किसी के साथ विचरण करता है, अनुग्गहीता; अनुग्गहिताति लद्धपकारा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) स्मृति एवं संप्रजन्य के साथ चङ्क्रमण करता है - न्ति प्र. 1(2).242; ख. कर्तृ. वा., सहायक, दयालु, कृपालुः - चित्त पु.ब. व. - उपसङ्कमित्वा परितो परितो कुटिकाय अनुचङ्कमन्ति त्रि., ब. स., दयालु चित्तवाला, उदार - कालेन दानं देति, अनुविचरन्ति, स. नि. 2(2).123; - मानो वर्त. कृ., आत्मने., अनुग्गहितचित्तो दानं देति, अ. नि. 2(1).162; पु.प्र. पु., ए. व. - जवविहारं अनुचङ्कममानो, जा. अट्ठ. अनुग्गहितचित्तोति अग्गहितचित्तो मुत्तचागो हुत्वा, अ. नि. 4.7; - न्तानं वर्त. कृ., पु., ष. वि., ब. व. - माणवानं अट्ठ. 3.54.
जलविहारं अनुचङ्कमन्तानं अनुविचरन्तानं दी. नि. 1.214; - अनुग्गाहक त्रि.. [अनुग्राहक], सहायक, अनुग्रह करने मिं अद्य०, उ. पु., ए. व. - बुद्धस्स चङ्कमन्तस्स, पिद्वितो वाला, अनुकम्पक, उपकारक, प्रोत्साहक - पण्डिता भिक्खू अनुचङ्कमि, थेरगा. 1047; -मिंसु अद्य., प्र. पु., ब. व. - अनुग्गाहका सब्रह्मचारीनं म. नि. 3.297; भिक्खूनं अनुग्गाहको भगवन्तं अभिवादेत्वा भगवन्तं चङ्कमन्तं अनुचङ्कमिंसु, दी. नि. सब्रह्मचारीनं, स. नि. 2(1).6; अनुग्गाहकोति ... द्वीहिपि 3.59; - मिस्सं अद्य.. उ. पु., ए. व. - अनुचङ्कमिस्सं अनुग्गहहि अनुग्गाहको, स. नि. अट्ठ. 2.226; विरजं, सब्बसत्तानमुत्तम, थेरगा. 481. परमहितानुकम्पकेति ... अनुग्गाहके, वि. व. अट्ठ. 91. अनुचङ्कमन नपुं. [अनुचङ्क्रमण], बिहार में निर्मित वह पथ, अनुग्घात पु., उग्घात का निषे०, तत्पु. स. [अनुद्घात], जिस पर साधक भिक्षु स्मृति के साथ चंक्रमण करे -द्वीसु
शा. अ. झटकों अथवा गाड़ी की चाल में धक्कों का अभाव, पस्सेस रतनमत्तअनुचङ्कम दीघतो सद्विहत्थं.... जा. अट्ठ. 1.10. चोट, ठेस अथवा पीड़ा का अभाव, सवारी की बिना झटकों __अनुचङ्कमापेन्ति अनु + Vचङ्कम का प्रेर०, वर्त.. प्र. पु.. ब. वाली गति, ला. अ. क्रोध, द्वेष आदि के प्रहार या झटकों व., चङ्क्रमण के लिए प्रेरित करते है, चङ्क्रमण हेतु का अभाव - ... अनुग्घातीति ... अनुग्घातेन समन्नागतो, उत्साहित करते है - आयस्मन्तं महामोग्गल्लानं वेजयन्ते जा. अट्ठ. 7.143.
पासादे अनुचङ्कमापेन्ति अनुविचरापेन्ति, म. नि. 1.322. अनुग्घाती त्रि., झटकों अथवा धक्कों से रहित, अकष्टकर, अनुचर पु.. [अनुचर], साथी, अनुयायी, अनुगामी, सेवक, पीड़ा न देने वाला, क्रोध आदि से रहित, अहिंसक - भृत्य - आयसाधको आयुत्तकपुरिसो विय तन्निस्सितो नन्दिरागो
अक्कोधनमनुग्घाती, जा. अट्ठ. 7.142; ठितं वग्गुमनुग्घाती, अनुचरो नाम, ध. प. अट्ठ. 2.259. .... वि. व. 33; अनुग्घातीति न उग्घाति, अत्तनो उपरि अनुचरति अनु + चर का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अनुचरति], निसिन्नानं ईसकम्पि खोभं अकरोन्तोति, वि. व. अट्ठ. 27. पीछे चलता है, साथ-साथ चलता है, आ धमकता है, अनुघटेति अनु. + Vघट का वर्त, प्र. पु., ए. व., साथ में आक्रमण करता है; आह्वान करता है, इधर-उधर भटकता लगा देता है, संलग्न करता है, जोड़ देता है, अनुबद्ध कर है - सि म. पु., ए. व. - किं मुण्डो कपालमनुचरसि, स. देता है - न्तो त्रि., वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - ... नि. 2(2).190; -न्ति वर्त.. प्र. पु., ब. व. - यम्पि, भिक्खवे, जातकं पच्चुप्पन्नेन अनुघटेन्तो .... खु. पा. अट्ठ. 1583; दलिदो अस्सको अनाळिहको चोदियमानो न देति, पाठा. अनुसन्धेन्तो.
अनुचरन्तिपि नं., अ. नि. 2(2).66 अनुचरन्तिपि नन्ति
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