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अनुहान
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अनुताळयि यमकसालानमन्तरे उत्तरसीसके मञ्चके अनुट्ठानसेय्याय नानुतपन्तिमाम, स. नि. 1(1)132; - पेय्य विधि, प्र. पु.. निपज्जि, जा. अट्ठ. 1.374; तं दिवसमेव पोलजनकस्स ए. व. - यथा तं सुचिण्णं नानुतप्पेय्य पच्छा ति, जा. अट्ठ.
सरीरे रोगो उप्पग्जि, अनुट्ठानसेय्यं सयि, जा. अट्ठ. 6.41. 5.269; ख. बाद में शोक या अनुताप करता है, पश्चात्ताप अनुवान नपुं.. [अनुष्ठान], काम का निष्पादन, कार्यपद्धति, करता है, पछताता है, पीछे दुख को प्राप्त होता है - न तं शील, समाधि एवं प्रज्ञा की शिक्षाओं की वास्तविक व्यवहार कम्म कतं साधु, यं कत्वा अनुतप्पति, ध. प. 67; कम्म कत्वा में परिणति - महतिया निब्बानव्हाय अधिसीलादिसिक्खाय ... अनुतप्पति अनुसोचति, ध. प. अठ्ठ. 1.272; अमित्तवसमन्वेति,
अनुवानन्ति अत्थो, थेरगा. अट्ट, 2.178; स. उ. प. के रूप पच्छा च अनुतप्पतीति, जा. अट्ठ. 3.234; - प्पामि वर्त., उ. में कम्मन्ता, कुसलधम्मा०, परिचरिया. के अन्त. द्रष्ट.. पु., ए. व. - भयानुतप्पामि महा च मे भया, जा. अट्ठ. 7.140; अनुद्वित' त्रि., उट्ठित का निषे. [अनुत्थित]. 1. शा. अ. - प्पथ वर्त., म. पु., ब. व. - यमेकरत्तं अनुतप्पथेतं, जा. ऊपर की ओर नहीं उठा हुआ, स्पष्ट रूप से प्रकट न होने अट्ठ. 4.398; - प्पाम वर्त., उ. पु., ब. व. - दत्वापि वे वाला, 2. ला. अ. अप्रकट, अजात, अनुत्पन्न, अभूत- ये नानुतप्पाम पच्छा, जा. अट्ठ. 4.47; - तपे/तप्पे विधि., प्र. धम्मा अजाता अभूता ... असमुप्पन्ना अनुहिता, ध. स. 1042; . पु., ए. व. - यो च दत्वा नानुतप्पे, जा. अट्ठ. 3.300; -- यं रूपं अजातं अभूतं... असम्प्पन्नं अनहितं विभ. 2.
पेय्यं विधि., उ. पु., ए. व. - ददतो मे न खीयेथ, दत्वा अनुद्वित' त्रि., अनु + Vठा का भू. क. कृ. [अनुष्ठित], क. नानुतपेय्यं, पे. व. 299; अप्पसादकं दिस्वा तेनहं पच्छा ठीक से या उचित रूप से निष्पादित, अच्छी तरह से नानुतपेय्यं, पे. व. अट्ठ. 113; - पिस्सति भवि०, प्र. पु.. ए. व्यवहार में उतारा हुआ, सुसमारब्ध, भलीभांति आचरण व. - वाणिजोव अतीतत्थो, चिरत्तं अनुतपिस्सति, अ. नि. किया गया - चत्तारो इद्धिपादा भाविता ... अनुहिता 3(1).62; - पेस्ससि भवि., म. पु., ए. व. - एवं सन्ते त्वं परिचिता, दी. नि. 2.79; मि. प. 142; अनुहिताति दीघमद्धानं सोचन्तो परिदेवन्तो अनुतपेस्ससि, जा. अट्ठ. 1. अधिद्विता, दी. नि. अट्ठ. 2.129; उदा. अट्ठ. 264; अनुहिताति 120; - प्पितब्ब त्रि., सं. कृ. - दानं नाम दत्वा नेव अविजहिता निच्चानुवद्धा, स. नि. अट्ठ. 1.160; ख. कर्तृ. । अनुतप्पितब्बन्ति, जा. अट्ठ. 3.301; - तप्प त्रि.. सं. कृ. - वा. देख-रेख या पालन करने वाला - अहं पतिञ्च पुत्ते च सावकानं कालङ्कतो अनुतप्पो होति, दी. नि. 3.90; अनुतप्पो .... अनुद्विता दिवारत्तिं, जा. अट्ठ. 7.338; अनुट्ठिताति होतीति अनुतापकरो होति. दी. नि. अट्ठ. 3.84; अ. नि. अट्ट. पारिचरियानुट्ठानेन अनुट्टिता अप्पमत्ता हुत्वा पटिजग्गामि, 1.93; कालकिरिया बहुनो जनस्स अनुतप्पा होति, अ. नि. 1(1)29. जा. अट्ठ. 7.339.
अनुताप पु., प्रायः पच्छा के साथ प्रयुक्त [अनुताप], पछतावा, अनुट्ठभा स्त्री., [अनुष्टुभ], समानमात्रायुक्त पादों वाले अथवा पश्चात्ताप, बाद में मन में उत्पन्न जलन या छटपटाहट - समवृत्त छन्दों के अनेक प्रभेदों में से एक प्रमुख छन्द का पच्छातापो अनुतापो च विप्पटिसारो पकासितो, अभि. प. नाम, जिसके प्रत्येक पाद में आठ-आठ अक्षर रहते हैं तथा 169; एवं तं कम्मं पच्छा अनुतापं आवहतीति, जा. अट्ट. जिसके चित्तपदा, विज्जुम्माला, मानवका, समानिका एवं 7.158; अनुतापोति विप्पटिसारो, वि. व. अट्ठ. 149; - कर पमाणिका नामक पांच उपभेद छन्दशास्त्र में बतलाए गये त्रि., पश्चात्ताप को उत्पन्न करने वाला, दुखदायक, शोचनीय हैं - छन्दो वसे अधिप्पाये वेदेच्छानुहभादिसु, अभि. प. 945; - अनुतप्पा होतीति अनुतापकरा होति, अ. नि. अट्ठ. 1.93; द्रष्ट. वुत्तो. 47-51(ना.).
तस्स पतत्ता अनुतापकरो न होति, दी. नि. अट्ठ. 3.84. अनुतपति/अनुतप्पति अनु + तप का वर्त., प्र. पु., ए. अनुतापी त्रि., [अनुतापिन्], पछतावा करने वाला, केवल व., कर्तृ. वा. एवं कर्म. वा. दोनों ही के आशय को परस्पर पच्छा के स. उ. प. के रूप में ही प्रयोग में प्राप्त- भुजाहि में व्यामिश्रित कर प्रयुक्त [अनुतपति/अनुतप्यते], क. बाद कामरतियो, माहु पच्छानुतापिनी, थेरीगा. 57; 190; हीने में उत्पीड़ित कर देता है, उद्वेलित करता है, अनुताप चित्तं पणिधाय, साम्हि पच्छानुतापिनी, वि. व. 242. उत्पन्न कराता है - किं कम्मजातं अनुतप्पते त्वं, जा. अट्ट. अनुताळयि अनु + Vताळ का अद्य., म. पु.. ए. व., बार-बार 5.23; तं पच्छा अनुतप्पती ति, जा. अट्ठ. 7.157; तं पच्छा ताड़ना दी या पीटा - बाहाय मंगहेत्वान, लट्ठिया अनुताळयि, अनुतप्पतीति ... तं कम्म पच्छा अनुतापं आवहति, जा. ___जा. अट्ट, 2233; यं मं बाहा गहेत्वान, तिक्खत्तुं अनुताळयीति, अट्ठ. 7.157-58; - न्ति वर्त, प्र. पु., ब. क. - रत्तिन्दिवा तदे..
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