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अनीतिह
233
अनु अनु आहरित्वा
किलेसईतिविरहितं, सु. नि. अट्ठ. 2.297; अनीतिकन्ति इति अनीहमान त्रि., Vईह के वर्त. कृ. का निषे. [अनीहमान], वुच्चन्ति किलेसा च खन्धा च अभिसङ्घारा च ईतिप्पहानं चेष्टा न करने वाला, चेष्टाविमुख, प्रयासविमुख, प्रयत्नविमुख ... अमतं निब्बानन्ति, चू. नि. 195; परायणं सरणमनीतिक ___ - घरा नानीहमानस्स, जा. अट्ट, 2.195; नानीहमानस्साति तथा, अभि. प.7; - कधम्म पु., कर्म. स. [अनीतिकधर्म], निच्चकालं कसिगोरक्खादिकरणेन अनीहमानस्स क्लेशरहित चित्त की स्थिति, निर्वाण की अवस्था - अवायमन्तस्स घरा नाम नत्थि, तदे.. अनीतिकधम्मञ्च वो, भिक्खवे, देसेस्सामि ..., स. नि. अनु' क. संज्ञाओं के पूर्व में प्रयुक्त उप., प्रायः स्वरादि2(2).342; - कधम्मगामी त्रि., [अनीतिधर्मगामिन्], संज्ञाओं से पूर्व अन्व के रूप में परिवर्तित, अव्ययी. स. क्लेशरहित चित्त की स्थिति अथवा निर्वाण की ओर ले जाने बनाने के लिए संज्ञा-शब्दों के पूर्व जोड़ा जाने वाला उप.; वाला मार्ग - अनीतिकधम्मञ्च वो भिक्खवे, देसेस्सामि साहचर्य, के साथ, साथ ही, पीछे, सम्बन्ध में, विषय में, अनीतिकगामिञ्च मग्ग, स. नि. 2(2).342; - सम्पदा निरन्तरता या सातत्य में, भाग, हिस्सा, साम्य रखनेवाला, स्त्री., तत्पु. स. [अनीतिसम्पत्], ऋतुजनित विपदाओं से आवृत्ति आदि - पच्छा भुसत्थ सादिस्सानुपच्छिन्नानुवत्तिसु, विमुक्ति, ईतियों से विमुक्ति - अनीतिसम्पदा होति, विरूळ्ही हीने च ततियत्थाधोभावे स्वनु गते हिते, देसे भवति सम्पदा, अ. नि. 3(1).71; अनीतिसम्पदा होतीति लक्खणवीच्छेत्थम्भूतभागादिके अन, अभि. प. 1174; ख. कीटकिमिआदिपाणकईतिया अभावो एका सम्पदा होति, अ. स्वतन्त्र सम्बन्धबोधक अ. के रूप में कर्मकारक के नि. अट्ठ. 3.228.
साथ क. प्र. नाम से प्रयुक्त - कम्मप्पवचनीययुत्ते ... अनीतिह त्रि., इतिह का निषे०, छन्दानुरोधजनित इकार का पब्बजितमनुपबजिंसु, क. व्या. 301; ग. लक्षण, इत्थम्भूत, दीर्धीकरण, परम्परा से प्राप्त शिक्षा आदि में अप्राप्त, स्वयं वीप्सा आदि के अर्थ में द्वि. वि. में अन्त होने वाले परिकल्पित, स्वयं विचिन्तित, आत्मप्रत्यक्ष से जाना हुआ - नाम के साथ स्वतन्त्र अ. के रूप में प्रयुक्त - अभिभू हि सो अनभिभूतो, सक्खिधम्ममनीतिहमदस्सी, सु. देवदत्तो पसन्नो बुद्ध अनु, मो. व्या. 2.12; घ. साथ एवं नि. 940; न इतिहितिहं ... सामं सयमभिजातं किसी से कम होने के अर्थ में स्वतन्त्र अ. के रूप अत्तपच्चक्खधम्म अद्दसि, महानि. 295; दिढे धम्मे अनीतिह, में प्रयुक्त - अनु उपालित्थेरं विनयधरा, मो. व्या. 2.14-15; सु. नि. 1059; अनीतिहन्ति न इतिहीतिह, चूळनि. 67; ङ. अट्ठ. में यदा कदा निषे. अन उप. के स्पष्टीकरण अनीतिहन्ति अत्तपच्चक्खं, सु. नि. अट्ठ. 2.281.
हेतु भी प्रयुक्त - अनभावंकताति, अयव्हेत्थ पदच्छेदो अनीवरण त्रि., नीवरण का निषे., ब. स. [अनीवरण], अनुअभावं कता ..., पारा. अट्ठ. 1.97; च. यत्र तत्र अनुनीवरणों से मुक्त - सत्तिमे, भिक्खवे, बोज्झङ्गा अनावरणा अनु रूप में द्विरुक्तीकृत, - भावेति वड्डेतीति अनुभावो, अनीवरणा ... स. नि. 3(1).114; अनीवरणाति कुसलधम्मे अनुभावो एव आनुभावो, सारत्थ. टी. 1.42; छ. वीप्सा के ... न नीवरन्ति न पटिच्छादेन्तीति अनीवरणा, स. नि. अट्ठ. अर्थ में - अनुपेक्खेति दस्सेति अनुदस्सेति, चूळव. 174. 3.187.
अनु' त्रि., अणु के लिये अप., सूक्ष्म, बारीक - तत्थेव अनीवरणीय त्रि., नीवरणीय का निषे०, तत्पु. स. पुञकम्मम्हा अनुम्हा विपतुं फलं, सद्धम्मो. 271. [अनीवरणीय], क्लेशों द्वारा दुष्प्रभावित न होने वाला विशुद्ध अनु अच्छरिय त्रि., (अनच्छरिय के व्याख्यान हेतु प्रयुक्त चित्त धर्म, कुशल धर्म - अनीवरणिया धम्मा, ध. स. पृ. 10; शब्द), अक्षर-संविधान से मुक्त, स्वतः-स्फूर्त - अनच्छरियाति चत्तारो मग्गा अपरियापन्ना, चत्तारि च सामञ्जफलानि, अनु अच्छरिया, महाव. अट्ठ. 233; तत्थ पदच्छेदो अनुअभावं निब्बानञ्च - इमे धम्मा अनीवरणिया, ध. स. 1506. गता अनभावं गताति, यथा अनुअच्छरिया अनच्छरियाति, अनीहट/अनीहत त्रि., नीहट का निषे., तत्पु. स. [अनिर्हत], पारा. अट्ट, 1.97. नहीं हटाया गया, दूर न ले जाया गया, अदूरीकृत, अक्षिप्त, अनु अनु आहरित्वा अनु + आ + Vहर का पू. का. कृ. - ज्झान त्रि., ब. स. [अनिर्हत-ध्यान], वह, जिसका ध्यान [अन्वाहृत्य], सम्यक् रूप से विचार-विमर्श कर सुचिन्तितहटा हुआ न हो अथवा निराकृत न हो, अनिराकृत ध्यान रूप में ग्रहण कर - अथ वा सब चेतसो समन्नाहरित्वाति वाला - अनिराकतज्झानाति बहि अनीहतज्झाना सब्बस्मा चित्ततो देसनं सम्मा अनु अनु आहरित्वा, उदा. अविनासितज्झाना वा, इतिवु. अट्ठ. 147; महानि. अट्ठ. 328. अट्ठ. 316.
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