________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनामिसगरु
215
अनाराधक
02
मर
अनामिसगरु त्रि., लाभ-निरपेक्ष - अनामिसगरु हुत्वा धम्म
देसेय्य पण्डितो, सद्धम्मो. 521. अनायक त्रि., नायक का निषे.. ब. स. [अनायक]. नायकरहित, पथ प्रदर्शक विहीन, निर्देशकविहीन - उद्धरन्तो महादुग्गा, विप्पनढे अनायके, अप. 2.16. अनायतन नपुं., आयतन का निषे०, तत्पु. स. [अनायतन], अनुपयुक्त स्थल, अविहित क्षेत्र - पण्डिता अनायतनेपि वीरियं अकसु, जा. अठ्ठ. 1.178; 1.180; अनत्थकुसलेनाति अनत्थे अनायतने कुसलेन, जा. अट्ठ. 1.244; अनायतनं वुच्चति लाभयससुखानं अनाकरो दुस्सील्यकम्म, जा. अट्ठ. 5.119; - भूत त्रि., स्वभाव से ही अनाचार कर्म करने वाला, स्वभाव से ही दुराचारी, दुराचारी प्रकृति वाला - अनायतनसीलस्साति ... दुस्सील्यकम्मेन समन्नागतस्स, अनायतनभूतमेव दुस्सीलपुग्गलं सेवन्तस्स, जा. अट्ट. 5.119. अनायस त्रि., निषे., ब. स. [अनाश्रय], सुखविरहित, अभागा, अयोमय नरकतुल्य, सुख की उत्पत्ति के लिये अनुपयुक्त - उज्जङ्गलं तत्तमिवं कपालं, अनायसं परलोकेन तुल्यं, वि. व. 1232; अनायसन्ति नत्थि एत्थ आयो सुखन्ति अनायं, ततो एव जीवितं सीयति विनासेतीति अनायसं, अथ वा न आयसन्ति अनायसं वि. व. अट्ट, 285. अनायाचित/अयाचित त्रि., आयाचित अथवा याचित का निषे., तत्पु. स. [अनायाचित], अप्रार्थित, अयाचित, वह, जिसकी याचना न की गयी हो, अनभ्यर्थित - अनानपट्ठोति अपट्टो अपुच्छितो अयाचितो अनज्झसितो अपसादितो, महानि. 48; अनग्झिट्टो वाति थेरेहि धम्म भणाही ति अनाणत्तो अनायाचितो च, महानि. अट्ठ. 270. अनायास त्रि., आयास का निषे., तत्पु. स. [अनायास]. आयास-विहीन, दुःख-रहित - उपसन्तो अनायासो, थेरगा. 10083; अप्पकोधो अनायासो, अप. 1.344. अनायुस्स त्रि., आयुस्स का निषे०, तत्पु. स. [अनायुष्य], दीर्घायु को प्रदान न करनेवाला, दीर्घ जीवन प्रदान न करने वाला, आयु-उपच्छेदक - पञ्चिमे, भिक्खवे, धम्मा अनायुस्सा, अ. नि. 2(1).136; अनायुस्साति आयुपच्छेदना, न आयुववना, अ. नि. अट्ठ. 3.47. अनायूह त्रि., आयूह का निषे., तत्पु. स. [बौ. सं. अनायूह/ अनाव्यूह], प्रयत्नरहित, प्रयासरहित, प्रयत्न न करने वाला, वह, जिसके विषय में प्रयास नहीं किया गया है - अप्पतिटुं अनायूह, तिण्णं लोके विसत्तिकान्ति, स. नि. 1(1).2.
अनायूहन नपु., आयूहन का निषे., तत्पु. स. [अनायूहन/अनाव्यूहन], अप्रयास, प्रयासरहित्य, प्रयत्नाभाव, अध्यवसायरहित स्थिति - आयूहने आदीनवं दिस्वा अनायूहने चित्तं पक्खन्दति, पटि. म. 387; अकरणाति अनायूहनेन, अ. नि. अट्ठ. 2.196. अनारक्ख पु., आरक्ख का निषे., तत्पु. स. [अनारक्ष], क. आरक्षा का अभाव, असंवर, असंरक्षण - या इमेसं छन्न इन्द्रियानं अगुत्ति अगोपना अनारक्खो असंवरो, ध. स. 1352; इमेसं छन्नं इन्द्रियानं या अगुत्ति या अगोपना यो अनारक्खो यो असंवरो, अकथनं, अपिदहनन्ति अत्थो, ध. स. अट्ठ. 421; पु. प. 127; ख. त्रि., निषे०, ब. स., असुरक्षित, असावधान, असचेष्ट, अजागरूक - ... मुट्ठस्सतीनं अनारक्खानं विहरतं न होति पच्चत्तं सहधम्मिको समणवादो, अ. नि. 1(1).203. अनारतं अ. [अनारत], लगातार रूप में, अनवरत रूप में, अनवच्छिन्न रूप में - सततं निच्चमविरतानारतसन्ततमनवरतं च धुवं, अभि. प. 41. अनारद्ध त्रि., आरद्ध का निषे., ब. स. [अनारब्ध], वह, जिसका प्रारम्भ अभी तक नहीं हुआ है, अनागत, भविष्य, भावी - अनारखे अत्थे, मो. व्या. सू. 6.2 पर वण्णना.. अनारम्भ' त्रि., आरम्भ का निषे, ब. स. [अनारम्भ], हानि, भय तथा संकट से रहित -- तेहि भिक्खूहि वत्थु देसेतब्बअनारम्भं सपरिक्कमनं पारा. 229; सारम्भ अनारम्भन्ति सउपद्दवं अनुपद्दवं, पारा. अट्ठ. 2.141. अनारम्भ' पु., निषे. तत्पु. स. [अनारम्भ], कर्म का अप्रारम्भ, आरम्भ-रहित अवस्था अर्थात् निर्वाण - सब्बारम्भं पटिनिस्सज्ज, अनारम्भे विमुत्तिनो, सु. नि. 750; अनारम्भे विमुत्तिनोति अनारम्भे निब्बाने विमुत्तरस, सु. नि. अट्ठ. 2.203. अनारम्मण त्रि., आरम्भण का निषे०, ब. स. [अनालम्बन], आलम्बन-रहित, रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पृष्टव्य एवं धर्म नामक छ: प्रकार के चित्त के विषयीभूत आलम्बनों से रहित, ऐसे धर्म, जो स्वयं में चित्त के आलम्बन हैं परन्तु जिनके अपने कोई आलम्बन नहीं है- रूपञ्च निब्बानञ्च अनारम्मणा, ध. स. 1422; नत्थि एतेसं आरम्मणन्ति अनारम्मणा, ध. स. अट्ठ. 96; सब्बं रूपं न हेतु ... अव्याकतं, अनारम्मणं, विभ. 14; अरूपधम्मानं विय कस्सचि आरम्मणस्स अग्गहणतो नास्स आरम्मणन्ति अनारम्मणं, अभि. ध. वि. टी. 180. अनाराधक त्रि., आराधक का निषे., तत्पु. स. [अनाराधक]. भिक्षुओं के मन को सन्तुष्ट न कर सकने वाला, परीक्ष्यमाण
For Private and Personal Use Only