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अनानुपस्सी
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अनापाद अनानुपस्सी त्रि., अनुपस्सी का निषे., तत्पु. स. या अपराधों से सर्वथा मुक्त (भिक्षु) - सुद्धानं भिक्खून [अनानुपश्यिन्], शा. अ. उचित विचार-विमर्श न करने अनापत्तिकानं महाव. 143; - कर पु, आपत्ति या अपराध को वाला, अनुचिन्तन न करने वाला, ला. अ. रूप आदि धर्मो उत्पन्न न करने वाला - अन्तोद्वादसहत्थट्ठो, अनापत्तिकरो में 'मैं' और 'मेरे' को न देखने वाला - उद्धं अधो सब्बधि सिया विन. वि. 46; एक दुस्ससाणिद्वारमेव अनापत्तिकर विप्पमुत्तो, अयंहमस्मीति अनानुपस्सी, उदा. 157; .... पारा. अट्ठ. 1.225; - दिहि त्रि., निषे., ब. स., आपत्ति को अनानुपस्सीति ... रूपवेदनादीसु अयं नाम धम्मो अहमस्मीति अनापत्ति माननेवाला - तस्सा आपत्तिया अनापत्तिदिष्टि दिट्ठिमानमञनावसेन एवं नानुपस्सति, उदा. अट्ठ. 294. होति. महाव. 457; तस्सा आपत्तिया अनापत्तिदिट्ठि अहोसि. अनानुपुट्ठ त्रि., अनुपुट्ठ का निषे., तत्पु. स. [अनानुपृष्ठ]. जा. अट्ठ. 3.429; - बहुल त्रि.. ब. स., अनपराधी प्रकृति क. वह, जिस से प्रश्न नहीं किया गया - यो अत्तनो वाला, निरपराध स्वभाव वाला - एकच्चो भिक्ख अधिच्चापत्तिको सीलवतानि जन्तु, अनानुपुट्ठोव परेस पाव, सु. नि. 788; होति अनापत्तिबहुलो, म. नि. 2.115; - भाव पु., अनानुपुट्ठोति अपुच्छितो, सु. नि. अट्ठ. 2.216; ख. पुनः निरपराधता, निर्दोषता, निष्पापता - वार पु., पारा. अट्ठ के पुनः पूछा गया - यो अत्तनो दुक्खमनानपट्टो, पवेदये जन्तु प्रथम भाग के एक खण्ड का शीर्षक, पारा. अट्ठ. 1.214अकालरूपे, जा. अट्ठ. 4.202.
216; - सञी त्रि., आपत्ति या अपराध के प्रति संज्ञावान अनानुयायी त्रि., अनुयायी का निषे., तत्पु. स. [अनानुयायी], न रहनेवाला - यो च आपत्तिया अनापत्तिसञी. अ. नि. 1(1).102 क. शा. अ. अनुगमन न करने वाला, ख, ला. अ. अनापन्न त्रि., आपन्न का निषे०, तत्पु. स. [अनापन्न]. विषयभोगों के प्रति अनासक्त होकर कामभोगों में प्रवेश न अप्राप्त, अप्रभावित, अस्पृष्ट, अछूता - अनापन्नो वा सङ्घादिसेसं करने वाला, अनासक्त, राग, द्वेष एवं मोह से मुक्त - धम्म, अ. नि. 1(2).277; अनुस्सुकाति कत्थचि उस्सुक्क साविमोक्खे परमे विमुत्तो, तिट्टेय्य सो तत्थ अनानुयायी, अनापन्ना, अ. नि. अट्ठ. 3.179. सु. नि. 1078; अनानुयायीति सो पुग्गलो तत्थ अनापर/नापर त्रि., अपर का निषे., ब. स., वह, जिससे आकिञ्चआयतनब्रह्मलोके अविगच्छमानो तिट्ठय्य, सु. नि. अधिक उत्कृष्ट कुछ भी न हो, अतिशय श्रेष्ठ, अद्वितीय, अट्ठ. 2.284; अनानुयायीति ... अरज्जमानो अदुस्समानो अनुपम - कथं कथा च यो तिण्णो विमोक्खो तस्स नापरो, अमुरहमानो अकिलिस्स - मानोति, चूळनि. 95.
सु. नि. 1095; अकिञ्चनं अनादानं, एतं दीपं अनापरं सु. अनानुरुद्ध त्रि., अनुरुद्ध का निषे [अनानुरुद्ध], वह, जो किसी के नि. 1100; अनापरन्ति अपरपटिभागदीपविरहितं, सेट्ठन्ति प्रति राग या आसक्तिभाव न रखता हो, रागद्वेषविरहित, उपेक्षावान् वुत्तं होति, सु. नि. अट्ठ. 2.289. - फस्सद्वयं सुखदुक्खे उपेक्खे, अनानुरुद्धो अविरुद्ध केनचि, अनापाथ त्रि., आपाथ का निषे., ब. स. [अनापाथ], पहुंच स. नि. 2(2).77; अनानुरुद्धो अविरुद्धो केनचीति केनचि सद्धिं के बाहर, पकड़ में न आने वाला - अनिदस्सनो ति नेव अनुरुद्धो न विरुद्धो भवेय्य, स. नि. अट्ठ. 3.27.
चक्खुविआणस्स अनापाथो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).7; अनानुलोम त्रि., अनुलोम का निषे., तत्पु. स. [अनानुलोम], अजेसं अनापाथो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).307; - गत विपरीत, अनुचित, अनुपयुक्त, विलोम - हीनं कायं उपपन्ना त्रि., इन्द्रियों द्वारा अग्राह्य, पकड़ के बाहर - अनापाथगतो. भवन्तो, अनानुलोमा भवतूपपत्ति, दी. नि. 2.201.
भिक्खवे, लुद्दस्स, म. नि. 1.234; अनापाथगता रूपादयोपि, अनापज्जन नपुं.. आपज्जन का निषे., तत्पु. स. ध. स. अट्ठ. 117; - गतत्त निषे., भाव. [-गतत्व]. [अनापदयमान], अप्राप्ति, किसी अन्य के साथ स्थिति का अग्राह्यत्व, इन्द्रियगोचरता का सर्वथा अभाव - तं रूपानं न होना - अपरितस्सायाति तासं अनापज्जनत्थाय, अ. नि. अनापाथगतत्तापि अाविहितस्सपि न होति, म. नि. अठ्ठ. अट्ठ. 3.183.
(मू.प.) 1(2).128. अनापत्ति स्त्री., आपत्ति का निषे. [अनापत्ति], अपराधराहित्य, अनापाद त्रि., ब. स., अविवाहित, अपरिणीत, नहीं ले जाया निर्दोषता, अदण्ड्यता, भिक्षु की विनयविरुद्ध पापकर्मों से गया - बहूसु वत सन्तीसु, अनापादासु इस्थिसु, जा. अट्ठ. 4. रहित होने की स्थिति, निरपराधता - अनापत्ति आपत्तीति 158; अनापादासूति ... आपादानं आपादो, परिग्गहोति दीपेति, महाव. 476; अनापत्ति, भिक्खवे, असादियन्तिया ति. अत्थो, नत्थि आपादो यासं ता अनापादा, अञहि पारा. 40; - क त्रि, निषे०, ब. स. [अनापत्तिक], आपत्तियों अकतपरिग्गहासूति अत्थो, जा. अट्ठ. 4.160.
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