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अनापुच्छा
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अनामिका
अनापुच्छा अ., आ + vपुच्छ के पू. का. कृ. का निषे. अथवा लोकस्मिहि अनमतवानं असुसानं नाम नत्थीति अत्थो, आपुच्छा के निषे. का संक्षिप्तीकृत तृतीयान्त रूप, बिना पूछे तदे.. ही, बिना ध्यान दिये ही, उपेक्षापूर्वक - न उपज्झायं । अनामन्त/अनामन्ता अ., आ + vमन्त के पू. का. कृ. का अनापुच्छा एकच्चस्स पत्तो दातब्बो, महाव. 55; न, भिक्खवे, निषे. [अनामन्त्र्य], अनुमति प्राप्त न करके, परामर्श या उपज्झाये अनापुच्छा आवरणं कातब्ब, महाव. 107; सो अनुमोदन प्राप्त न करके, बिना पूछे ही, बिना आज्ञा लिए पुग्गलो अनापुच्छा पक्कमितब्बं म. नि. 1.152.
ही- अनामन्त कतं कम्म, तं पच्छा अनुतप्पती ति, जा. अठ्ठ. अनापुच्छित त्रि., आ + पुच्छ के भू. क. कृ. का निषे. 7.157; अनामन्तोति रहो नन्दादेविया सद्धि मन्तेन्तेपि मयि [अनापृष्ट], बिना पूछा हुआ, नहीं कहा गया, बिना अनुमति अजानापेत्वा सहसाव पविसति, जा. अट्ठ. 6.307. वाला - अनापुच्छिते अपुच्छितसा पक्कमति, पाचि. 373. ___अनामन्तचार पु., अनुमति प्राप्त किये बिना भिक्षाटन - अनाबाध' पु., आबाध का निषे०, तत्पु. स. [अनाबाध], अत्थतकथिनानं वो, भिक्खवे, पञ्च कप्पिस्सन्ति -
बाधा का अभाव, कष्ट का अभाव, सौभाग्य, सुखद स्थिति- अनामन्तचारो, असमादानचारो, महाव. 331; तत्थ ..... डंसमकसादीहि गुन्नं अनाबाधं सु. नि. अट्ठ. 1.25. अनामन्तचारोति याव कथिनं न उद्धरियति, ताव अनामन्तेत्वा अनाबाध त्रि., निषे., ब. स. [अनाबाध], निर्बाध, बाधारहित, चरणं कप्पिस्सति, महाव, अट्ठ. 366. विघ्नरहित, अनुत्पीड़ित - अक्खतन्ति वा अनाबाधं अनुप्पीळं अनामय त्रि., आमय का निषे., ब. स. [अनामय]. क. अनन्तरायेनाति अत्थो, वि. व. अट्ठ. 298.
स्वस्थ, शोकरहित, दुःखरहित, नीरोग - ओदनं वा अनामयो, अनाभतोदक त्रि., ब. स. [अनाहतोदक], वह, जो जल उत्त. वि. 945; सा पुचकामा सुखिनी अनामया, महाव. नहीं लाया है - अभिन्नकट्ठोसि अनाभतोदको, अहापितग्गीसि 385; अनामयाति अरोगा, महाव. अट्ठ. 385; ख. नपुं.. असिद्धभोजनो, जा. अट्ठ. 5.192.
स्वास्थ्य, आरोग्य - कुसलानामयारोग्यं, अभि. प. 331; अनाभोग पु., आभोग का निषे., तत्पु. स. [अनाभोग], क. कुसलञ्चेव नो राज, अथो राज अनामयं जा. अट्ठ. 5.316; रुचि का अभाव, ध्यान का अभाव, चित्तविक्षेप - यस्मा च तत्थ कुसलन्ति आरोग्य, इतरं तस्सेव वेवचनं, जा. अट्ठ. हितुपसंहारअहितापनयनसम्पत्तिमोदनअनाभोगवसेन चतुब्बि- 4.386. धोयेव सत्तेसु मनसिकारो, ध. स. अट्ठ. 240; ख. त्रि., भोग अनामसित त्रि., आमसित का निषे., तत्पु. स. [अनामृष्ट], न करने वाला, अनासक्त - अनावट्टेन्तस्स होति ... क. अस्पृष्ट, नहीं छुआ गया, ख. वह, जो विचाराधीन नहीं अनाभोगस्स होति, कथा. 286; अनावट्टिनो अनाभोगो न है, विचार का अविषय - पुब्बे अनामसितखेत्तविसेसं अत्तनो होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).374.
दानमयं पुझं वत्वा ..., वि. व. अट्ठ. 91. अनामक त्रि., ब. स. [अनामक], नामरहित, बिना नाम ___ अनामसितब्ब त्रि., आ + /मस के सं. कृ. का निषे. वाला, बेनाम - यस्स नामं न जानन्ति तम्पि अनामको [अनाम्रष्टव्य], अविचारणीय, अपरामश्य, विवेचन न करने नामाति वदन्ति, ध. स. अट्ठ. 413-414.
योग्य - अनामासानि आमसिन्ति अनामसितब्बढ़ानानि आमसिं अनामट्ठ त्रि., आमट्ठ का निषे०, तत्पु. स. [अनामृष्ट], जा. अट्ठ. 2.299. अभुक्त, किसी दूसरे के द्वारा अगृहीत, नहीं खाया हुआ - अनामास त्रि., आमास का निषे., तत्पु. [अनामृष्य], परामर्श गोणा अनामट्ठतिणं खादिस्सन्ति, मनुस्सानं अनामटुं सूपेय्यपण्णं न करने योग्य, विवेचन के अयोग्य - अहं कपिस्मि भविस्सति, जा. अट्ठ. 1.107; अपिच अनामपिण्डपातो ... दुम्मेधो, अनामासानि आमसिं, जा. अट्ठ. 2.299; - दुक्कट इस्सरस्सापि दातब्बो, पारा. अट्ठ. 2.61 (अपब्बजितस्स नपुं, [अनामृष्यदुष्कृत], प्रतिषिद्ध धर्म के सेवन से उत्पन्न हत्थतो लद्धो अत्तना अञ्जन वा पब्बजितेन अग्गहितअग्गो दोष, पाचित्तिय के अन्त. विशेष प्रकार का अपराध या पिण्डपातो, सारत्थ. टी. 2.244).
आपत्ति - केवलं लोलताय गण्हन्तस्स अनामासदुक्कट सारस्थ. अनामत/अनमत त्रि., आमत का निषे., तत्पु. स. [अनामृत], टी. 1.64. मृत्यु का अविषयीभूत, न मरने वाला, अमृत्यु का स्थल - अनामिका स्त्री., [अनामिका], अनामिका, कानी तथा बिचली अस्मिं पदेसे दवानि, नत्थि लोके अनामतं, जा. अट्ठ. 245; अंगुली के बीच की अंगुली, बिना नाम वाली एक अंगुली - तत्थ अनामतन्ति मतट्टानं ... अनमत न्तिपि पाठो, मज्झिमानामिका चापि कनिट्ठा ति कमा सियं अभि. प. 266.
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