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अनवहित
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अनवसीदन अयम्यि वादो एकस्मि सभावे अनवट्ठानतो इतो चितो च लोकायतमहापुरिसलक्खणेसु अनवयो, अवयो न होतीति
सन्धावति, गाहं न उपगच्छतीति, सारत्थ. टी. 1.130. वुत्तं होति, सु. नि. अट्ठ. 2.153; ... अम्बठ्ठो नाम माणवो अनवहित त्रि., अव + Vठा के भू, क. कृ. का निषे. ... लोकायतमहापुरिसलक्खणेस अनवयो.... दी. नि. 1.77; [अनवस्थित], अस्थिर, अनवस्थित, वह, जो टिकाऊ न हो, अनवयोति इमेसु लोकायतमहापुरिसलक्खणेसु अनूनो अस्थायी, अचिरकालिक- मायामरीचिसदिसं इत्तरं अनवद्वितं. परिपूरकारी, अवयो न होतीति .... दी. नि. अट्ठ. 1.201; म. अप. 2.203; थेरीगा. अट्ठ. 164; भोगा नामेते न सस्सता नि. 2.341; म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.259; मि. प.9; अहं खो अनवद्विता तावकालिका महायगमनीया, पे. व. अट्ठ. 76; - पन ... अनवयो सके आचरियके कुम्भकारकम्मे चारिका स्त्री., कर्म. स., अस्थिर रूप से की गयी चारिका, परियोदातसिप्पो, पारा. 47; अनवयोति अनुअवयो, किसी एक स्थान पर अधिक देर तक न रुककर किया गया सन्धिवसेन उकारलोपो, अनु अनु अवयो, यं यं कुम्भकारेहि भिक्षाटन - दीघचारिक अनवद्वितचारिक अनुयुत्तो च होति कत्तब्बं नाम अत्थि, सब्बत्थ अनूनो..., पारा. अट्ठ. 1.230; रूपस्स दस्सनाय, महानि. 269; अनवद्वितचारिकन्ति द्रष्ट. अवयो; - टि. ट्रॅकनर के अनुसार यह संस्कृत के असन्निट्ठानचरणं, महानि. अट्ठ. 316; - चित्त त्रि., ब. स., अनवयव शब्द से समाक्षर-लोप की प्रवृत्ति के प्रभाव के अस्थिर चित्त वाला, चञ्चल चित्त वाला, अनवस्थित चित्त कारण एक वकार के लोप कर देने से पालि में प्रयुक्त है, वाला - अनवहितचित्तस्स, सद्धम्म अविजानतो, ध, प. 383; द्रष्ट. ट्रॅकनर, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृ. 65-66, पा. अनवद्वितचित्तस्स लहुचित्तस्स दुझिनो, जा. अट्ठ. 3.63; - टि.; दूसरे मत में यह अन + वयस् का संभावित पालिता स्त्री., भाव., चञ्चलता, अस्थिरता, अस्थायित्व - एवं प्रतिरूप है, संभवतः यह अनुवयस का नैरुक्तिक चक्खुस्मि सारज्जन्तस्स चक्खुनो असुभतं अनवद्वितताय प्रक्रियाधारित पालि-प्रतिरूप भी हो सकता है, द्रष्ट. निरुक्त, अनिच्चतञ्च विभावेसि, थेरीगा. अट्ट. 281-282.
6.11. अनवट्ठ/अनवत्थ त्रि., ब. स. [अनवस्थ], अस्थिर, अस्थायी अनवयव पु., अवयव का निषे., तत्पु. स. [अनवयव]. विशेष - परमुद्दिस्स यं दानं अंनवत्थादि दीयते, सद्धम्मो. 217; - रूप से व्याकरणों में प्रयुक्त पद, संकेतक वर्ण, अक्षर, किसी चारिका स्त्री., कर्म. स., अस्थायी रूप से की गई चारिका, वास्तविक शब्द के अंग के रूप आया हुआ वर्ण या किसी एक स्थान पर अधिक देर तक न रुककर किया गया अनुबन्ध - सङ्केतो'नवयवो नुबन्धो, मो. व्या. 1.23. भिक्षाटन - दीघचारिक अनवत्थचारिकं अनुयुत्तो विहरति, अनवरत त्रि., [अनवरत], व्यवधान-रहित, निरन्तर -- सततं अ. नि. 2(1).161; अनवत्थचारिकन्ति अनवत्थानचारिक, अ... निच्चमविरतानारतसन्ततमनवरतं च धुवं, अभि. प. 41. नि. अट्ठ. 3.53; न च पादलोलोति ... अनवसिञ्चनक त्रि., अवसिञ्चनक का निषे. [अनवसेचक], दीघचारिकअनवद्वितचारिकविरतो वा, सु. नि. अट्ठ. 1.92, ऊपर तक उड़ेलने वाला, उड़ेल कर न बहाने वाला - द्रष्ट. अनवचरिका.
अनवसेसकन्ति अनवसिञ्चनकं अपरिस्सावनकं कत्वा, जा. अनवत्थाय अव+Vठा के पू. का. कृ. का निषे. [अनवस्थाय], अट्ठ. 1.382; अनवसेसन्ति अनवसिञ्चनकं अपरिसिञ्चनक उचित विचार न करके - अनिसम्म कतं कम्म, अनवत्थाय कत्वा, महानि. अट्ठ. 362. चिन्तितं, जा. अट्ठ. 4.407; अनवत्थाय चिन्तितन्ति अनवसित्त त्रि., अवसित्त का निषे., तत्पु. स. [अनवसिक्त]. अनवत्थपेत्वा अतुलेत्वा अतीरेत्वा चिन्तितं, जा. अट्ठ. 4.408. अप्रभावित, नहीं भीगा हुआ, अलिप्त, अपयश के छीटों से अनवमत त्रि., अवमत का निषे., तत्पु. [अनवमत], अतिरस्कृत, रहित, बेदाग - अब्यासेकसुखन्ति किलेसेहि अनवसित्तसुखं अनपमानित सम्मानित, सत्कृत, संपूजित - अनवमतेन ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).114. गुणेन याति सग्गं, दी. नि. 3.114; अनवमतेनाति अनवातेन, अनवसीदन नपुं., अवसीदन का निषे०, तत्पु. स. दी. नि. अट्ठ. 3.100.
[अनवसीदन], 1.शा. अ. नीचे या बहुत गहराई तक अनवय त्रि., 1.शा. अ. वह, जिसमें कुछ भी अवयवों अर्थात् जाकर नहीं डूबना, 2.ला. अ. अवसाद या खिन्नता का खण्डों में न हो, समग्र; 2.ला. अ. वह, जो अपरिपक्व वय अभाव, शिथिलता का न होना, सक्रियता - अकुसीतवुत्तीति वाला न हो अर्थात् अनुभव वाला हो - एतेन ठानआसनचङ्कमनादीसु कायस्स अनवसीदनं सु. नि. लोकायतमहापुरिसलक्खणेसु अनवयो, सु. नि. पृ. 166; अट्ठ. 1.97; द्रष्ट, ओसीदन.
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