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अनागन्तु
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अनागमन
2.182, तुल. अनागतरूप; - समागम पु., तत्पु. स., भविष्यत्काल का आगमन, भविष्यत्काल में मिलन, भविष्यत्काल - अम्हं सब्बपति होहि, अनागतसमागमे, अप. 2.261; - सम्बन्ध पु., तत्पु. स., भविष्यत्काल के साथ सम्बन्ध - तस्मा अनागतसम्बन्धं कत्वा, पारा. अट्ट. 2.67; - सुखावह त्रि., ब. स., भविष्य के लिए सुख देने वाला, भविष्य में सुखकारी - नाब्मतीतहरो सोको, नानागतसुखावहो, जा. अट्ठ. 3.145. अनागन्तु पु. आ + गम के कर्तृ. ना. का निषे. [अनागन्त], लौटकर न आने वाला (अनागामी के स्थानापन्न अथवा निर्वचन के रूप में केवल द्वितीयान्त'इत्थत्तं के ही साथ प्रयोगों में प्राप्त) - ... भवयोगयुत्तो अनागामी । होति अनागन्ता इत्थत्तं, इतिवु. 68; ... ब्रह्मा आगन्ता इत्थत्तं यदि वा अनागन्ता इत्थत्तं? म. नि. 2.339; ... सो ततो चुतो अनागामी होति, अनागन्ता इत्थत्तं. अ. नि. 1(1).80. अनागमन नपुं.. [अनागमन], नहीं आ पहुंचना, वापस न
आना, अप्रत्यावर्तन - असुरानं अनागमनत्थाय, जा. अट्ठ. 1.201; कस्सचि अनागमनभावं ञत्वा .... जा. अट्ठ. 1.256%; - दिद्विक त्रि., ब. स. [अनागमनदृष्टिक], कर्मों के प्रभाव से पुनः आगमन न होने की मिथ्या दृष्टि रखने वाला, पुनर्जन्म में विश्वास न रखने वाला - इध ... असप्पुरिसो ... अनागमनदिट्टिको दानं देति, म. नि. 3.703; अनागमनदिछिको देति ..., अ. नि. 2(1).161-162; अनागमनदिद्धिको देतीति कतस्स नाम फलं आगमिस्सतीति न एवं आगमनदिद्धिं न उप्पादेवा देति, अ. नि. अट्ठ. 3.54%B अनागमनदिछिको देतीति न कम्मञ्च फलञ्च सद्दहित्वा देति, अ. नि. अट्ठ. 3.265; - सील त्रि., ब. स. [अनागमनशील], इस लोक में पुनर्जन्म न लेने वाला - अनागामीति पटिसन्धिग्गहणवसेन कामलोकं अनागमनसीलो ..., उदा. अट्ठ. 249. अनागमनीय त्रि., आ + गम के सं. कृ. का निषे. [अनागमनीय], नहीं आगमन योग्य, नहीं स्वीकार करने योग्य, अप्रत्यावर्तनीय - अभब्बो दिद्विसम्पन्नो पुग्गलो अनागमनीयं वत्थु पच्चागन्तुं अ. नि. 2(2).139; अनागमनीयं वत्थुन्ति अनुपगन्तब्बं कारणं, पञ्चन्नं वेरानं द्वासडिया च दिद्विगतानमेतं अधिवचनं, अ. नि. अट्ठ. 3.143. अनागवन्तु त्रि., आगवन्तु का निषे. [अनागस्]. पापरहित, दोषरहित, निर्दोष - महानागं अनागवा, म. वं. 37.115,
तुल०; कथं आगुं न करोतीति - नागो? आगू वुच्चन्ति पापका अकुसला धम्मा ..., महानि. 147. अनागामी पु., आगामी का निषे., तत्पु. स. [अनागामी], 1.
शा. अ. पुनः लौटकर वापस न आने वाला, 2. ला. अ. बुद्ध के आर्यमार्ग में प्रविष्ट वह आर्यपुदगल, जिसने स्रोतापत्ति फल की अवस्था का साक्षात्कार कर प्रथम तीन संयोजनों का प्रहाण कर लिया है, सकृदागामी-मार्ग फल की अवस्था प्राप्त कर राग एवं द्वेष नामक दो संयोजनों को शिथिल कर लिया है तथा आर्यमार्ग की तृतीय अवस्था को प्राप्त कर राग एवं द्वेष का पूर्ण रूप से प्रहाण कर लिया है. उसे ब्रह्मा के लोक में जन्म प्राप्त होता है, वह इस मानवलोक में उत्पत्ति ग्रहण नहीं करता है - असुको भिक्खु अनागामी, पारा. 107; अनागामीति पटिसन्धिग्गहणवसेन कामलोकं अनागमनसीलो ततियफलट्ठो, उदा. अट्ठ. 249; ततियमग्गपचं भावेत्वा अनागामी नाम होति, विसुद्धि. 2.351; पटिसन्धिवसेन इध अनागमनतो अनागामी, विसुद्धि. महाटी. 2.499; - अरियसावक पु., अनागामी-फल की अवस्था को प्राप्त बुद्ध का आर्य श्रावक - अनागामिअरियसावकानम्हि समादानवसेन उपोसथकम्मं नाम नत्थि, ध. प. अट्ठ. 1.213; - उपासक पु.. अनागामी-फल की अवस्था को प्राप्त बुद्ध का गृहस्थ शिष्य - छत्तपाणि नामेको अनागामी उपासको .... जा. अट्ठ. 1.365; - उपासिका स्त्री., अनागामीफल की अवस्था को प्राप्त बुद्ध की गृहस्थ शिष्या - घरणी नाम इद्धिमन्ती एका अनागामिउपासिका, ध. प. अट्ट, 2.120; - मिता स्त्री., भाव. [अनागामिता], अनागामी की अवस्था - दिवेव धम्मे अञआ, सति वा उपादिसेसे अनागामिताति, सु. नि. (पृ.) 190; अनागामिताति अनागामिभावो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).311; - त्थे रवत्थु पु., ध, प. अट्ठ. 2.169 में आगत एक कथा का शीर्षक; - फल नपुं.. तत्पु. स., श्रमण-जीवन के चार फलों में से तीसरा फल, अनागामी मार्ग पर चलने वाले आर्यश्रावक द्वारा प्राप्तव्य फल-तं भगवा ब्याकरिस्सति सोतापत्तिफले ... अनागामिफले वा.... महाव. 384; मि. प. 33; 303; छन्दरागे उप्पादिते अनागामिफलं पटिविद्ध भविस्सति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.10; - फलसच्छिकिरिया स्त्री., तत्पु. स., अनागामीफल का साक्षात्कार - अनागामिफलसच्छिकिरियाय पटिपन्नो, चूळव. 397; अनागामिफलसच्छिकिरियाय पटिपन्ने दानं देति, म. नि. 3.305; - फलुप्पत्ति स्त्री.. तत्पु. स., अनागामी फल की
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