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अनस्स
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अनागत
वाणी-प्रयोग में उग्रता या कर्कशता का अभाव - अनसुरोपोति असुरोपा वुच्चति न सम्मारोपितत्ता दुरुत्तवचनं तप्पटिपक्खतो अनसुरोपो सुरुत्तवाचाति..., ध. स. अट्ठ. 417; या खन्ति खमनता अधिवासनता अचण्डिक्कं अनसुरोपो..... अयं वुच्चति खन्ति , ध. स. 1348. अनस्स त्रि., अस्स का निषे०, ब. स. [अनश्व], वह, जिसके पास घोड़ा नहीं है - न अस्सो अनस्सो, सद्द. 3.774; क. व्या. 336; - क त्रि., ब. स. [अनश्वक], बिना घोड़े वाला - अनस्सको अस्थको, दीघमद्धानमागतो, जा. अट्ठ. 7.274. अनस्सन-धम्म त्रि., ब. स. [अनश्यनधर्म], अविनाशी प्रकृति वाला, अनश्वर, स्वभाव से ही विनष्ट न होने वाला - किञ्चि सङ्घारगतं अनस्सनधम्म नाम नत्थि, जा. अट्ठ. 4.150. अनस्सय त्रि., ब. स. [अनाश्रय], आश्रय-रहित, बेसहारा, अशरण - अनस्सयन्ति च केचि पठन्ति, सुखस्स अप्पतिवानभूतन्ति, वि. व. अट्ठ. 285, अप. अनायस. अनस्सव त्रि., अस्सव का निषे., तत्पु. [अनाश्रव], आज्ञा न मानने वाला, उद्दण्ड, वचनों को न मानने वाला, अववादशिक्षा को न सुनने वाला - अनस्सवा अवचनकरा पटिलोमवृत्तिनो .... महानि. 27; अनस्सवाति ओवादं असुणमाना, महानि. अट्ठ. 89; महल्लकस्स... हत्थपादापि अनस्सवा होन्ति, ध. प. अट्ट. 1.5; ... कस्सचि बहुम्पि धनं देन्तस्स सेना न सुणाति, सा अनस्सवा नाम होति, अ. नि. अट्ठ. 3.49. अनस्सावी त्रि., अस्सावी का निषे., तत्पु. स. [अनाश्रावी, अनास्रावी], क. शा. अ. न रिसने वाला, रिसकर बाहर की ओर न बह रहा घाव या व्रण - मा तस्स सप्पायानि भोजनानि भुञ्जतो वणो अस्सावी अस्स. म. नि. 3.44; ख. ला. अ. कामभोगों के प्रति कामना से रहित - सातियेसु अनस्सावी.... सु. नि. 859; सातियेसु अनस्सावीति सातवत्थूसु कामगुणेसु तण्हासन्थवविरहितो, सु. नि. अट्ठ. 2.241. अनस्सासक त्रि., अस्सासक का निषे०, तत्पु. स. [अनाश्वासक]. पुनः श्वास को वापस लाने में अक्षम, म्रियमाण व्यक्ति, वह, जिसकी श्वास फिर वापस न लौट सके- सो भिक्खु उत्तन्तो अनस्सासको कालमकासि, पारा. 103; अनस्सासकोति निरासासो, पारा, अट्ठ. 2.63. अनस्सासिक त्रि., अस्सासिक का निषे., तत्पु. स. [बौ. सं. अनाश्वासिक], आश्वासन न देने वाला, अविश्वसनीय, प्रोत्साहन न देने वाला - एवं अनस्सासिका खो, आनन्द, सङ्घारा, दी. नि. 2.146; अनस्सासिकाति एवं सुपिनके पीतपानीयं विय अनुलित्तचन्दनं विय च अस्सासविरहिता,
दी. नि. अट्ठ. 2.204; ... चत्तारि च अनस्सासिकानि ब्रह्मचरियानि अक्खातानि, म. नि. 2.192. अनहात त्रि., नहात का निषे., तत्पु. स. [अस्नात, न नहाया हुआ - ... भगवा अनहातोव गन्चा .... म. नि. अट्ट. (मू.प.) 1(2).42. अनाकप्पसम्पन्न त्रि, तत्पु. स. [अनाकल्पसम्पन्न]. वह,
जो उचित रूप में तैयार नहीं है, फूहड़, असामाजिक रूप में वेशभूषा धारण करने वाला - तेन खो पन ... दुन्निवत्था .... अनाकप्पसम्पन्ना पिण्डाय चरन्ति ..., महाव. 50; अनाकप्पसम्पन्नाति न आकप्पेन सम्पन्ना, समणसारूप्पाचारविरहिताति, महाव. अट्ठ. 247. अनाकर पु.. आकर का निषे., तत्पु. स. [अनाकर], अस्थान, अपात्र, अनुपयुक्त आधार - अनायतनं वुच्चति लाभयससुखानं
अनाकरो दुस्सील्यकम्म .... जा. अट्ठ. 5.119... अनाकिण्ण त्रि., आकिण्ण का निषे., तत्पु. स. [अनाकीर्ण]. नहीं भरा हुआ, अपरिपूर्ण, भीड़भाड़ से रहित, शान्त, खाली - अप्पसद्दमनाकिण्णं, नानाचङ्कमभूसितं, अप. 2.216; अनाकिण्णा गहढहि, मिगसङ्घनिसेविता, थेरगा. 1072; अनाकिण्णाति असंकिण्णा असम्बाधा, थेरगा. अट्ठ. 2.384, द्रष्ट, आकिण्ण. अनाकुल त्रि., आकुल का निषे०, तत्पु. स. [अनाकुल]. शा. अ. नहीं भरा हुआ, भीड़भाड़-रहित, बहुलता से रहित - समाधिस्मिं पुमे एकग्गो नाकुले, अभि. प. 1035; अनाकुले तत्थ नगे रमिस्सं, थेरगा. 1147; ला. अ. अव्याकुल, चित्त की व्यग्रता से रहित, चित्त की एकाग्रता वाला - ... अलोलोति ... एवं रसविसेसेसु अनाकुलो, सु. नि. अट्ठ. 1.93; - कम्मन्तता स्त्री., भाव., स्थिर अथवा अनुदविग्न चित्त की क्रियाशीलता, शान्त मन के साथ काम करने की दशा- ... अनाकुलकम्मन्तताय धनधादिसमिद्धि पापुणन्ता .... खु. पा. अट्ठ. 125. अनागत त्रि., आगत का निषे., तत्पु. स. [अनागत]. 1. भविष्यत्काल, कार्यशीलता को अप्राप्त - अतीतेसु अनागतेसु चापि .... सु. नि. 375; अनागतेसूति पवत्तिं अप्पत्तेसु पञ्चक्खन्धेसु एव, सु. नि. अट्ठ. 2.88; अनागतम्हि कालम्हि थेरगा. 950; 2. वर्तमान क्षण तक नहीं पहुंचा हुआ, इस समय तक अप्राप्त - अनागतं यो पटिकच्च पस्सति .... थेरगा. 547; तत्थ अनागतन्ति न आगतं, अविन्दन्ति, अत्थो, थेरगा. अट्ठ. 2.1583; किन्ति अनागता च अरहन्तो विजितं आगच्छेय्यु.., दी. नि. 2.58; मि. प. 123; 3. अकथित,
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