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अनवसेक
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अनसुरोप अनवसेक त्रि., अवसेक का निषे०, तत्पु. स. [अनवसेक], आयति अनवस्सवाय पटिपज्जेय्याथ, चूळव. 196; दी. नि. ऊपर होकर न बहने वाला, बाहर की ओर न छलक रहा, 3.195; एवमेतस्स पापकस्स विवादमूलस्स आयतिं अनवस्सवो अवसेकरहित - समतित्तिकं अनवसेसकं तेलपत्तं यथा होति, अ. नि. 2(2).50. परिहरेय्य, जा. अट्ठ. 1.382; जा. अट्ठ. 3.206, अप. अनवसेस. अनवस्सुत त्रि., अवस्सुत का निषे०, तत्पु. [अनवस्रुत], 1. अनवसेस त्रि., अवसेस का निषे., ब. स. [अनवशेष], शा. अ. मलिन पदार्थों के रिसाव रहित, वह, जिसमें से समग्र, सम्पूर्ण, समूचा, वह, जिसमें कुछ भी शेष अथवा करने बाहर निकलकर कोई भी मलिन तत्त्व न बहता हो - योग्य न बच रहा हो, विनय में प्रज्ञप्त अनेक आपत्तियों या उदकपवेसनस्साभावेन अनवस्सुता, जा. अट्ठ. 4.19; 2.ला. भिक्षु के अपराधों में से एक - सावसेसं आपत्तिं अनवसेसा अ. राग एवं क्लेशों से पूरी तरह मुक्त, विशुद्ध चित्त आपत्तीति दीपेति, महाव. 476; अ. नि. 1(1).27; ये केचि - ... रक्खितकायकम्मन्तस्स ... .कायकम्मम्पि अनवस्सुतं पाणभूतत्थि, तसा वा थावरा वनवसेसा, सु. नि. 146; यकिञ्चीति होति, अ. नि. 1(1).295; अनवस्सुतो अपरिडरहमानो. सु. अनियमितवसेन अनवसेसं परियादियति ..., खु. पा. अट्ठ. नि. 63; ... ततो एव तत्थ तण्हावस्सुताभावेन अनवस्सुतो, 136; असेसविरागनिरोधाति ... अग्गमग्गेन अनवसेसअनुप्पा- थेरगा. अट्ट. 1.298; - चित्त त्रि., ब. स., क्लेशों से विनिर्मुक्त दप्पहानाति अत्थो, उदा. अट्ठ. 40; - दोही त्रि., निचोड़ चित्त वाला, विशुद्ध चित्त - अनवस्सुतचित्तस्स अनन्वाहतचेतसो. कर दुह लेने वाला, पूरी तरह से दूध दुहने वाला - ... ध. प. 39; - परियाय पु., स. नि. के एक सुत्त का शीर्षक: गोपालको ... न गोचरकुसलो होति अनवसेसदोही च होति स. नि. 2(2).184, पाठा. अवस्सुत-सुत्त. ..., म. नि. 1.284; - निरोध पु., कर्म स., सम्पूर्ण रूप अनवोसित त्रि., व्यु. संदिग्ध, केवल स. प. के पू. प. के
से निरोध- ... अरियमग्गेन अविज्जाय अनवसेसनिरोधा, रूप में ही प्रयुक्त, अनिर्धारित, अपूर्णीकृत, अनिश्चित - तत्त .... अविज्जाय अच्चन्तसमुग्घाटतोति अत्थो, उदा. अट्ठ. 38; त्रि., ब. स. [अनव्यवसितात्म]. वह, जिसके मन में दृढ़ - परियादान नपुं., कर्म. स., सभी का ग्रहण - याति निश्चय नहीं है, अडिग संकल्प से रहित - हित्वा गिहितं अनवसेसपरियादानं रमन्ति एताय अज्झत्तं उप्पन्नाय बहिद्धा अनवोसितत्तो, थेरगा. 101; अनवोसितत्तोति अनुरूप वा उपकरणभूतायाति रति, खु. पा. अट्ठ. 184; - पहान अवोसितत्तो ... अनुरूपपरिञादीनं अतीरितत्ता नपुं., पूर्ण रूप से छुटकारा - यस्मिं समये लोकुत्तरं झानं अपरियोसितभावो अकतकरणीयोति, थेरगा. अट्ठ. 1.224; - भावेति .... अविज्जाय अनवसेसप्पहानाय ... ध. स. 363, टि. ट्रॅकनर के मत में व्यव + /सो के भू. क. कृ. का निषे., 553; अनवसेसप्पहानायाति ... निस्सेसपजहनत्थाय ध. स. जिसमें निषे. उप. का द्वित्व कर दिया गया है, संभवतः अट्ठ. 281; - फरण नपुं., कर्म. स., पूर्ण रूप से व्याप्त हो संस्कृत के अनवसित तथा अनोसित के परस्पर-व्यामिश्रण जाना या पूरी तरह से फैल जाना - ... अनुक्कमेन से उद्भूत अथवा सं. समा. अनव्यवसित का पालिरूपान्तरण, उपचारप्पनाभेदं ... एकसत्ते वा अनवसेसफरणेन अप्पमाणं अनव्हित त्रि., अव्हित का निषे., तत्पु. [अनाह्वात], वह, मेत्तं चित्तं भावेन्तो, सु. नि. अट्ठ. 2.129; - वचन नपुं.. जिसका आह्वान नहीं किया गया हो, जिसे पुकारा न गया कर्म. स., अप्रमाणता या निसीमता को सङ्केतित करने वाला हो, अनामन्त्रित - ... अनव्हितो ततो आगा, जा. अट्ठ. वचन- तत्थ ये केचीति अनवसेसवचनं, खु. पा. अट्ठ. 3.142; सद्द. 456; अनव्हितो अयाचितो. जा. अट्ठ. 3.142; 198; - व्यापक त्रि., तत्पु., सर्वत्र व्याप्त रहने वाला, अनव्हिता ततो आगु, अप. 1.365; अनभितो ततो आगा. पे. सर्वव्यापी - अनवसेसब्यापको हि अयं निद्देसो, पे. व. अट्ट. व. अट्ट. 54. 61; - साधिगम पु., तत्पु. स., सभी कुछ का ज्ञान, सम्पूर्ण अनसन नपुं., असन का निषे०, तत्पु. [अनशन], उपवास, ज्ञान - ... विपुलाधिगमो च होति, ... अनवसेसाधिगमो च भोजन को न लेना, भूख - तयो रोगा पुरे आसुं. इच्छा होति..., नेत्ति. 75; अत्तना कत्तब्बस्स कस्सचि अनवसेसतो अनसनं जरा, सु. नि. 313; मनुस्सेसु तयो आबाधा भविस्सन्ति, अनवसेसाधिगमो, नेत्ति. अट्ठ. 278.
इच्छा, अनसनं, जरा, दी. नि. 3.55. अनवस्सव त्रि., ब. स. [अनवस्राव], वह, जो बाहर होकर अनसुरोप पु., व्यु., संदिग्ध, संभवतः असुररोप में समाक्षरन बह रहा हो, वह जिसमें बहुत अधिक न भर दिया गया लोप से व्यु., असुरोप का निषे. अथवा अप्ररोष (सं.) का हो, अनभिभूत, अदमित - तस्सेव पापकस्स विवादमूलस्स वर्ण विपर्ययादि से उद्भूत असुरोप से व्यु; शान्ति, सहनशीलता,
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