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अधिगम
लिङ्गन्तरधान, मि. प. 136; अधिगमे, महाराज, अन्तरहिते सुप्पटिपन्नस्सापि धम्माभिसमयो न होति. मि० प० 136; ख. पांच प्रकार के अन्तर्धानों में एक पञ्च अन्तरधानानि नाम, अधिगम अन्तरधानं, पटिपत्ति अन्तरधानं परियत्ति अन्तरधानं, लिङ्गअन्तरधानं, धातु अन्तरधानन्ति, अ. नि. अड. 1.70-71 पटिमानवा त्रि. [ अधिगमप्रतिभानवत्]. प्रतिभान या प्रतिसंवित्ज्ञान को पा चुका, तीन प्रकार के पटिभानों में से एक से युक्त तयो पटिभानवन्तो परियत्तिपटिभानवा, परिपृच्छापटिभानवा, अधिगमपटिभानवा, महानि. 171; द्रष्ट, पटिमान टि. जिसे चार स्मृतिप्रस्थानों, चार सम्यक्-प्रधानों, चार ऋद्धि-पादों, पांच इन्द्रियों, पांच बलों, बोधि के सात अङ्गों, मार्ग के आठ अङ्गों, चार आर्यमार्गों, श्रमण - जीवन के चार फलों, चार प्रतिसंवित्ज्ञानों एवं छः अभिज्ञाओं का ज्ञान हो, उसे अर्थ, धर्म एवं निरुक्ति का ज्ञान हो जाता है, उसे ही अधिगमपटिभानवा कहते हैं, द्रष्ट. महानि, पृ. 171; - प्पिच्छ त्रि, अधिगम + अप्पिच्छ, [ अधिगमाल्पिच्छ], ब० स०, अपनी विशिष्ट आध्यात्मिक उपलब्धि दूसरों को विज्ञापित करने हेतु अत्यल्प इच्छा रखने वाला यो पन सोतापन्नादीसु अज्ञतरो हुत्वा सोतापन्नाविभावं जानापेतुं न इच्छति, अयं अधिगमअपिच्छो नाम. म. नि. अट्ट (मू.प.) 1 (2) .45: द्रष्ट. अप्पिच्छ विपुल - वर-सम्पत्ति स्त्री, कर्म, स. सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक अवस्था या च लोके अधिगमविपुलवरसम्पत्तियो, मि. प. 326 - ब्यत्ति स्त्री, तत्पु स. [ अधिगमव्यक्ति] अधिगम या आध्यात्मिक उपलब्धि का सुस्पष्ट प्रकाशन, अधिगम की अभिव्यक्ति - ताय च आसयसुखिया अधिगमव्यत्तिं.... खु. पा. अड. 84 तञ्च पटिपत्तिया अधिगमव्यत्तितो सत्यं सु. नि. अट्ठ. 2.152; सद्धम्म-पटिरूपक नपुं. शा. अ. सद्धर्म के अधिगम या उच्च आध्यात्मिक अवस्था का प्रतिरूप
द्वे सद्धम्मप्पत्तिरूपकानि अधिगमसद्धम्मपटिरूपकञ्च परियत्तिसद्धम्मप्यतिरूपकञ्च स. नि. अट्ठ. 2.176; ला. अ. विपश्यना-ज्ञान में उपक्लेशों के आ जाने से उदित सद्धर्म का प्रतिरूपक या मिथ्या स्वरूप इदं विपस्सनाआणस्स उपक्किलेसजातं अधिगमसद्धम्मप्पतिरूपकं स.नि. अट्ट. 2.117 सद्धा स्त्री, तत्पु, स. [बौ. सं. अधिगमश्रद्धा ], चार प्रकार की श्रद्धाओं में से वह श्रद्धा जो स्रोतापन्न, सकृदागामी एवं अनागामी फलों में स्थित आर्यपुद्गलों के चित्त में उदित होती है अधिगमसद्धा अरियपुग्गलान दी. नि. अड्ड. 2.107- सम्पदा स्त्री०,
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अधिचित्त
तत्पु. स. [ अधिगमसम्पत्] स्रोतापन्न आदि आर्य-फल की अवस्थाओं की प्राप्ति, आध्यात्मिक अवस्था-विशेष की पूर्णता, भिक्षु द्वारा प्राप्त सात प्रकार की सम्पदाओं में से एक सो आगमसम्पदा, अधिगमसम्पदा, पुब्बहेतु सम्पदा, अतत्थपरिपुच्छासम्पदा, तिरथवाससम्पदा, योनिसोमनसिकारसम्पदा बुद्धपनिस्सयसम्पदाति इमाहि सतहि समन्नागतो, जा. अट्ठ. 4.86 - सम्पन्न त्रि, तत्पु० स० [ अधिगमसम्पन्न ], अधिगम सम्पदा को प्राप्त, आध्यात्मिक अवस्था विशेष की पूर्णता तक पहुंचा हुआ अधिगमसम्पन्नस्सेव अधिगमपिच्छता, सु. नि. अह. 2.193, द्रष्ट अधिगमसम्पदा. अधिगमेतब्ब त्रि. अधिगम का प्रेर, सं. कृ. किसी अन्य के द्वारा प्राप्त कराये जाने योग्य, न अज्ञेन केनचि अधिगमेतब्बन्ति अनज्ञनेय्यं महाव. अड्ड. 243. अधिग्गहीत / अधिग्गहित त्रि, अधि + √गह का भू० क० कृ. [ अधिगृहीत ] पूरी तरह से ग्रहण किया हुआ, पूर्णरूप से अभिभूत पूर्णतया अपने अधीन लिया हुआ ये चरस धम्मा अक्खाता, अधिग्गहिता अ. नि. 1 (2) 32. अधिग्गहिता तुट्ठस्स, इतिवु, 74; देवानमिन्देन अधिग्गहीता, जा. अट्ठ. 3.378; बोधिसत्तेन अधिग्गहितोव, जा० अट्ठ. 5.97. अधिचिण्ण त्रि, अधि + √चर का भू. का. कृ., व्यवहृत, अनुष्ठित, पालित किया हुआ आचरित अधिचिणं विपरावत्तं, दी. नि. 1.7; यं तं अधिचिण्णं चिरकालसेवनवसेन पगुणं. महानि, अट्ट. 229 पाठा. अविचिण्ण अधिचित्त नपुं०, अव्ययी, [ अधिचित्त], उच्च स्तर की चेतना भागी वा भगवा अत्थरसस्स अधिचित्तस्स अधिपञ्ञायाति भगवा, महानि. 104; क. 1. चित्त का प्रणीततम स्तर कामावचरचित्तं पन चित्तं नाम तं उपादाय रूपावचरं अधिचित्तं नाम, तम्पि उपादाय अरूपावचर अधिचित्तं नाम । अपि च सब्बम्पि लोकियचित्तं चित्तमेव, लोकुत्तरं अधिचित्त अ. नि. अड. 2.206: क. 2. समाधि का उच्चतर स्तर, लोकुत्तर चित्त अधिचित्तन्ति चित्तसीसेन निद्दिट्ठो अधिको समाधि, पटि. म. अट्ठ. 2.68; अधिचित्तन्ति विपस्सनापादक समाधि पटि म. अ. 2.70: क.3. समय एवं विपश्यना ध्यान वाला शुद्ध चित्त अधिचित्तं समम्धविपस्सनाचित्तमेद, अ. नि. अड. 2.220 क.4. विपश्यना का संपादक आठ प्रकार का समापत्ति चित्त अथवा चार मार्गों एवं चार फलों में स्थित आर्य पुद्गलों का चित्त विपस्सनापादक असमापत्तिचित्त पन अधिचित्तन्ति
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