________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अधिचेत
167
अधिट्ठान
ततोपि च मग्गफलचित्तमेव अधिचित्तं, महानि. अट्ठ. 94; बिना ही उत्पन्न, आकस्मिक रूप से अथवा संयोगवश ख. अधिचित्तं अ., अव्ययी., चित्त में, चित्त से सम्बन्धित, उत्पन्न - असयंकारो अपरंकारो अधिच्चसमुप्पन्नो अत्ता च चित्त के विषय में - चित्तं अधिकिच्च धम्मा वत्तन्ती ति। लोको च, उदा. 149; अधिच्चसमुप्पन्नोति यदिच्छाय समुप्पन्नो अधिचित्तं, क. व्या. 321; अधिचित्तसिक्खासमादानं, अ. नि. केनचि कारणेन विना उप्पन्नोति .... उदा. अट्ठ. 281; 1(1).261; अधिचित्तमनुयुत्तेनाति दसकुसलकम्मपथवेसन असयंकारं अपरंकारं अधिच्चसमुप्पन्नं सुखदुक्खं, दी. नि. उप्पन्नं चित्तं चित्तमेव, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).401; ग. 3.103; - टि. बुद्धकालीन भारतीय चिन्तन में उत्पत्ति के अधिचित्ते अ., चित्त-विषयक, चित्त में - ... भिक्खं ... विषय में प्रतिपादित स्वतः उत्पत्ति, परतः उत्पत्ति एवं सीताय छायाय निसिन्नं अधिचित्ते यत्तं, म. नि. 2.1233; अहेतुक उत्पत्ति के सिद्धान्तों में अहेतुक उत्पत्ति बतलाने अधिसीले, अधिचित्ते, अधिपआय, महाव. 89; अधिचित्ते च वाला सिद्धान्त ही अधिच्चसमुप्पाद है, तुल०, पटिच्च-समुप्पन्न; आयोगो, एतं बुद्धान सासनं, ध. प. 185; घ. अधि उप. का - समुप्पन्निक पु., ऐसे विचारक जो धर्मों की अहेतुकसमाना.; - प्पवत्ति स्त्री०, कर्म. स. [अधिचित्तप्रवृत्ति], उत्पत्ति के सिद्धान्त का प्रतिपादन करते है; अहेतुकध्यान अथवा समाधि से सम्बन्धित प्रवृत्ति - अरिया हि उत्पत्तिवादी - एके समणब्राह्मणा अधिच्चसमुष्पन्निका, दी. अधिचित्तप्पवत्तिकालेपि .... उदा. अट्ठ. 154; - सिक्खा नि. 1.24; द्वे अधिच्चसमुप्पन्निका, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) स्त्री., कर्म. स. [बौ. सं. अधिचित्तशिक्षा], चित्त से 1(1).317; - च्चापत्तिक त्रि., अधि'च्च + आपत्तिक, यदा सम्बन्धित शिक्षा - अधिसीलसिक्खाय अधिचित्तसिक्खाय, कदा अपराध करने वाला, जब तब विनय-विरुद्ध आचरण म. नि. 1.407; अधिचित्तसिक्खासमादानं, अ. नि. 1(1).261. करने वाला भिक्षु - अधिच्चापत्तिको ... अनापत्तिबहुलो, म. अधिचेत त्रि., ब. स. [अधिचेतस], जागरूक चित्त वाला, नि. (म.प.) 2.115; अधिच्चापत्तिकोति कदाचि कदाचि आपत्ति
चैतन्य, प्रत्युत्पन्नमति - अधिचेतसो अप्पमज्जतो, उदा. आपज्जति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.111; - च्चुप्पत्ति त्रि., 117; पाचि. 79; थेरगा. 68.
कर्म. स., अत्यल्प प्रयोग, आकस्मिक उत्पत्ति वाला - अधिच्च' क्रि. वि., अकस्मात्, संयोगवश, बिना कारण के, अयञ्च बुद्धो उप्पन्नो, अधिच्चुप्पत्तिको मुनि, अप. 1.332. दुर्लभ रूप में (प्रायः स. प. के पू. प. में ही प्रयुक्त); - एवं अधिच्चका स्त्री., [अधित्यका], पहाड़ के ऊपर की समतल अधिच्चमिदं, भिक्खवे, यं तथागतो लोके उप्पज्जति अरहं भूमि, गिरिप्रस्थ - उद्धमधिच्चका सेलस्सा, अभि. प. 610, सम्मासम्बुद्धो, स. नि. 3(2).516; - दस्सावी त्रि., कभी- तुल. पाणिनि 5.2.34. कभी ही अथवा बहुत कम अवसरों पर देखने वाला - अधिछिन्दन नपुं.. [अधिछेदन], टुकड़ों में काट देना, अधिच्चदस्सावी खो पनाह, भन्ते, भगवतो, स. नि. 2(1).2; खण्डीकरण - असिसूनूपमा अधिछिन्दनटेन ..., म. नि. पाठा. अनिच्चदस्सावी; - लद्ध त्रि., कर्म. स. [अधीत्यलब्ध], अट्ठ. (मू.प.) 1(2).10; पाठा. अधिकुट्ठनत्थेन, आकस्मिक-रूप में प्राप्त, संयोगवश उपलब्ध, बिना कारण अधिजेगुच्छे अ., अधि + जेगुच्छ का सप्त. वि., ए. व., उत्पन्न, बिना हेतु मिला हुआ - अधिच्चलद्धं परिणामजं ते. घृणास्पद अथवा जुगुप्सित के विषय में - अधिजेगुच्छे पञ्हं जा. अट्ठ. 5.164; अधिच्चलद्धन्ति अधिच्चसमुप्पत्तिक, पुट्ठो ब्याकासिं, दी. नि. 1.158; अधिजेगुच्छति ... यदिच्छकं लद्धन्ति अत्थो, वि. व. अट्ठ. 289; सयंकतं किन्नु पापजिगुच्छनाधिकारे पऽहं पुच्छि, दी. नि. अट्ठ. 1.269. अधिच्चलद्धं, जिना. 13; - समुप्पत्ति स्त्री., कर्म. स., अधिट्ठान नपुं., [अधिष्ठान], शा. अ. वह जिस के ऊपर [अधीत्यसमुत्पत्ति], आकस्मिक उत्पत्ति, अपने आप से अथवा स्थित हुआ जाए, आधार, पास में स्थित होना, ला. अ. क. बिना कारणों के उत्पत्ति - सस्सताकारञ्च अधिच्च- प्रतिस्थापना-स्थल, आधार, आवास, आसन अवलम्ब, सहारा, समुप्पत्तिआकारञ्च निस्साय अतीते ... कङ्घति, म. नि. दृष्टिकोण - अधिद्वितियमाधारे ठानेधिट्ठानमुच्चते, अभि. प. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).74; - समुप्पत्तिक त्रि., ब. स. 1032, अधिट्ठानपापुनेस्वधि .... अभि. प. 11773 [अधीत्यसमुत्पत्तिक], आकस्मिक अथवा अकारण उत्पत्ति अधिट्टाने धिभवने तथा, सद्द. 3.882; ख, दृढ़ संकल्प, किसी वाला - तत्थ अधिच्चलद्धन्ति अधिच्चसमुप्पत्तिक वि. व. आलम्बन या विषय पर चित्त का निर्धारण, दृढ़ इच्छाशक्ति अट्ठ. 289; - समुप्पन्न त्रि., [अधीत्यसमुत्पन्न], स्वतः - भगवतो पञ्च महाअधिट्ठानानि कथेसि, पारा. अट्ठ. 1.64; उत्पन्न, हेतुओं एवं प्रत्ययों की सामग्री का आश्रय लिये चेतसो अधिष्टानं अभिनिवेसानसयं न उपेति, स. नि.
For Private and Personal Use Only