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अदूर
अदोस - अदुब्भपाणी दहते मित्तदुभिं, पे, व. 264; अदुब्भपाणीति हो - धनुं अद्वेज्झ कत्वान, जा. अट्ठ. 4.231; अद्वेज्झं अहिंसकहत्थो, पे. व. अट्ठ. 102; अदुभपाणिं दहते मित्तदुभो, कत्वानाति जियाय च सरेन च सद्धि एकमेव कत्वा, तदे.. जा. अट्ठ. 7.207; अदुब्भपाणिन्ति अदुब्भक अत्तनो । अदेति ।अद से व्यु., क्रि. रू., [अत्ति], खाता है; - सि भुञ्जनहत्थमेव दहन्तो हि मित्तदुब्भी नाम होति, जा. अट्ठ. वर्त., म. पु., ए. व. - मं छादयमानो अदेसीति, जा. अट्ठ. 7.208.
5.30; न तादिसे भूमिपती अदेसि, जा. अट्ठ. 5.490; - मि अदूर त्रि., [अदूर], पास में विद्यमान, दूर न रहने वाला, वर्त., उ. पु., ए. व. - न तादिसे भूमिपती अदेमि, जा. अट्ठ. समीपवर्ती - तत्थेव सा पोक्खरणी अदूरे, जा. अट्ठ. 5.40; 5.49; - दन्ति वर्त, प्र. पु., ब. व. - तेमे जने काकोलसंघा तुल. अविदूरे; - गत त्रि., बहुत दूर तक न गया हुआ, अदन्ति, जा. अट्ठ. 6.129; न सुनखरस ते अदेन्ति मंसं जा. बहुत कम दूरी तक ही गया हुआ, समीप गया हुआ - सद्दे अट्ठ. 6.181; - तु अनु., प्र. पु., ए. व. - एतू भवं अस्समिमं अदूरगते, मि. प. 281; - 8 त्रि, [अदूरस्थ], समीप में अदेतु, जा. अट्ठ. 5.188; - य्य विधि., प्र. पु., ए. व., खा सके, स्थित, बहुत दूर में नहीं स्थित - नाद्दसामि अदूरद्धं, अप. खा ले, खाइये - घासत्थिको कक्कटको अदेय्य, जा. अट्ठ. 2.2183; थेरीगा. अट्ठ. 148.
3.259; - य्युं विधिः, प्र. पु.. ब. व. - यं तादिसं जीवमदेय्यु अदूसक पु., दूसक का निषे. [अदोषक], निर्दोष, धकाति, जा. अट्ठ. 5.102; अदेय्युन्ति खादेय्युं तदे... निरपराध, दोष-रहित, दूषित न करने वाला - अभाचिक्खिं अदेय्य त्रि., देय्य का निषे. [अदेय], क. नहीं देने योग्य अदूसकं, अप. 1.328; अदूसकेति निद्दोसे निरपराधे, जा. वस्तु - अदेय्यो कस्सचि बुद्धो, अप. 1.334; न चापि मे अट्ठ. 3.475; अदूसके हिंसति पापधम्मो, जा. अट्ठ. 4.43. किञ्चिमदेय्यमत्थि, जा. अट्ठ. 5.388; ख. दानप्राप्ति के अदूसिका स्त्री., दोष-हित नारी - असिकं सीलसम्पन्न लिए अयोग्य, दान न पाने योग्य व्यक्ति - अदेय्येसु ददं थेरीगा. 423; अदूसिकायो हन्ति , सु. नि. 314.
दानंजा. अट्ठ. 3.9; अदेय्येसूति पुब्बे अकतूपकारेसु, तदे.. अदूसितचित्त त्रि., दूसितचित्त का निषे०, ब. स. अदेवसत्त त्रि., देवसत्त का निषे., [अदेवसत्त्व], ऐसा प्राणी [अदूषितचित्त], प्रदूषण रहित, शुद्ध एवं स्वच्छ चित्त वाला, जो देवयोनि के यक्षों, भूतों आदि द्वारा गृहीत या अभिभूत न क्लेशों से रहित एवं निष्पापचित्त वाला - अदुट्ठचित्तोति हो, वह, जिस पर यक्षों, भूतों आदि का प्रभाव न हो गया हो किलेसेहि अदूसितचित्तो हुत्वा ..., जा. अट्ठ. 2.144. - नादेवसत्तो पुरिसो थीनं सद्धातुमरहति, जा. अट्ठ. 5.442; अदूहल व्यु. अनि., पु./नपुं.. संभवतः फंसाने वाला एक नादेवसत्तोति ... देवेन अनासत्तो, अयक्खगहितको, अभूतविट्ठो उपकरण, बंसी, चोरगढ़ा, फन्दा- अदूहलादीनि विसङ्घरित्वा, पुरिसो, जा. अट्ठ. 5.443. अ. नि. अट्ठ. 1.28; अदूहलं सज्जेन्तो, पारा. अट्ठ. 2.51; अदेस पु., देस का निषे॰ [अदेश], अनुपयुक्त स्थान, अनुचित अदूहलसतं सण्ठपेत्वा ..., अ. नि. अट्ठ. 1.28; सज्जेन्तस्स क्षेत्र - सो पत्तो न अदेसे निक्खिपितब्बो, पारा. 370; अदेसे अदूहल, विन. वि. 303; सूलसतञ्च, पाससतञ्च, वत नो वुटुं, जा. अट्ठ. 6.270. अदूहलसतञ्च योजेत्वा, सा. सं. 53; - पाद पु., फंसाने अदेसनागामी त्रि., [बौ. सं. अदेशनागामी], अदेसनागामिनी वाला खूटा - अदूहलपादे च पासयट्टियं पारा. अट्ठ. 2.51; आपत्ति, केवल पाप-स्वीकरण द्वारा परिमार्जित न होने वाला - पासाण पु., शिकार को फंसाने वाला पत्थर - भिक्षु-अपराध - अदेसनागामिनिया आपत्तिया कतं होति, अदूहलपासाणा विय मिगं मारेसुं. पारा. अट्ठ. 2.63; - मञ्च चूळव. 4; अदेसनागामिनियाति पाराजिकापत्तिया वा सवादि पु., फंसाने के लिए बनाया गया मञ्च - अदूहलमञ्च सेसापत्तिया वा, चूळव. अट्ठ. 2; - टि. भिक्षु द्वारा किया ठपेत्वा .... पारा. अट्ठ. 2.51.
गया वह अपराध, जिसका प्रायश्चित पाप-स्वीकरण मात्र से अदेज्झ'/अद्वेज्झ/अभेज्झ त्रि., [अद्वैध्य/अद्वैध/अभेद्य], न हो, अदेसनागामी आपत्ति कहलाता है, सभी पाराजिक दो भागों में विभाजित न किया हुआ, दूसरे द्वारा नहीं एवं संघादिसेस, इसी के अन्त. आते है. बहलाया गया, समग्र, एकाग्र, दुविधा से रहित - समाधि अदोस' त्रि., दोस का निषे. [अदोष], क, निर्दोष, निरपराध, मनसो अभेज्झो , जा. अट्ठ. 3.6.
दोषरहित, शुद्ध, ठीक-ठाक - तस्स अरापि अवङ्का अदोसा अदेज्झ' त्रि. [अधिज्य], प्रत्यञ्चा चढ़ा हुआ धनुष, ऐसा ..., अ. नि. 1(1).135; ख. पु., दोष का अभाव, हल्का -फुल्का धनुष जिसमें बाण को प्रत्यञ्चा या डोरी पर चढ़ा दिया गया मामला - अदोसं दोसमआय किमेवं करि भातिक, म. वं.
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