________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अधिकरण
163
अधिकार
अट्ठ. 182; सग्गं अधिकरणं कत्वा .... जा. अट्ठ. 6.121, पाठा. अधिकारं; 2. न्यायिक विवाद, विवाद-विषय, विनयविषयक वस्तुओं के सम्बन्ध में भिक्षुसंघ द्वारा विचारणीय प्रश्न अथवा विषय, कथा-वस्तु - विवादादो धिकरणं सिया, अभि. प. 868; ... अञभागियस्स अधिकरणस्स किञ्चिदेसं लेसमत्तं उपादाय .... पारा. 263; ... इमं अधिकरणं विनिच्छितुं वट्टतीति, जा. अट्ट, 1.152; विवादाधिकरणं, अनुवादाकरणं आपत्ताधिकरणं, किच्चाधिकरणं - इमानि खो, आनन्द, चत्तारि अधिकरणानि, म. नि. 3.32; 3. कारण, आधार - आधारे च कारणे, अभि. प. 868; ... दुक्खस्सेवाधिकरणं होति, ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).221; 4. विषय में, फलस्वरूप, के हेतु से, कारण से - ... न च मं धम्माधिकरणं विहेसेसि. म. नि. 2.354; ... विचिकिच्छाधिकरणञ्च पन मे समाधि, म. नि. 3.197; 5. आधार तथा संश्लिष्ट-सम्बन्ध का सूचक, अधिष्ठान, स्थान, अधिकरण-कारक - अधिकरणत्थो भावेनभावलक्खणत्थो च सम्भवति ... अधिकरणं हि कालत्थो समूहत्थो च समयो, खु. पा. अट्ठ. 86; ... अधिकरणत्थे भुम्मवचनं, सु. नि. अट्ठ 1.180; - कारक/कारिका पु./स्त्री., वह भिक्षु जो प्रायः विवादों का विषय खड़ा कर देता है या उपस्थित कराता है, कलह उत्पन्न कराने वाला - यो सो, भिक्खवे, भिक्खु ... सङ्के अधिकरणकारको..., अ. नि. 2(1).232; महाव. 429; अधिकरणकारकाति विनिच्छयपापुणनविसेसकारणं करोन्ता ... महानि. अट्ठ. 208; - जात त्रि., विवादों या कलहों में लगा हुआ, विवादप्रिय प्रकृति वाला - भण्डनजातानं कलहजातानं विवादापन्नानन्ति अधिकरणजातानं, पाचि. 201; -निरोध पु., तत्पु., विवादों की समाप्ति अथवा उपशमन - अधिकरणनिरोधं जानाति, अ. नि. 3(2).59; - पच्चयवार नपुं., वि. पि. के परिवार नामक संग्रह के एक अध्याय का नाम, परि. 203-205; - भूत त्रि., अधिकरण कारक (सप्त. वि.) में विद्यमान - ... यम्हि चक्खुम्हीति यम्हि अधिकरणभूते चक्खुम्हि, ध. स. अट्ठ. 343; - वूपसम पु.. तत्पु. [अधिकरणोपशम], विवादों का शमन - .... अधिकरणवूपसमादिके वा ... किच्चे उप्पन्ने.... ध. प.
अट्ठ. 2.299; - समथ पु.. [बौ. सं. अधिकरणशमथ], भिक्षुसंघ के चार प्रकार के विवादग्रस्त मसलों का उपशमन, विवादों को हल करने वाले सात धर्म - ... न अधिकरणिको होति, अधिकरणसमथस्स वण्णवादी, अ. नि. 3(2).142; सत्त अधिकरणसमथा धम्मा, पाचि. 283; - टि. विवादों के विषयों
के उपशमन हेतु निम्नलिखित सात बातें उल्लिखित - 1. सम्मुख-विनयो, 2. सति-विनयो, 3. अमूळ्ह-विनयो 4. पटिञात-करण 5. येभुय्यसिका, 6. तस्सपापियसिका, 7. तिणवत्थारक, परि. 296; तुल. अ. नि. 1(1),193; दी. नि. 3.201; दी. नि. अट्ठ. 3.204; - समुट्ठान नपुं., तत्पु. [बौ. सं. अधिकरणसमुत्थान], संघ में विवाद-विषयों या कलह के मसलों का उदय अथवा उत्पत्ति - अधिकरणं न जानाति अधिकरणसमुट्ठानं न जानाति, परि. 344; - समुदय पु.. तत्पु. [बौ. सं. अधिकरणसमुदय], उपरिवत् - ... अधिकरणसमुदयं न जानाति, अ. नि. 3(2).59; - समुप्पाद पु., तत्पु. [बौ. सं. अधिकरणसमुत्पाद], भिक्षुसंघ में विवाद के मामले की उत्पत्ति - अधिकरणसमुप्पादयूपसमकुसलो होति, अ. नि. 3(2).59. अधिकरणिक त्रि., [बौ. सं. अधिकरणिक], विवाद के विषय से जुड़ा हुआ, विवादी, अदालती - अधिकरणिको होति, अधिकरणसमथस्स न वण्णवादी, अ. नि. 3(2).140. अधिकरणी स्त्री., [अधिकरणी], सोनार अथवा लोहार की निहाई, जिस पर धातु-खण्ड रख कर वे काम करते हैं - मुख्याधिकरणीत्थियं, अभि. प. 527; ... अधिकरणिं उक्खिपापेत्वा, अधिकरणिया हेट्ठा उदकपातिं ठपापेत्वा, जा. अट्ठ. 3.250; ... चतुन्नं अधिकरणीनं उपरि .... ध. स. अट्ठ. 301. अधिकरणीय अधि करोति का सं. कृ., द्रष्ट., करणीय के
अन्त.. अधिकराज पु., रतनपुर के दो राजाओं की उपाधि - रतनपुरनगरे येव अधिकओ काले.... सा. वं. 89 (ना.); एक समय अधिकराजा विहारं गन्त्वा .... सा. वं. 93 (ना.). अधिकरोति अधि + Vकर का वर्त. , प्र. पु., ए. व., [अधिकरोति], किसी को किसी के विषय में अधिकृत करता है, किसी वस्तुविशेष को अपना प्रमुख अभीप्सित बनाता है - अधिकरोतीति अधिकरणं, कारणस्सेतं नाम, दी. नि. अट्ठ. 2.80; - कत्वा/किच्च पू. का. कृ. - अधिकत्वा वाहीयति, अभिमुखं वा बाहीयतीति, सु. नि. अट्ठ. 1.118; ... पञ्चविध अत्तभावं अधिकिच्च पवत्तत्ता अज्झत्तिक विसुद्धि. 2.77. अधिकार पु.. [अधिकार], क, कार्य, रोजगार, आयोजन, कार्यविशेष के साथ स्वयं का या किसी का लगाव - युगोधिकारो, अभि. प. 1004; कोचिदेव पुरिसो रओ अधिकारं करेय्य, मि. प. 47; ख. पुण्य, कुशल कर्म, परित्याग - बुद्धो लोके समुप्पन्नो, अधिकारो च नत्थि मे,
For Private and Personal Use Only